हल्द्वानी। कुमाऊं में धधक रहे जंगलों से पैदा हो रही जहरीली गैस से उत्तराखंड में पक्षियों की 100 से अधिक प्रजातियों के घोंसले उजड़ गए हैं। पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे ज्यादा नुकसान छोटी प्रजाति के पक्षियों को हुआ है। जल चुके जंगलों में इन्हें दोबारा अनुकूल माहौल बनाने में कम से कम एक दशक का समय लगेगा। बता दें कि जंगलों में आग की रोकथाम के लिए जारी किए 7.63 करोड़ रुपये वन अधिकारी दबाकर बैठ गए हैं। उधर, राज्यभर में जंगलों में आग लगने का सिलसिला जारी है।
कुमाऊं में ऊधमसिंह नगर जिले को छोड़ सभी पांच जिलों के जंगल आग की चपेट में हैं। वनसंपदा को इससे भारी नुकसान हुआ है। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) के वैज्ञानिक डॉ.अनिल कुमार के अनुसार झाड़ियों और छोटे पेड़ों में आशियाना बनाकर रहने वाले पक्षी इस समय सबसे मुसीबत में हैं।
उत्तराखंड में पक्षियों की 700 से ज्यादा प्रजातियां हैं। कार्बेट नेशनल पार्क में छोटे-बड़े सभी प्रकार के पक्षियों के लिए अनुकूल माहौल होने के चलते सबसे ज्यादा चिड़िया यहां पायी जाती हैं।
ये पक्षी हुए प्रभावित
जंगल की आग से बुलबुल, स्पैरो, चैट, बैबलर, वावलर, पीजेंट्स आदि प्रजातियां सीधे प्रभावित हुई हैं। ये पक्षी दूसरे इलाके में जाना भी चाहें, तो वहां पहले से रह रहे पक्षी इन्हें स्वीकार नहीं करते।
आग से हुआ नुकसान
आग की सैकड़ों घटनाओं में हजारों पेड़ जल चुके हैं और 16 लाख से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। आज भी हरी टहनियों से आग बुझाने का पारंपरिक तरीका अपनाया जा रहा है। या फिर विभागीय अफसर बारिश के लिए आसमान की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं।
उत्तराखंड में आग का सीजन 15 फरवरी से 15 जून तक माना जाता है। आग की घटनाओं को देखते हुए वन विभाग के वित्त नियंत्रक ने 20 अप्रैल को 7, 63, 96, 000 रुपये रिलीज किये। यह रकम विभाग के नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन अनुभाग ने राज्य के विभिन्न वन प्रभागों समेत विभाग की 50 अन्य इकाइयों को विभिन्न मदों में बांट दी। यह रकम वन प्रभागों ने आग की रोकथाम में कहां खर्च की, इसकी जानकारी उन्हें माह की पहली तारीख को विभाग के नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन अनुभाग को देनी होती है।