15 साल बाद चुनाव मैदान में उतरेंगी मायावती ,इस लोकसभा सीट से होंगी उम्मीदवार

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के बाद से चर्चा है कि बसपा सुप्रीमो मायावती 15 साल बाद एक बार फिर जनता के बीच जाने वाली हैं और लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. चार बार प्रदेश की मुखिया रह चुकी मायावती फिलहाल न तो किसी सदन की सदस्य हैं और न ही उनकी पार्टी का कोई सदस्य लोकसभा में है.

इस सीट से लड़ेंगी

2004 में आखिरी बार मायावती ने अकबरपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीती थीं. 2017 में राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद से वर्तमान में मायावती किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं. मीडिया में चर्चा है कि 15 साल बाद बसपा सुप्रीमो मायावती एक बार फिर से लोकसभा चुनाव लड़ सकती हैं. इस बात का इशारा खुद मायावती ने सपा-बसपा गठबंधन के ऐलान के दौरान किया.

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गठबंधन के ऐलान के बाद मायावती से सवाल किया गया कि क्या आप लोकसभा चुनाव लड़ेंगी ?  और किस लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगी ? इस पर जवाब देते हुए मायावती ने कहा कि इस बारे में जल्द जानकारी मिल जाएगी. सूत्रों का कहना है कि बसपा प्रमुख मायावती नगीना सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ेंगी. जानकारों का कहना है कि पूर्व की बिजनौर सीट का लगभग 60 फीसदी हिस्सा नगीना सीट में ही आता है. पूर्व के चुनावी नतीजे देखते हुए नगीना सीट को मायावती के लिए पूरी तरह से सुरक्षीत भी माना जा रहा है.

जब पहली बार पहुंची संसद

मायावती पहली बार 1989 में बिजनौर संसदीय क्षेत्र से सांसद चुनी गई थी. और एक बार मायावती अकबरपुर संसदीय सीट से भी सांसद रही हैं. परिसीमन के बाद अकबरपुर और बिजनौर सुरक्षित सीट नहीं रह गई हैं. इसलिए नगीना संसदीय सीट को मायावती के लिए सुरक्षित सीट के तौर पर देखा जा रहा है.

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15 लाख वोटर वाली इस सीट पर चार लाख से ज्यादा जहां मुस्लिम मतदाता है वहीं इससे कहीं अधिक जाटव व दलित वोटर भी हैं. 2014 के लोकसभा सीट में यहां से भाजपा के यशवंत सिंह 39 फीसद वो पा कर जीत हासिल किए थे. जबकि 29 फीसदी वोट के साथ समाजवादी पार्टी दूसरे और 26 फीसदी वोट पा कर बसपा तीसरे स्थान पर थी. तय फार्मूले के हिसाब से दूसरे स्थान पर होने के कारण समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की दावेदारी मानी जा रही थी लेकिन मायावती के यहां से लड़ने की इच्छा जताने पर सपा ने गठबंधन में इस सीट को बसपा के लिए छोड़ दिया है. इसके लिए बसपा ने हाथरस सुरक्षीत सीट पर दूसरे स्थान पर रहने के बावजूद सपा के लिए छोड़ने का फैसला किया है.

मायावती का चुनावी सफर

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रही बसपा सुप्रीमो मायावती पहली बार 1984 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के कहने पर कैराना से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ी थीं. मायावती को कैराना लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अख्तर हसन के हाथों हार हुई. लेकिन तीसरे नंबर पर रहने के बावजूद मायावती ने भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी. इस चुनाव में मायावती ने 44.335 वोट के सात तीसरे स्थान पर रही.

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फिर 1985 में बिजनौर में उपचुनाव हुआ इस उप चुनाव में भी मायावती 61,504 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही, जबकि जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार ने जीत दर्ज की. 1987 में मायावती हरिद्वार संसदीय सीट से चुनाव लड़ीं जहां 1,25,399 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं.

1989 में मायावती को बिजनौर संसदीय सीट से जीत हासिल हुई. मायावती को कुल 1,83,189 वोट मिले थे और हार जीत का अंतर महज 8,879 वोटों का था. बसपा सुप्रीमो पहली बार 1994 में राज्य सभा की सदस्य चुनी गई. मायावती 1996-1998 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा में विधायक रहीं.

1998 में मायावती अकबरपुर सीट से संसद पहुंची, बाद में 1999 में मध्यावधि चुनाव के बाद अकबरपुर से 13वीं लोकसभा की सदस्य चुनी गई. 2002 में अकबरपुर संसदीय सीट से इस्तीफा देने के बाद मायावती यूपी विधानसभा सदस्य चुनी गई. मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनी.

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2004 में मायावती एक बार फिर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुना लड़ीं और लोकसभा की सदस्य बनीं. लेकिन 2004 में लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और राज्यसभा चली गईं. 2007 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के दौरान विधान परिषद सदस्य ही रहीं. 2017 में मायावती ने राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही इस्तीफा दे दीं.

चार बार बनीं यूपी की मुख्यमंत्री

बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक मजबूत स्तंभ कि तरह खड़ी हैं. मायावती ने चार बार उत्तर प्रदेश की कमान संभाली हैं.

3 जून 1995 से 18 अक्टूबर 1995 तक पहली बार मायावती सूबे की मुखिया बनीं.

21 मार्च 1997 से 20 सितंबर 1997 तक दूसरी बार मायावती ने मुख्यमंत्री पद संभाला.

3 मई 2002 से 26 अगस्त 2003 तक तीसरी बार लगभग एक साल के लिए प्रदेश की मुखिया बनीं रहीं.

चौथी बार मायावती 13 मई 2007 से 6 मार्च 2012 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं रहीं.

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