मजदूर का माफीनामा: नमस्ते जी…बेटा विकलांग है…बरेली जाना है आपकी साइकिल ले जा रहा हूं…आपका कसूरवार

नई दिल्ली। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये सरकार का लॉकडाउन मजदूरों के लिये काल बनता जा रहा है। हजारों किलोमीटर का सफर पैदल तय कर रहे मजदूरों की कहानी सिस्टम की पोल खोल रही है। केंद्र सरकार राज्यों पर और राज्य केंद्र सरकार पर आरोप मढ़ रहे हैं। इन दोनों की बीच लाचार मजदूर अपनी बेबसी का बोझ कंदे पर लादे अपने घर की ओर निकल पड़ा है। भरतपुर से एक ऐसे ही प्रवासी मजदूर की कहानी सामने आयी है। इस मजदूर ने अपने घर जाने के लिये एक शख्स की साइकिल उसे बिना बताये लेकर अपने घर को निकल पड़ा। लेकिन हालात के शिकार इस कामगार ने साइकिल के मालिक के नाम एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में मजदूर ने अपनी मजबूरी बताते हुये माफी मांगी है। सोशल मीडिया पर ये काफी वायरल हो रही है।

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चिट्ठी में पिता ने बतायी अपनी लाचारी

सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी इस चिट्ठी में मजबूर पिता ने नमस्ते के संबोधन के साथ लिखा है कि ‘मैं आपकी साइकिल लेकर जा रहा हूं। हो सके, तो मुझे माफ कर देना जी, क्योंकि मेरे पास घर जाने का कोई साधन नहीं है।

मेरा एक बच्चा है, उसके लिए मुझे ऐसा करना पड़ रहा है , क्योंकि वो विकलांग है, चल नहीं सकता, हमें बरेली तक जाना है। आपका कसूरवार , एक यात्री , एक मजदूर। चिट्ठी में लिखे ये शब्द आत्मा को छू लेने वाले हैं। यही नहीं ये बातें मजदूर की उस मजबूरी को बयां कर रही है कि किन हालातों में वो ऐसा कर रहा है।

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‘साइकिल सही मायने किसी के काम आई’

भरतपुर के रहने वाले साइकिल के मालिक साहब सिंह का कहना है कि साइकिल के सुबह बरामदे से गायब होने के बाद चोरी की आशंका हुई थी। लेकिन इसके बाद झाड़ू लगाते वक्त जब पता चला कि एक मजबूर व्यक्ति साइकिल ले गया है , तो अब कोई मलाल नहीं है। मुझे खुशी है कि साइकिल सही मायने में किसी के काम आ सकी है। साहब सिंह ने बताया कि साइकिल के अलावा भी कई चीजें बरामदे में पड़ी थी, लेकिन उसे इस व्यक्ति ने हाथ तक भी नहीं लगाया है।

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