भारत में गठबंधन की राजनीति, कितनी सफल और असफल, जानें गठबंधन की कहानी
राहुल गौड़: भारतीय राजनीति गठबंधन के दौर में चल रही है. अब वो दौर खत्म हो गया है जहां राजनीतिक पार्टियां अकेले दम पर सरकार चलाती थी. राष्ट्रीय दलों की पैठ जहा कमजोर है वहां क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव मैदान में गठबंधन के सहारे उतरने लगी हैं. देश की मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां गठबंधन के सहारे सत्ता के सिंहासन पर पहुंचने की कवायद में जुटी हैं.
राष्ट्रीय दलों ही नहीं क्षेत्रीय दलों की पैठ मतदाताओं में जितनी गहरी होती जाएगी यह चलन उतना बढ़ेगा. क्षेत्रीय मुद्दों पर ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपने क्षेत्रीय दलों पर मतदाता का भरोसा लगातार बढ़ रहा है. यही वजह है कि मतदाता चाहते है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी उसका प्रतिनिधित्व उसके क्षेत्रीय दल करें. पिछले लगभग एक दशक से मतदाताओं ने गठबंधन की सरकारों का गठन का जनादेश दिया है. देश में गठबंधन की राजनीति 1977 में ही शुरू हो गई थी. लेकिन इसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ही कामयाब बनाया.
जब शुरू हुई गठबंधन की राजनीति
आजादी के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी केंद्र से लेकर ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी. जवहारलाल नेहरु की मौत के बाद कांग्रेस पार्टी में दरार आने लगी और पार्टी 1969 में दो हिस्सों में बट गई. कांग्रेस के विभाजन के बाद कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) में विभाजित हो गई. कांग्रेस (ओ) का नेतृत्व के. कामराज कर रहे थे और कांग्रेस (आर) का नेतृत्व इंदिरा गांधी कर रही थीं. 1969 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस (आर) ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में जीत दर्ज की लेकिन उसे 78 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा.
1971 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी इंदिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए जनसंघ, कांग्रेस (ओ), स्वतंत्र पार्टी और एसएसपी ने राष्ट्रीय डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF) का गठन किया. इस स्वतंत्र भारत के इतिहास का पहला पूर्ण गठबंधन कहा जा सकता है लेकिन इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस (आर) जो कांग्रेस (आई) बन गया था जिसने विपक्ष को बुरी तरह हराया और 352 सींटों पर जीत हासिल की और NDF को विपक्ष में बैठना पड़ा.1975-1977 तक देश में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया जो उनके लिए घातक सिद्ध हुआ.
आपातकाल हटने के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कांग्रेस (ओ), भारतीय जनसंघ सहित लगभग पूरा विपक्ष इंदिरा गांधी के सामने एक जुट हो कर चुनाव मैदान में उतरा. विपक्षी एकता के सामने इस बार इंदिरा गांधी की एक नहीं चली और कांग्रेस (आई) को हार का सामना करना पड़ा. चुनाव बाद बनी जनता पार्टी ने 520 में 330 सीटों पर जीत दर्ज की और पहली बार गठबंधन कर बनी पार्टी के मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने.
लेकिन पार्टी के भीतर ही विवाद शुरू हो गया जिसके कारण स्वतंत्रता सेनानी और रायबरेली से इंदिरा गांधी को चुनाव में हराने वाले राजनाराण जनता पार्टी से अलग हो गए. राजनारायण अलग होने के बाद जनता धर्मनिरपेक्ष पार्टी का गठन किया. 1979 में संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ जिसे सरकार साबित नहीं कर पाई और गठबंधन की सरकार गिर गई.
गठबंधन सरकार की विफलता ने एक बार फिर से कांग्रेस को मौका दिया. कांग्रेस और सीपीआई के समर्थन से जनता(एस) के नेता चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को प्रधानमत्री बन गए. चौ. चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने चरण सिंह को 20 अगस्त तक लोकसभा में अपना बहुमत साबित करने का निर्देश दिया. लेकिन यहां मामला तब उल्टा पड़ गया जब इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को चरण सिंह सरकार को संसद में बहुमत साबित करने में साथ न देने का ऐलान कर दिया. और इसी के साथ चरण सिंह को लोकसभा में बहुमत साबित करने से पहले अपने प्रधानमंत्री पद स इस्तीफा देना पड़ा. ये दूसरा मौका था जब गठबंधन कि सरकार औंधे मुंह गिर गई. इसके बाद लोकसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव हुए और इंदिरा गांधी ने 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनी .
एक बार फिर सक्रिय हुआ गठबंधन
1989 में एक बार फिर राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस के खिलाफ एक जुट होने लगी और 1989 के आम चुनाव में वीपी सिंह ने तेलुगू देशम पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और असम गण परिषद जैसे क्षेत्रीय दलों को एक साथ लाकर राष्ट्रीय मोर्चा बनाया. इस गठबंधन को वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी से बाहर से समर्थन मिला. यह राष्ट्रीय मोर्चा कांग्रेस खिलाफ जीत दर्ज की और वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार का गठन किया लेकिन गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने पर अल्पमत में आ गई और सरकार गिर गई.
