Birthday special: देश की पहली महिला शिक्षक थी सावित्रीबाई फुले, जानिए उनके जीवन के रोचक तथ्य
सावित्रीबाई फुले का पूरा नाम सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले था. सावित्रीबाई फुले का जन्म 1831 में आज के ही दिन महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था. सावित्री बाई के पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था. सावित्रीबाई फुले की शादी महज 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले के साथ हो गई थी.
देश की पहली महिला शिक्षक
सावित्रीबाई फुले शादी से पहले पढ़ी लिखी नही थी. लेकिन शादी के बाद ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को फुले को पढ़ाया, अपने पति द्वारा शिक्षा ग्रहण करने के बाद सावित्रीबाई ने शिक्षा का प्रचार प्रसार किया. ये बात सच है कि उस समय लड़कियों को कोई भी पढ़ाना लिखाना नहीं चाहता था, उन्हें छोटी सी उम्र में चूल्हा चौका सिखाकर उनकी शादी कर दी जाती थी. लेकिन जब सावित्रीबाई फुले के पति ने उन्हें पढ़ाया तो सावित्रीबाई ने लड़कियों की दशा को समझा और 1848 में उन्होंने लड़कियों के लिए विद्यालय की स्थापना की.
लड़कियों के लिए खुलने वाला ये देश का एकमात्र स्कूल था, और इस तरह सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिक बन गई. ऐसा कहा जाता है की जब सावित्रीबाई स्कूल में पढ़ाने जाती थी तो उनके ऊपर धर्म के ठेकेदारों ने कूड़े कचरे व पत्थर फेंके और उन्हें अपमानित भी किया, लेकिन सावित्रीबाई चुपचाप सब कुछ सहती रही और डटकर स्त्रियों के पुनर्वास, व शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम करती रही.
विधवा पुनर्विवाह और सती प्रथा के लिए चलाए अभियान
सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों के लिए शिक्षा के साथ विधवाओं की शोचनीय दशा के लिए भी काम किया. सावित्रीबाई फुले ने विधवा पुनर्विवाह की शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए एक आश्रम भी बनवाया. इसके साथ-साथ उन्होनें कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने के लिए नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला. उन्होंने अपने जीवनकाल में पुणे में ही18 विद्यालयों की नींव डाली थी. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में तो बेहतर किया ही साथ ही विधवाओं की स्थिति को भी सुधारा और सती-प्रथा जैसी कुप्रथाओं को रोकने व विधवा महिलाओं के पुनर्विवाह के लिए भी बहुत प्रयास किए.
देश का पहला अनाथालय
सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए काम तो किया ही, साथ ही उन्होंने 1854 में अनाथों के उत्थान के लिए देश का पहला अनाथालय बनाया. सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर काशीबाई नामक एक गर्भवती विधवा महिला को आत्महत्या करने से रोका और उसे अपने घर पर रखकर उसकी उचित देखभाल की और समय पर उसकी डिलीवरी करवाई. बाद में सावित्रीबाई व ज्योतिबा फुले ने उसके पुत्र यशवंत को गोद लेकर उसको खूब पढ़ाया लिखाया और बड़ा होकर यशवंत एक प्रसिद्ध डॉक्टर बन गया.