प्रिय पाठकों आज ना ग्रहों की चाल पर कोई बात और ना ही किसी भविष्वाणी की। आज मैं बात करना चाहती हूं जीवनदायनी तुलसी की। तुलसी का पौधा हर घर में होना चाहिए। पौराणिक आख्यानों के कारण ही नहीं, बल्कि इसके पर्यावरणीय और औषधीय गुणों का कारण। हिन्दू समाज के तकरीबन हर घर में यह पौधा होता है। इधर कोरोना काल में तुलसी का महत्त्व सबकी समझ में आ ही गया होगा। आयुष मंत्रालय भी तुलसी को शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानि इम्म्युनिटी बढ़ाने के लिए सर्वोत्कृष्ट बता रहा है। जिस पाश्चात्य सभ्यता से अभिभूत होकर हमने अपने आँगन से तुलसी को विदा कर दिया वो पश्चिमी देश भी तुलसी के औषधीय गुणों का बखान करते नहीं थक रहे हैं। आज मैं आपको तुलसी के बारे में विस्तार से बता रही हूं और उम्मीद करती हूँ कि आप अपने घर में तुलसी की स्थापना करके अपने जीवन को अवश्य ही सुखमय बनाएंगे। यह मेरी हर भारतीय से अपील है, खासतौर पर उनसे जो प्राचीन सनातन सभ्यता और संस्कृति का गुणगान सोशल मीडिया पर पसंद तो करते हैं मगर अपने बच्चो को संस्कार देने के नाम पर इनको व्यावहारिक तौर पर अपने जीवन में लागू नहीं करते।
तुलसी के पौधे की उम्र लगभग दो से ढाई साल होती है। इसके बाद पौधा कमजोर होकर सूखने लगता है। इस बीच तुलसी के पौधे से पके हुए बीज मिट्टी में गिरते रहते हैं। बारिश के मौसम में ये बीज अंकुरित हो जाते है और नए पौधे फूट आते हैं जो स्वस्थ होते हैं। तुलसी के बीज लगभग 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अंकुरित होते हैं। आप खुद भी तुलसी के बीज मिट्टी में दबाकर नए पौधे तैयार कर सकते हैं।
बीज से तुलसी कैसे लगायें :
बीज से तुलसी लगाने के लिए अप्रैल का महीना उपयुक्त होता है। इसके लिए खाद मिश्रित मिट्टी पर तुलसी के बीज बिखेर दें। अब इस पर लगभग चौथाई इंच की मिट्टी की परत चढ़ा दें। इसके बाद इस पर पानी छिड़क दें। पानी का छिडकाव रोज करें। बहुत ज्यादा पानी नहीं डालें। मिट्टी में नमी बनी रहनी चाहिए। एक से दो सप्ताह के बीच पौधे फूट आते हैं। पौधे जब चार पांच इंच के हो जाये तब उन्हें दूसरी जगह लगाया जा सकता है।
पौधे की देखभाल और घना करने का तरीका :
तुलसी के पौधे मे रोजाना अधिक पानी डालना ठीक नहीं है। तुलसी में ज्यादा पानी डालने से रोग लग सकते है और वह सूख सकती है। इसके अलावा इन बातों का ध्यान रखने से तुलसी सूखेगी नहीं और घर में तुलसी हमेशा उपलब्ध रहेगी। तुलसी का पौधा जब थोडा बड़ा हो जाये ( लगभग एक फीट ) तब उसकी मुख्य शाखा काट देने से साइड से फूट होती है इससे पौधा घना हो जाता है। तुलसी के पौधे को धूप जरुरी होती है। इसे कम से कम दो घंटे की धूप अवश्य मिले इसका ध्यान रखें। लेकिन बहुत ज्यादा तेज धूप व गर्मी से भी इसे बचा कर रखें। पौधे में जब फूल ( मंजरी ) आने लगते हैं तो पौधे की वृद्धि रुक जाती है। नए पौधे में फूल आने पर उन्हें तोड़ते रहना चाहिए। इससे पौधा घना होता रहता है। परंपरा के अनुसार इसे तुलसी का बोझ कम करना कहते हैं। तुलसी के फूल , मंजरी या पत्ते नाख़ून से काट कर नहीं तोड़ने चाहिए। इससे तुलसी ख़राब हो सकती है।
तुलसी के पोधे को नाइट्रोजन की आवश्यकता अधिक होती है। इसके लिए दो सप्ताह में एक बार गौ मूत्र ( एक भाग गौमूत्र और दस भाग पानी के अनुपात में ) या कम्पोस्ट खाद कम मात्रा में ( दो तीन महीने में एक बार ) डाली जा सकती है। तुलसी में केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग ना करें। सूखे , पीले पड़े हुए तथा मुरझाये हुए पुराने पत्ते हटा कर पौधे को हल्का बनाये रखना चाहिए। तेज सर्दी तथा ओस तुलसी के लिए नुकसानदेह होती है। इससे पौधा नीला पड़ कर नष्ट हो सकता है। तेज सर्दी तथा ओस से तुलसी को बचाने के लिए उसे पतले कपड़े से ढक दें।
तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं डालें लेकिन मिट्टी में नमी बनी रहे उतना पानी अवश्य डालें। सर्दी में भी मिट्टी की नमी का ध्यान जरुर रखें। बरसात में पानी का निकास हो जाये ऐसी व्यवस्था रखें। गर्मी के मौसम में पर्याप्त पानी का ध्यान रखें। तुलसी के पौधे में पानी डालते समय मिट्टी उछल कर पत्तों पर न लगे इसका ध्यान रखें। इससे बीमारी लग सकती है। तुलसी के दो तीन पौधे रखें ताकि किसी एक पौधे में समस्या हो तो भी तुलसी की उपलब्धता बनी रहे।
तुलसी में रोग लगने पर क्या करें :
वैसे तो तुलसी में बीमारी कम ही लगती है लेकिन कभी कभी तुलसी में गोल भूरे या काले रंग के धब्बे जैसे बन जाते जो एक बीमारी है। लम्बे समय तक नमी या गीलापन इसका कारण होता है। यदि एक दो पत्तों पर ऐसे धब्बे नजर आएं तो उन पत्तों को तुरंत हटा देना चाहिए अन्यथा यह सब पत्तों में फैल कर पौधे को नष्ट कर सकते हैं। पानी में नीम का तेल मिलाकर सप्ताह में दो तीन बार छिडकाव करने से भी काले धब्बे या अन्य रोग मिट जाते हैं। यदि किसी प्रकार की कीटनाशक दवा का उपयोग कर रहें हैं तो तुलसी के पत्ते खाने में काम ना लें।