कच्चा तेल सस्ता था, तब भी मोदी सरकार ने अपनी कमाई में नहीं छोड़ी थी कसर

एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी के साथ ही एक और ऐसा कदम उठाया गया, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में आग लगने की शुरुआत कर दी।

विश्वजीत भट्टाचार्य: 2014 की दूसरी छमाही में कच्चे तेल की कीमतें घटने लगी थीं। जुलाई 2008 में कच्चे तेल के हर बैरल की कीमत 132 डॉलर थी और जून 2017 में कच्चे तेल का यही बैरल 46 डॉलर का हो गया था। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का ये दौर वित्तीय वर्ष 2017-18 की आखिरी तिमाही तक जारी था, लेकिन कच्चे तेल की इस गिरावट का फायदा केंद्र की मोदी सरकार ने आम आदमी तक नहीं पहुंचने दिया। एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी के साथ ही एक और ऐसा कदम उठाया गया, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में आग लगने की शुरुआत कर दी।

एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर काटी जेब
केंद्र की मोदी सरकार ने बीते साल तक पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी लगातार बढ़ानी जारी रखी। 2017 तक पेट्रोल पर 21 रुपए से ज्यादा और डीजल पर 17 रुपए से ज्यादा की एक्साइज ड्यूटी लगने लगी। अभी की बात करें, तो ऊंट के मुंह में जीरा जितनी राहत देने के बाद भी मोदी सरकार पेट्रोल के हर लीटर पर 19 रुपए 48 पैसे और डीजल के हर लीटर पर 15 रुपए 33 पैसे का एक्साइज वसूल रही है। बता दें कि 2014-15 में पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज लगने से केंद्र सरकार को 99 हजार 184 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी। जबकि, 2017-18 में एक्साइज से कमाई बढ़कर 2 लाख 29 हजार करोड़ से ज्यादा हो गई।

कच्चे तेल की कीमत घटी, लेकिन रिकॉर्ड टैक्स वसूला
पेट्रोल औऱ डीजल पर एक्साइज ड्यूटी के इस खेल से मोदी सरकार ने 2017 में जीडीपी के हर 100 रुपए पर 1.6 रुपए का लाभ कमाया। बता दें कि जब मोदी सरकार ने केंद्र की सत्ता संभाली थी, तब जीडीपी के हर 100 रुपए पर पेट्रोलियम पदार्थों से होने वाली कमाई सिर्फ 70 पैसे ही थी। यानी मोदी सरकार ने तेल पर रिकॉर्ड टैक्स बटोरा। इसकी बड़ी वजह राज्यों को ज्यादा संसाधन के आवंटन में बढ़ोतरी और सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के मुताबिक बढ़ी हुई तनख्वाह रही। इन खर्चों की वजह से ही मोदी सरकार एक्साइज ड्यूटी में छूट देने पर हीलाहवाली करती रहती है।

पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी नहीं चाहते राज्य
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कई बार कह चुके हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के तहत लाना चाहिए, लेकिन जीएसटी काउंसिल में राज्य इससे सहमत नहीं होते। दरअसल, राज्यों को ये लगता है कि अगर पेट्रोलियम पदार्थों पर जीएसटी की अधिकतम 28 फीसदी की दर लगा दी जाए और अलग से वैट भी वसूला जाए, तो भी उनकी कमाई घट जाएगी। उनका तर्क है कि दुनिया में कहीं भी पेट्रोल और डीजल पर जीएसटी नहीं लगता। वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि पेट्रोल और डीजल पर मौजूदा टैक्स पहले ही काफी हो चुका है। ऐसे में जीएसटी का 28 फीसदी लगे और वैट खत्म हो जाए, तो उससे भी केंद्र और राज्यों को नुकसान होगा।


लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं, इनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है.


 

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