नई दिल्ली: पाकिस्तान द्वारा चीन के अतिमहत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड में शामिल होने के पीछे के कारणो को समझा जा सकता था. लेकिन भारत की चिंताओं के बावजूद नेपाल, म्यांमार, मालदीव और श्रीलंका जिस तरह चीन के इस प्रोजेक्ट में शामिल हुए उससे भारत की विदेश नीति को झटका लगा. जिस प्रोजेक्ट की शुरुआत से पहले ही भारत चीन की आलोचना कर उस पर विस्तारवाद का आरोप लगा रहा था और कह रहा था कि ये प्रोजेक्ट भारत की संमप्रभूता और अखंता के लिए खतरा है उसमें शामिल होकर इन देशों ने साफ कर दिया था कि अब भारत से ज्यादा उन्हें चीन की जरूरत है.
नेपाल दे रहा है भारत को झटका
हाल ही में बिमस्टेक देशों के संयुक्त युद्ध अभ्यास में नेपाल ने शामिल न होकर भारत की चिंता को ओर भी बढ़ा दिया है. नेपाल भारत में हो रही बिमस्टेक देशों के संयुक्त युद्ध अभ्यास को छोड़कर 17 से 28 सिंतबर तक चीन के साथ होने वाले युद्ध अभ्यास में हिस्सा लेने वाला है. नेपाल का ये चीन के साथ होने वाला दूसरा युद्ध अभ्यास होगा. नेपाल का चीन के साथ पहला युद्ध अभ्यास भी इस साल अप्रेल में हुआ था.
नेपाल के इस कदम पर पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा कि नेपाल बेवजह ही भारत को उकसा रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान उन्होने कहा कि भविष्य में संकट में पड़ कर नेपाल को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.
बता दें कि चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से कई देशों को अरबों के कर्ज में डुबा चुका है. इसका ताजा तरीन उदाहरण श्रीलंका है जो चीन के कर्ज तले इतना दब गया कि उसे चुकाने के लिए श्रीलंका को अपना सबसे बेहतरीन पॉर्ट चीन की एक कंपनी को देना पड़ा.
न सिर्फ युद्ध अभ्यास बल्कि नेपाल में तो बिम्सटेक का हिस्सा होने पर भी सवाल उठने लगे हैं. दरअसल बिमस्टेक बंगाल की खाड़ी से लगे देशों का समूह है. लेकिन भारत के प्रयासों से नेपाल जिसकी सीमा बंगाल की खाड़ी से नही लगती वो भी इस समूह में शामिल है. नेपाल को इस समूह का हिस्सा बनाने के पीछे भारत की सबसे बड़ी वजह पाकिस्तान को अलग-थलग करना है.
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भारत बिम्सटेक को सार्क के समान खड़ा करना चाहता है. लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली कह चुके हैं कि सार्क का भविष्य है चुंकि ये सभी सदस्य देशों के सहभागिता बढ़ाने के लिए सभी देशों के नेताओं ने इसे एक क्षेत्रीय संगठन के तौर पर तीन दशकों पहले तैयार किया था.
नेपाल संविधान को लेकर बिगड़े थे रिश्ते
हालांकि 2014 में आए भुकंप के दौरान भारत ने नेपाल की हर तरह से सहायता की थी. लेकिन भुकंप में मदद से कमाई नजदीकी तब दुरियों में बदल गई जब भारत ने कथित तौर पर नेपाल के मधेसी समुदाय के नेपाल संविधान के खिलाफ हुए विरोध का साथ दिया. भारत पर नेपाल ने इल्जाम लगाया कि मधेसियों का समर्थन करने की खातिर भारत ने चारों ओर से जमीन से घिरे नेपाल की नाकाबंदी की जिससे नेपाल में जरूरी सामान की किल्लत हुई.
बता दें कि मधेसी भारत मूल के लोग माने जाते हैं जो उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ लगने वाली नेपाल की सीमा के साथ सटे हुए इलाकों से हैं. मधेसी नेपाल के नए बनाए गए संविधान में समान हक न मिलने का विरोध कर रहे थे.
इसके अलावा जब नेपाल में पिछले साल चुनाव हुए तो उसमें के पी ओली की वामपंथी पार्टी की जीत हुई इसी के साथ माना जाने लगा था कि नेपाल अब कम्युनिस्ट चीन की ओर अपना रुख करेगा.
नेपाल, भारत पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है यही वजह है कि वो अब चीन की ओर अपना रुख कर रहा है. दरअसल नेपाल चारों ओर से जमीन से घिरा हुआ देश है जिससे नेपाल में बाहर देशों से सामान के आयात के लिए इसे अपने पड़ोसी देशों खासकर भारत पर निर्भर रहना पड़ता था. अब इस निर्भरता को कम किया जा रहा है. हाल ही में नेपाल ने चीन के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत चीन नेपाल में समान के आयात-निर्यात के लिए अपने पॉर्ट का इस्तेमाल करने देगा.
हालांकि नेपाल ये कह चुका है कि वो अपने देश से भारत के खिलाफ कोई कार्रवाई नही होने देगा लेकिन ये कहना भी गलत नही होगा कि जिस तरह नेपाल, चीन की ओर आकर्षित होता जा रहा है उससे भारत और नेपाल के बीच वैचारिक दुरियां पैदा जरूर हो गई हैं.
नेपाल, म्यांमार और मालदीव जिस तरह चीन के करीब जाते जा रहे हैं ऐसे में मोदी सरकार की विदेश नीति और नेबर फर्स्ट पॉलिसी पर सवाल खड़े होने लगे हैं.