सीबीआई के बाद अब केंद्र सरकार के लिए एक और मुश्किल खड़ी हो गई है. क्योंकि वित्तमंत्री अरुण जेटली के बयान के बाद आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा देने के मूड में है. रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा.
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मंगलवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश में बैंक एनपीए का ठीकरा आरबीआई से सिर फोड़ा था. इस दौरान उन्होंने पूरे मसले पर उर्जित पटेल को निशाने पर लिया. वित्तमंत्री के इस व्यवहार के बाद एक बिजनेस चैनल ने दावा किया है, कि केन्द्रीय रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल के पास मौजूद विकल्पों में इस्तीफा देना भी शामिल है. रिजर्व बैंक के आलाधिकारियों का दावा है कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए सभी विकल्प खुले हैं.
बताया जा रहा है कि केंद्र और आरबीआई के बीच फासला इतना बढ़ गया है, कि इसको पाटना संभव नहीं है. इससे पहले केंद्र सरकार आरबीआई के रिश्तों को लेकर कुछ दिन पहले डिप्टी गवर्नर विरर आचार्य ने सका थी कि केंद्रीय रिजर्व बैंक की स्वायत्ता खतरे में हैं, इसको देखते हुए सभी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है.
क्या है एनपीए
केंद्र और आरबीआई के रिश्तों में आई खटास को लेकर जिम्मेदार एनपीए है जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा 2008 से 2014 के बीच बांटा गया. सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक अनुसार, 31 मार्च, 2018 तक अनुमानित करीब 9.61 लाख करोड़ रुपये से अधिक का एनपीए है. जिसमें 85,344 करोड़ रुपये कृषि से जुड़े क्षेत्रों का है, जबकि 7.03 लाख करोड़ रुपये व्यवसायिक घरानों का है. खास बात ये है कि कुल एनपीए में निजी बैंकों के मुकाबले सार्वजनिक बैंकों का बकाया यानी (एनपीए) आठ गुना ज़्यादा है.
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एनपीए वो पैसा है, जो बैंकों के द्वारा विभिन्न संस्थाओं और लोगों को दिया गया है. जिसकी वसूली बैंकों के लिए आसान नहीं है. एक तरह से ये पैसै डूबा हुआ माना जाता है. इसको बैंक राइट ऑफ घोषित करके अपनी बैलेंस शीट को साफ -सुथरा कर सकता है. पिछले पांच सालों में बैंकों ने अपने इस घाटे को पूरा करने के लिए 3,67,765 करोड़ रुपये की रकम आपसी समझौते के तहत डूबते खाते में डाली है.