ज्यादातर लोगों का मानना है कि सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने से कतराते हैं। इसी का प्राइवेट स्कूल फायदा उठा रहे हैं और अपनी मनमानी करते हैं। प्राइवेट स्कूलों की बड़ी-बड़ी आकर्षक इमारत लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती है। लेकिन आज हम आपको राजस्थान के ऐसे सरकारी स्कूल की तस्वीरें दिखाने जा रहे हैं, जिसे देखकर आपको अपनी आंखों पर यकीन कर पाना मुश्किल हो सकता है।
आप सभी लोग रेत के धोरों के बीच रेल देखकर हैरान जरूर हो जाएंगे। हम आपको जो तस्वीरें दिखा रहे हैं, इसे देखने के बाद कई लोगों को ऐसा लग रहा होगा कि यह कोई असली ट्रेन है लेकिन आपको बता दें कि यह असली ट्रेन नहीं है बल्कि शिक्षक द्वारा किया गया नवाचार है, जिसको देखने के लिए लोग आतुर रहते हैं।
अगर दूर से देखा जाए तो ऐसा लग रहा है मानो ट्रेन आ रही हो लेकिन यह धनाऊ का सरकारी स्कूल है। इस सरकारी स्कूल में रेलवे स्टेशन की तरह नामकरण, खिड़कियां, डब्बे और प्लेटफार्म बनवाया गया है। आपको बता दें कि पश्चिम राजस्थान के सुदूर इलाकों में बसे गांवों के स्कूलों में शिक्षकों और भौतिक संसाधनों का अक्सर अभाव रहता है। ऐसी स्थिति में यहां के भामाशाह और शिक्षक मिलकर नवाचार करके स्कूलों को आकर्षक बनाने के लिए पहल करते नजर आ रहे हैं।
सरहदी बाड़मेर जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर की दूरी पर धनाऊ के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रामदेवजी का मंदिर के प्रधानाचार्य जबर सिंह चारण के द्वारा यह अनूठी पहल की गई है और विद्यालय को ट्रेन का रूप दे दिया गया है। ग्रामीण इलाकों में 90% छात्र ऐसे भी होते हैं जिन्होंने शायद ही ट्रेन को अपनी जिंदगी में देखा होगा। यह शैक्षणिक ट्रेन विद्यार्थियों के लिए कौतूहल का विषय बन गया है।
विद्यालय के प्रधानाचार्य जबर सिंह चारण का ऐसा बताना है कि विद्यालय को ट्रेन का लुक दिया गया है। जो कि रेत के धोरों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। ग्रामीण परिवेश से आने वाले छात्रों के लिए यह नया अनुभव यकीनन बेहद सार्थक साबित होगा। आपको बता दें कि विद्यालय में व्याख्याता रमेश कुमार, फूसाराम, चुनाराम, जगदीश कुमार, शैतान दान, मेराजराम और विद्यालय सहायक पेमाराम सउ ने विद्यालय के रंग रोगन में अपना योगदान दिया है। बता दें कि स्कूल की खिड़की और अन्य चीजें ट्रेनों के रंग में रंगी हैं। वहीं जब स्कूल के छात्र दरवाजे पर खड़े होते हैं, तो ऐसा लगता है मानो बच्चे ट्रेन के डिब्बों से झांक रहे हों।