अब दो महीने में होगा किसानों के दावों का निपटारा, देरी पर मिलेगा 12 फीसदी ब्याज

नई दिल्ली: केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई बदलाव किए हैं ताकि किसानों के दावे का निपटारा जल्द हो सके. नये बदलावों के बाद अब किसानों के दावों का निपटारा दो माह के भीतर करना होगा. इस अवधि के एक माह बाद बीमा कंपनियों और राज्यों को मुआवजे के साथ जुर्माने के तौर पर 12 फीसदी ब्याज देना होगा. नये नियम एक अक्टबूर से लागू हो गए हैं.

निपटारे में लगता था 5 से 6 माह का वक्त

अब तक कंपनियां दावों का भुगतान करने में 5 से 6 माह का वक्त लगाती थीं. नये नियमों में निर्धारित दो महीने के बाद चार सप्ताह का अतिरिक्त वक्त भी बीमा कंपनी को दिया गया है. इस अवधि के बाद उन्हें 12 फीसदी ब्याज देना होगा. दरअसल पिछले साल के आंकड़ों को देखें तो अधिकतर मामलों में बीमा कंपनियां दावे का निपटारा करने में छह माह तक का वक्त लगा देती थीं. कंपनियां किसानों को फसल का बीमा देने में भी हीलाहवाली कर रही थीं. साल 2017-18 में 17 कंपनियों ने 24 हजार करोड़ रुपए का प्रीमियम इकट्ठा किया लेकिन किसानों को 11,899 करोड़ रुपए का ही मुआवजा मिला, जबकि दावे 16,448 करोड़ रुपए के किए गए थे. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक करीब 3.3 करोड़ किसानों ने 3.3 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि का बीमा इस योजना के तहत कराया.

ये भी पढ़ें- 2022 तक किसानों की आय करेंगे दोगुनी, सरकार ने किसान हित में उठाए कई कदम: कृषि मंत्री

जोखिम का विस्तार

फसल बीमा योजना के दायरे में बारहमासी बागवानी फसलों को भी पायलट आधार पर शामिल किया गया है. अब तक केवल मौसम आधारित फसल ही बीमा योजना में शामिल थी.
ओलावृष्टि, भूस्खलन और जलभराव के अलावा बादल फटना और प्राकृतिक आग को भी स्थानीय आपदाओं में शामिल किया गया है.
फसल कटाई के बाद खेत मे पड़ी फसलों को बे-मौसम बारिश से नुकसान के अलावा ओलावृष्टि को भी बीमा के दायरे में लाया गया है.
थ्रेशहोल्ड उपज/बीमा दावों की गणना के लिए प्रणाली को और अधिक तर्कसंगत बनाया गया है. अब पिछले 7 साल में से सर्वश्रेष्ठ 5 साल की औसत उपज के आंकड़ों के आधर पर बीमा राशि की गणना की जाएगी.

निपटारे में देरी की तो लगेगा जुर्माना

बीमा कंपनियों और बैंकों के लिए हीलाहवाली करने पर जुर्माने और अच्छा काम करने पर प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है.
बीमा कंपनियों की सेवा में कमी, गलती पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा उनके प्रदर्शन के मूल्यांकन और डी-पैनल के लिए विस्तृत मापदंड बनाये गए हैं.
बीमा कंपनियों को कर्ज न लेने वाले किसानों की कवरेज बढ़ाने के लिए 10 फीसदी का लक्ष्य तय किया गया है. लक्ष्य हासिल नहीं होने पर सकल प्रीमियम के एक फीसदी जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है.
नये नियमों में बैंकों की भी जवाबदेही तय की गई है. अगर बैंक किसानों से लिया प्रीमियम बीमा कंपनियों को नहीं भेजता है या समय से नहीं भेजता है तो उस स्थिति में किसानों को देय बीमा दावों के भुगतान का दायित्व बैंक पर होगा.
बीमा कंपनियां अगर किसानों को निर्धारित तारीख से दो माह से अधिक देरी से बीमा दावों का भुगतान करती हैं तो उन्हें 12 फीसदी की दर से वार्षिक व्याज भी देना होगा.
अगर राज्य सरकार बीमा कंपनियों को प्रीमियम सब्सिडी का भुगतान निश्चित अवधि के तीन माह तक नहीं करती है तो उसे भी 12% वार्षिक व्याज देना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- आंदोलन की एक सीमा होती है, सरकार पर भरोसा न करें तो क्या करें: राकेश टिकैत

नए पोर्टल से होगी दावों की निगरानी

सरकार नए पोर्टल pmfby.gov.in के जरिए सभी दावों की निगरानी कर रही है. कंपनियों के लिए पोर्टल में दावे रजिस्टर करना अनिवार्य कर दिया गया है. यह व्यवस्था कंपनियों और राज्यों के लचर रवैये के मद्देनजर लाई गई है, क्योंकि इसके चलते किसानों को बीमा का फायदा नहीं मिल पा रहा था.
प्रशासनिक खर्चों के लिए राज्यों को अलग से कम से कम 2 फीसदी बजट का आवंटन करेंगे. योजना के प्रचार-प्रसार और जागरूकता के लिए भी विस्तृत योजना बनाई गई है. इस मद मे कम से कम प्रति सत्र प्रति कंपनी सकल प्रीमियम का 0.5 फीसदी निश्चित व्यय की अनिवार्यता तय की गई है.
जन सेवा केन्द्रों के जरिए गैर ऋणी किसानो को फसल बीमा किया जा रहा है. पोस्ट ऑफिस से भी गैर ऋणी किसानों को बीमा करने का प्रावधान किया गया है.
बीमा दावों का भुगतान सीधे किसानो के बैंक खातों में किया जाएगा. विवाद या शिकायत के निपटारे के लिए भी खास इंतजाम किए गए हैं. अब सभी तरह की शिकायत/ विवाद के निपटारे के लिए जिला स्तर और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना की जाएगी.

क्यों पड़ी बदलाव की जरूरत ?

पीएम फसल बीमा योजना एक उपज आधारित कार्यक्रम है. इसमें किसानों से खरीफ फसलों के लिए दो फीसदी, सभी रबी फसलों के लिए डेढ़ फीसदी, वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए पांच पीसदी प्रीमियम लिया जाता है. कृषि मंत्रालय के बजट का करीब 30 फीसदी यानी लगभग एक तिहाई, प्रत्येक वर्ष फसल बीमा योजना के प्रीमियम पर खर्च होता है. इस मद में भारी बजट देने और सरकार की कोशिशों के बावजूद किसानों को योजना का उतना फायदा नहीं मिल पा रहा था जितने की उम्मीद की गई थी. इसीलिए नियमों में बदलाव कर दावों के निपटारे में तेजी लाने की कोशिश की गई है. दरअसल किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के लिए बनी दलवई समिति ने फसल बीमा योजना में दावों के भुगतान में देरी की पहचान की है. इसीलिए सरकार ने प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर योजना की निगरानी करने का तंत्र बनाया है. बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय कर सरकार ने वादों के निपटारे में तेजी लाने की कोशिश की है जिसके सकारात्मक नतीजे आने की उम्मीद है.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest Articles