World Samosa Day पर जानिए समोसे का इतिहास

समोसे का इतिहास (History of World Samosa Day in Hindi): समोसे की विरासत का आखिर असली वारिस कौन है? आप किसी बंगाली से पूछिए तो वह छूटते ही कहेगा कि दादा, समोसा सब से पहले कोलकाता में बना. अगर बगल में कोई बिहारी बैठा होगा तो वह तुरंत आपत्ति करेगा और बताएगा कि कैसे पाटिलपुत्र से इस की कहानी शुरू हुई. यह बहस हो ही रही होगी कि तभी कोई कानपुरिया उठेगा और कहेगा कि गुरु, तुम्हें तो कुछ पता ही नहीं. समोसा सब से पहले कानपुर में कलैक्टरगंज में बना था मिठाईलाल की दुकान में समझे.

ये है इतिहास

ज्यादातर लोग मानते हैं कि समोसा एक भारतीय नमकीन पकवान है, लेकिन इस से जुड़ा इतिहास कुछ और ही कहता है. उस के मुताबिक वास्तव में इस का रिश्ता हिंदुस्तान से लाखों मील दूर ईरान से है. समोसा शब्द फारसी भाषा के शब्द ‘संबोसाग’ का भारतीयकरण है.

समोसे का पहली बार जिक्र 11वीं सदी में फारसी इतिहासकार अबुल फजल बेहाकी द्वारा किया गया था. हालांकि उस जिक्र में हमारे मौजूदा समोसे की झलक नहीं है. बेहाकी ने गजनवी के शाही दरबार में पेश की जाने वाली नमकीन पेस्ट्री का जिक्र किया है, जिस का रूप और आकार बिलकुल आधुनिक हिंदुस्तानी समोसे जैसा था. मगर इस में आलू, मटर या पनीर जैसी चीजें नहीं थीं. इस में कीमा और सूखे मेवे भरे थे.

उन दिनों इस नमकीन पेस्ट्री को तब तक पकाया जाता था जब तक कि यह खस्ता न हो जाए. लेकिन भारत से आने वाले प्रवासियों की खेप ने न केवल इस पेस्ट्री को समोसे के रूप में अपनाया, बल्कि इस का रूपरंग भी बदल दिया. समोसा भारत में चल कर आया है और यह उसी रास्ते से आया है जिस रास्ते से माना जाता है आर्य आए थे.

कहने का मतलब यह है कि समोसा भारत में मध्य एशिया की पहाडि़यों से गुजरते हुए बरास्ता अफगानिस्तान पहुंचा. लेकिन भारत पहुंच कर संबोसाग सिर्फ समोसा ही नहीं हुआ, बल्कि इस का और भी रूपरंग बदला. सब से पहले तो इस के रूप में ही परिवर्तन हुआ. मगर बदलाव के मामले में भी हम अकेले दावेदार नहीं हैं. हम से पहले और कुछ हद तक हमारी ही तरह के इस में बदलाव तजाकिस्तान और उजबेकिस्तान में भी हुए.

समय के साथ बदलता गया समोसा

मध्य एशिया में इसे खेत पर काम करने वाले किसानों का भोजन माना गया और इसीलिए इसे ज्यादा कैलोरी वाला बनाया गया. वहां भी इसे हमारी ही तरह तल कर बनाया जाता है. हालांकि ईरान की तरह मध्य एशिया में समोसे के भीतर कीमा और सूखे मेवे नहीं भरे जाते, बल्कि बकरे या भेड़ का गोश्त भरा जाने लगा. इसे यहां कटे हुए प्याज और नमक के साथ मिला कर बनाया गया.

सदियों बाद समोसे ने हिंदूकुश के बर्फीले दर्रों से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश किया. वास्तव में समोसा जितना हमारा है उतना ही यह किसी और का भी है. समोसे को आज अगर सही मानों में ग्लोबल पकवान कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

समोसे का ईरान से जो वैश्विक सफर शुरू हुआ उस में सब से ज्यादा बदलाव या कहें रचनात्मक परिवर्तन भारत में ही हुआ. भारत ने अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति और खानपान की अपनी जरूरतों के चलते इसे पूरी तरह से बदल डाला.

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