उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त दफ्तर से एक बड़ी खबर आयी है। वो ये कि लोकायुक्त ने चर्चित आईएएस दीपक सिंघल और राजयसभा सदस्य अमर सिंह के ऑडियो टेप्स की फौरेंसिक जांच करवाने की सिफारिश की है। तेरह साल पहले ये ऑडियो टेप्स सार्वजनिक हुए थे, जिनमें तमाम ऐसी बातें हैं जो भृष्टाचार को लेकर सवाल खड़े करती हैं। इन टेप्स को आम लोगों ने ही नहीं, नेताओं से लेकर अफसरों तक-सबने सुना है, मगर आज तक कार्रवाई नहीं हो सकी है। टेप सामने आने पर शासन से कुछ शिकायतें भी हुईं लेकिन दब के रह गयीं। भृष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ आवाज़ बुलंद करती रहीं एक्टिविस्ट और वकील डा. नूतन ठाकुर ने जरूर हार नहीं मानीं। और मामले को लोकायुक्त तक ले गयीं, जिसपर अपनी आवाज़ का नमूना देने से लगातार बच रहे दीपक सिंघल अब शायद ना नहीं कर पाएंगे।
नयी जमात में से तो शायद ही किसी ने इन टेप्स को सुना हो तो बात आगे बढ़ाने से पहले आइए इन तीन टेप्स के कुछ अंश सुन लेते हैं। हाँ, 2006 में अमर सिंह के सामने आये और तो तमाम टेप्स यू ट्यूब पर आज भी उपलब्ध हैं मगर दीपक सिंघल के साथ बातचीत के कथित टेप्स अब मौजूद नहीं हैं। माना जा सकता है कि किसी बड़े दबाव में यू ट्यूब वालों ने इन्हें अपने सर्वर से डिलीट कर दिया हो। हमें एक अन्य वेबसाइट पद डॉट मा से बातचीत की ये कथित रिकॉर्डिंग हासिल हुई। आप भी सुनिए
तो अब पहले संक्षेप में पूरी कहानी सुन लीजिए। साल 2003 में उत्तरा प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह के लिए उत्तर प्रदेश विकास परिषद् नाम की बॉडी बनाई। जाहिर तौर पर अमर सिंह इसके अध्यक्ष बनाए गए और अमर सिंह ने चर्चित आईएएस अफसर दीपक सिंघल को परिषद् का सचिव बनाया। अब यह बातचीत उसी दौर की है। नूतन ठाकुर का कहना है कि इन टेप्स में दीपक सिंघल शुगर डील, गैस डील, एसईज़ेड के टेंडर डॉक्यूमेंट्स, भूमि आवंटन में मनमाफिक बदलाव, आईएएस संजीव शरण के साथ नोएडा और ग्रेटर नोएडा के प्रोजेक्ट्स में हिस्सेदारी, तत्कालीन मुख्य सचिव पर बाहरी दबाव डलवाने और आरडीए वाले देवेंदर कुमार को 96.5 लाख रुपए पहुंचाने जैसी बाते कर रहे हैं। ये साफ़ तौर पर अनियमिततताओं और भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करती हैं।
डा0 नूतन ठाकुर ने राजसत्ता एक्सप्रेस को बताया कि पहले उन्होंने शासन में शिकायत की थी लेकिन सब रफा-दफा हो गया। उसके बाद कोई दो साल पहले लोकायक्त में शिकायत दर्ज करवाई थी। दीपक सिंघल एक तरफ कहते हैं कि टेप में मेरी आवाज़ नहीं है, दूसरी तरफ अपनी आवाज़ का नमूना देने को तैयार नहीं हैं। साँच को आंच नहीं होनी चाहिए। और अगर दीपक सिंघल को लगता है कि बतौर परिषद् सचिव अपने अध्यक्ष को वो तमाम मसलों पर रिपोर्ट भर करते थे तब भी उन्हें जांच से घबराने की कोई ज़रुरत नहीं है। मज़े की बात यह है कि दीपक सिंघल लोकायुक्त द्वारा इस प्रकरण की जांच पर भी सवाल उठा रहे हैं, वो भी तकनीकी आधार पर। सिंघल ने एक पत्र भेजकर कहा था कि लोकायुक्त पांच साल से ज्यादा पुराने प्रकरण की जांच नहीं कर सकता है जबकि ये टेप 2006 के हैं।
दीपक सिंघल का विवादों से बहुत पुराना नाता रहा है। काफी पहले यूपी के आईएएस एसोशिएशन ने दस महाभ्रष्ट अफ़सरों की लिस्ट बनाई थी जिसमें दीपक सिंघल का नाम था। अखिलेश यादव की सरकार में वो शिवपाल सिंह यादव के बहुत ख़ास थे, और मुख्यमंत्री की मर्जी के बिना शिवपाल ने उन्हें अपने दोनों विभागों पीडब्लूडी और सिंचाई का प्रमुख सचिव बनाकर रखा। अखिलेश उनके छवि और कामकाज के तरीके को पसंद नहीं करते थे। लेकिन दीपक सिंघल ने मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह के वरदहस्त के चलते मुख्य सचिव के तौर पर भी अपनी तैनाती करवा ली, मगर सितम्बर 2016 में अखिलेश ने उन्हें शासन के इस सर्वोच्च पद से अचानक हटा दिया था। इसके पीछे भी कहानी बड़ी रोचक है, बताया जाता है कि 11 सितम्बर को अमर सिंह ने दिल्ली में एक पार्टी रखी थी। इस दौरान जी मीडिया समूह के मुखिया सुभाष चंद्रा और शिवपाल सिंह यादव भी मौजूद थे। पार्टी में बतौर सीएम अखिलेश के काम काज की खूब आलोचना हुई, जिसमें दीपक सिंघल ने भी प्रतिभाग किया। अगले दिन 12 तारीख को दीपक नोएडा के अफसरों की बैठक लेने की तैयारी कर रहे थे और उन्हें लखनऊ से अपनी बर्खास्तगी की खबर मिली।
बहरहाल, अब सवाल यह है कि क्या दीपक सिंघल के खिलाफ लोकायुक्त की जांच तेजी पकड़ पाएगी क्या ? वो इसलिए क्योंकि मामला अमर सिंह से भी जुड़ा हुआ है और अमर सिंह अब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नज़दीक हैं। नूतन ठाकुर की शिकायत भले दीपक सिंघल के ही खिलाफ है लेकिन फ़र्ज़ करिये अगर साबित हो जाता है कि टेप्स में आवाज़ उन्हीं की है तो पूछताछ के दायरे में अमर सिंह भी तो आएँगे ही। याद दिलवा दें कि 2006 में अमर सिंह के बहुत सारे कॉल टेप्स सार्वजनिक हुए थे। इनमें फिल्म अभिनेत्री बिपाशा बसु से रंगीन बातों के अलावा उद्योगपति अनिल अम्बानी से कथित तौर पर कमीशन सेट करने की खुल्लम खुल्ला बातें भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो इन टेप्स के टेलीकास्ट और प्रकाशन पर रोक लगा दी थी, बाद में यह रोक हट गयी थी। अब दीपक सिंघल को लेकर लोकायुक्त का रुख क्या उनकी दिक्कत बढ़ाएगा या नहीं।