1989-1999 तक सरकारें टूटती बनती रही
90 के दशक में एक के बाद एक अल्पमत या गठबंधन सरकारें आईं. 1989 से 1999 के बीच आठ अलग-अलग सरकारें बनीं. जिसमें कई छोटी पार्टियों का प्रभाव बहुत बढ़ गया क्योंकि उनके पास जो थोड़ी बहुत सीटें थीं वो गठबंधन बनाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण थीं. इसके बाद सरकार टूटती और फिर बनती रही. 1991 में हुए आम चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला लेकिन कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बाद में अजीत सिंह ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बाहर से समर्थन दिया जिससे कांग्रेस की सरकार बनी.
जब 13 दिन की बनीं सरकार
1996 में के लोकसभा चुनाव में ना कांग्रेस और ना ही भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था. इस दौरान 16 मई 1996 को जोड़-तोड़ से बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 दिन चलकर गिर गई. बाद में 13 पार्टियों ने मिलकर यूनाइटेड फ्रंट बनाया और देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल, समाजवादी पार्टी द्रमुक, टीडीपी, एजेपी, वाम मोर्चा (4 दल), तमिल मनीला कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई. कांग्रेस ने इसे बाहर से समर्थन दिया. उसके बाद कांग्रेस ने सीबीआई जांच का बहाना बनाकर कांग्रेस ने देवगौड़ा की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. उसके बाद आइके गुजराल प्रधानमंत्री बने लेकिन कांग्रेस ने डीएमके को सरकार से बाहर करने की मांग की लेकिन जब मांग पूरी नहीं हुई तो उसने संयुक्त मोर्चे सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इस फ्रंट ने 1996 से लेकर 1998 तक दो सरकारें बनाई.
…और 13 महीने में गिर गई सरकार
1998 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जनता दल (यूनाइटेड), एआईएडीएमक, समता पार्टी, बिजू जनता दल, शिरोमणि अकाली दल, राष्ट्रवादी तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, पट्टाली मक्कल काची, लोक शक्ति, मारुमालार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, हरियाणा विकास पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय लोकदल, मिजो राष्ट्रीय मोर्चा, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, मणिपुर राज्य कांग्रेस पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी सहित 16 दलों को साथ में लेकर चुनाव मैदान में उतरी. इस चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की जीत हुई और अटल बिहारी के नेतृत्व में सरकार बनी. लेकिन यह सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी और एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने के कारण सरकार 13 महीने चलकर गिर गई.
एनडीए गठबंधन ने पूरा किया कार्याकाल
1999 में हुए 13 वें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का गठन किया. इस चुनाव में एनडीए ने 299 सीटें जीत कर सरकार बनाई. बाद में एनडीए नेशनल कांफ्रेंस, मिजो नेशनल फ्रंट, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट सहित कुछ अन्य दलों के जुड़ने के बाद गठबंधन दलों की संख्या 24 हो गई. इस गंठबंधन की सरकार ने भारत में पहली बार पांच साल का कार्याकाल पूरा किया.
कांग्रेस ने गठबंधन के सहारे सत्ता में की वापसी
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और राष्ट्रीय जनता दल क साथ लेकर संयूक्त मोर्चा (UPA) का गठन किया. इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवानी वाली एनडीए गठबंधन को 181 सीटें मिलीं और कांग्रेस की यूपीए गठबंधन को 218 सीटें मिलीं. यूपीए गठबंधन को वाम मोर्चा, समाजवादी पार्टी ने बाहर से समर्थन दिया था. ये पार्टियां सरकार में शामिल नहीं थी. 2008 में वाम मोर्चा ने भारत और अमेरिका के मध्य हो रहे नागरिक परमाणु समझौते का विरोध करते हुए यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया. हालांकि यूपीए ने संसद में विश्वास मत हासिल कर लिया और यूपीए गठबंधन सफलतापूर्वक अपना कार्यकाल पूर्ण किया.
यूपीए गठबंधन को जनता का फिर समर्थन
2009 के आम चुनाव में यूपीए ने शानदार वापसी करते हुए लोकसभा की 262 सीटें जीती. इसमें अकेले कांग्रेस ने 206 सीटें जीती थीं. कांग्रेस के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार यूपीए गठबंधन ने सरकार बनाया और मनमोहन सिंह दोबारा प्रधानमंत्री बने. बिना गतिरोध के यूपीए गठबंधन ने कार्यकाल पूर्ण किया.
10 साल बाद भाजपा की वापसी
2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन बीजेपी की अगुवाई में यूपीए गठबंधन के खिलाफ उतरी. इस गठबंधन ने भारतीय जनता पार्टी और मोदी की अगुवाई में 10 साल बाद शानदार वापसी की. इस चुनाव में एनडीए गठबंधन को 336 सीटें मिलीं जिसमें भाजपा अकेले 282 सीटें जीतीं. निर्विरोध नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गए. यूपीए गठबंधन को सिर्फ 59 सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई और वह 44 सीटों पर सिमट कर रह गई. कांग्रेस की सीटें कम होने के कारण लोकसभा में कोई भी विपक्षी दल नहीं है. इससे पहले 1950 से लेकर 1977 तक कांग्रेस के सामने कोई विपक्षी दल नहीं था.
17 वीं लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल अपने अपने सहयोगियों को साधनें में जुटी है. देखने वाली बात होगी की 2019 के लोकसभा चुनाव का परिणाम क्या होता है. गठबंधन सरकार आएगी या एक बार फिर से एक दल सरकार बनाने में कामयाब होगी.