दुनिया भर की सरकारों को कर चोरी रोकने के लिए अरबपतियों पर एक न्यूनतम टैक्स तो लगाना ही चाहिए। इससे कराधान में बढ़ोतरी होगी और ये 250 अरब डॉलर (20793 अरब रुपए) के स्तर तक पहुंच जाएगा। यह बात पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से संबद्ध ईयू टैक्स ऑब्जर्वेटरी की रिपोर्ट में कही गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के 2700 अरबपतियों के पास कुल 13 लाख करोड़ डॉलर की संपत्ति है। इन पर मात्र दो फीसदी टैक्स से करीब 250 अरब डॉलर टैक्स राशि सरकारों के पास जमा हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि फिलहाल अरबपतियों पर निजी टैक्स की प्रभावी दर उस दर से भी काफी कम है, जो कि आम करदाता दुनिया भर में चुका रहे हैं। ‘2024 ग्लोबल टैक्स इवेजन रिपोर्ट’ के अनुसार, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अरबपतियों के द्वारा शैल (छद्म) कंपनियों में पैसा पार्क किया जा रहा है और वे कोई भी टैक्स देनदारी से बच जाते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में दुनिया भर के अरबपतियों के पास उनकी कुल संपदा की तुलना में टैक्स देनदारी मुश्किल से 0 से 0.5 फीसदी ठहरती है। रिपोर्ट में अमरीका में अरबपतियों पर टैक्स की प्रभावी दर 0.5 फीसदी और फ्रांस में शून्य आंकी गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक अरबपति अपनी संपत्ति को इस तरह स्ट्रक्चर करने की क्षमता रखते हैं कि इससे उन पर अधिक कर की देनदारी न बने। रिपोर्ट को जारी करते हुए ऑब्जर्वेटरी के निदेशक गेब्रियल जुकमैन ने पत्रकारों से कहा, इसको किसी तरह से तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता।
ईयू टैक्स ऑब्जर्वेटरी के एक वरिष्ठ नीति सलाहकार क्वेंटिन पैरिनेलो का कहना है कि ब्राजील में होने वाली आगामी जी-20 बैठक में अमीरों की संपत्ति पर दो फीसदी टैक्स लिए जाने के मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश होनी चाहिए।
अरबपतियों पर न्यूनतम दो फीसदी टैक्स आज के हालात में काल्पनिक लग सकता है पर 10 साल पहले ये भी काल्पनिक लगता था कि स्विस बैंक के कर अधिकारी सरकारों के साथ कर देनदारी की सूचना साझा करेंगे लेकिन आज ये सूचना कर चोरी से लड़ने में एक मुख्य हथियार बन चुका है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड 19 के बाद से बढ़ती असमानता और जलवायु परिवर्तन के चलते आम जनता की बढ़ती आर्थिक दुश्वारियों के बाद अब ये जनभावना जोर पकड़ने लगी है कि अरबपतियों पर ज्यादा टैक्स लगाया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इससे लोकतंत्र के लोगों में असंतोष बढ़ेगा।
रिपोर्ट के अनुसार, दुबई के प्रोपर्टी बाजार में भारतीयों की सबसे अधिक 20 फीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन गौर करने की बात ये भी है कि दुबई में कुल प्रवासियों में 41 फीसदी भारतीय हैं। इसके बाद ब्रिटिश लोग हैं, जिनकी हिस्सेदारी 10 फीसदी है। इसके बाद पाकिस्तान, सऊदी अरब और ईरान के लोगों ने यहां निवेश किया है।