कौन हैं ‘The Accidental prime minister’ के लेखक संजय बारू, और क्या था उनकी किताब में
संजय बारू जिनकी किताब पर The Accidental Prime Minister फिल्म बनी है वो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे. संजय बारू की यह किताब 2014 अप्रैल में आई थी. वहीं अब उनकी किताब पर बनी फिल्म 2019 जनवरी में आ रही है. यह महज इत्तेफाक ही है कि जब किताब आई थी तब भी देश में लोकसभा चुनाव थे. और जब किताब पर फिल्म आ रही हैं तो इस साल भी लोकसभा के चुनाव है.
इस फिल्म के रिलीज होने से बीजेपी को चुनावी फायदा होगा. क्योंकि फिल्म का जो ट्रेलर रिलीज हुआ है उसमें प्रधानमंत्री को काफी मजबूर दिखाया गया है. बीजेपी खुद इस फिल्म का प्रचार करने में लग गई है. और उसने अपने ट्वीटर हैंडल से ट्वीट करके संदेश देने की कोशिश की है कि इसे देखा जाए.
कौन हैं संजय बारू
संजय बारू साल 2004 से 2008 तक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे थे. संजय इस दौरान प्रधानमंत्री के साथ तमाम बातचीत और भेंट मुलाकात में जाते रहते थे. संजय की नजर पीएमओ कार्यालय के कामकाज पर भी रहती थी. संजय ने अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जितना समझा था उनकी किताब उसी पर आधारित है. संजय ने किताब की लांचिंग पर कह था कि उन्होंने तो सिर्फ 50 फीसदी बातों को ही किताब में लिखा है.
संजय बारू जाने माने पत्रकार है. वो ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ में एसोसिएट एडिटर और बिजनेस स्टैंडर्ड में चीफ एडीटर के तौर पर काम कर चुके हैं. लेकिन किताब आने के बाद उनकी पहचान राजनैतिक लेखक के तौर पर हो गई. संजय बारू प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार से हटने के बाद वो 2017 में इंडियन चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री यानी फिक्की के जनरल सेक्रेट्री बने.
क्या लिखा था उन्होंने किताब में
संजय बारु ने अपनी किताब में लिखा है कि यूपीए के दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह बतौर प्रधानमंत्री काफी कमजोर हो चुके थे. एक तरह से वो कठपुतली बन चुके थे. उन्होंने अपनी किताब में लिखा कि प्रधानमंत्री अपनी मंजूरी से बड़े पदों पर नियुक्तियां भी नहीं कर पा रहे थे. साथ ही सभी प्रमुख सरकारी नीतियों पर फैसला भी सोनिया गांधी ही किया करती थी.
प्रधानमंत्री दूसरे कार्यकाल में सोनिया गांधी और यूपीए के सहयोगियों के सामने मजबूर थे. साथ ही मनमोहन सिंह ने सत्ता का केंद्र सोनिया गांधी को ही मान लिया था.
संजय बारु ने अपनी किताब में लिखा है कि प्रणव मुखर्जी प्रधानमंत्री की काफी अवहेलना करते थे. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि अमरीका जैसे देश की यात्रा से वापस आने के बाद विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी मनमोहन सिंह को ब्रीफ़ तक नहीं करते थे. वहीं संजय ने अपनी किताब में इस बात का भी जिक्र किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सी रंगराजन को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे.
मनमोहन सिंह 2जी घोटाले से पहले ही ए राजा को हटाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वो कर नहीं पाए थे.
वहीं न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने इस्तीफे की धमकी दी थी. लेकिन सोनिया गांधी के दवाब में वो ऐसा नहीं कर पाए थे.
साथ ही किताब में इस बात को लिखा गया है कि सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद सुपर कैबिनेट की तरह काम करती थी. सभी सामाजिक सुधारों के कार्यक्रमों की पहल करने का श्रेय उसे ही दिया जाता था.
सोनिया गांधी का जून 2004 मे सत्ता त्याग देना अंतरआत्मा की आवाज़ सुनने का नतीजा नहीं था बल्कि एक राजनीतिक क़दम था.