तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस फिलहाल फूली नहीं समा रही। लेकिन ये जीत राहुल गांधी को पीएम बनाने के लिए काफी नहीं है। जिसकी तस्वीर तीनों राज्यों में हुए शपथ ग्रहण समारोह में सामने आ गई। राजस्थान में जब सीएम पद के लिए अशोक गहलोत शपथ ले रहे थे। वहीं सबकी नजर महागठबंधन की उभरने वाली नई तस्वीर पर भी थी। जिसमें कुछ रंग गायब थे।
खासकर देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के। जो निमंत्रण के बाद भी मंच पर नहीं पहुंचे। वहीं बंगाल से ममता दीदी भी मंच से गायब थी। ऐसे में महागठबंधन अधर में अटकता नजर आ रहा है। वहीं तीसरे मोर्चे की खुशबू सियासी गलियारों में फैलनी शुरु हो गई है।
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शपथ ग्रहण में दिखी नई तस्वीर
दरअसल जहां पर भी बीजेपी और कांग्रेस की सीधी लडाई है। वहां पर कांग्रेस को क्षेत्रिय पार्टियां समर्थन देने में संकोच नहीं कर रही है। वहीं दूसरी तरफ जहां क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है, वहां वो कांग्रेस के साथ जाने से बचना चाहती हैं। इसीलिए वो राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ के शपथ ग्रहण समारोह से नदारद रहीं।
कांग्रेस की अगुवाई मंजूर नहीं
यूपी में सपा, बसपा, आरएलडी, पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी, उड़ीसा से बीजू पटनायक, तेलंगाना से केसीआर, इसके साथ ही असदउद्दीन ओवैसी और ‘आप’ के अरविंद केजरीवाल भी नजर नहीं आए। बीते दिनों असदउद्दीन ओवैसी ने बयान दिया था, कि वो न तो बीजेपी के एजेंट हैं, और न ही कांग्रेस के साथ जाने में कोई दिलचस्पी है। साथ ही केसीआर ने तेलंगाना में अपनी अकेले भारी बहुमत से सरकार बनाकर ताकत दिखा दी है।
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पिछलग्गू नहीं फ्रंट में चाहिए जगह
केसीआर ने चुनाव प्रचार के दौरान साफ कहा था कि वो दिल्ली की राजनीति में दिलचस्पी तो रखते हैं। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस का पिछलग्गू बनना नहीं चाहते। वो इसके लिए दूसरे दलों के साथ संपर्क में हैं। केसीआर और ओवैसी के बयान से साफ है, कि महागठबंधन में उनको कांग्रेस का अगुवा होना बिल्कुल नही भा रहा है। ऐसे में मोदी को हराना तो सब चाहते हैं। लेकिन हराने के बाद उनकी कुर्सी हथियाने की जुगत में सब घूम रहे हैं।
200 सीटों पर है असर
आंकड़ों पर नजर डालें तो, पश्चिम बंगाल में 42 सीटें, दिल्ली में 7, उड़ीसा में 21, यूपी में 80, तेलंगाना में 17, तमिलनाडू में 39 सीटें है। जो कुल 206 हैं, जिनपर अगर स्थानीय पार्टियों का जोर चल गया तो मोदी को झटका तो लगेगा ही, साथ ही राहुल का सपना पूरा होना असंभव हो जाएगा।
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ये भी हो सकते हैं साथी
इन राज्यों में यूपी और दिल्ली को छोड़कर बीजेपी का बीते 2014 के चुनाव में ही कुछ जगह असर रह है। ऐसे में इन पार्टियों का जोर अपने राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर कांग्रेस को अपने झंडे के नीचे लाने का प्लान है। जिसकी तस्वीर भले न दिख रही हो, लेकिन अंदर खाने सबकुछ चल रहा है। अगर ये पार्टियां अपने मिशन में कामयाब हो गईं। तो एनसीपी के शरद पवार, शिवसेना से उद्धव ठाकरे, बिहार से नीतीश कुमार को साथ आने में देर नहीं लगेगी। साथ ही चंद्रबाबू नायडू अपना पाला नहीं बदलेंगे इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।
कुल मिलाकर अशोक गहलोत के शपथ के बाद सभी विपक्ष ने भले ही एक बस में सवारी करके सब साथ वाला संदेश दिया हो। लेकिन तीसरे मोर्चे की तस्वीर उभरकर सामने आने पर ये सब बस से उतर भी सकते हैं।