नई दिल्ली: केरल में बाढ़ त्रासदी से जूझ रहे लोगों को देश की राज्य सरकारों के साथ-साथ बाहर देशों से भी मदद की जा रही है. एक तरफ जहां वैटिकन सिटी के पोप फ्रांसिस ने केरल की मदद की बात कही है वहीं यूनाइटेड अरब अमीरात (दुबई) ने भी केरल के लिए मदद का हाथ बढ़ाया है.
दुबई ने केरल को 700 करोड़ रूपये की मदद देने की बात कही है जो भारत की केंद्र सरकार द्वारा की गई 600 करोड़ की मदद से ज्यादा है. केरल के मुख्यमंत्री के मुताबिक दुबई के प्रधानमंत्री शेख मुहम्मद बिन राशीद ने दुबई की अर्थव्यवस्था में केरल के लोगों के योगदान के चलते मुसीबत के समय में केरल की मदद करने की बात कही.
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी भी दुबई को सहायता की इस गुजारिश के लिए धन्यवाद दे चुके हैं लेकिन क्या भारत सरकार दुबई की इस मदद को स्वीकार करेगी या नही इस पर अभी भी सवाल बने हुए हैं. द इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार युएई की इस मदद को ठुकरा सकती है. सुत्रों के मुताबिक भारत सरकार युपीए के समय बनाई गई डिजास्टर ऐड पॉलिसी 2004 के तहत इस मदद को अस्वीकार कर सकती है.
बता दें कि डिजास्टर ऐड पॉलिसी 2004 के अनुसार भारत आपदा के वक्त विदेशी सहायता नही ले सकता है. विदेशी सहायता लेने के फैसले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि हम आपदा जैसी परिस्थितियों को खुद से संभाल सकते हैं और जरूरत पड़ने पर बाहरी मदद ले सकते हैं. यानि कि पॉलिसी में विदेशी मदद लेने के सारे रास्ते बंद नही करे गए हैं औऱ सरकार चाहे तो मदद ले सकती है.
2004 से पहले कई आपदाओं के वक्त भारत ने विदेशी मदद को स्वीकार किया था. उत्तरकाशी भुकंप (1991), लातूर भुकंप (1993) गुजरात भुकंप (2001) बंगाल साइकलोन और बिहार में जुलाई 2004 में आई बाढ़ के लिए विदेश मदद को स्वीकारा गया था. 17 अगस्त को केरल दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने 500 करोड़ रूपये की मदद देने की घोषणा की थी. हालांकि केरल सरकार ने 2000 हजार करोड़ रूपये की मांग की थी.
फिलहाल यूएई द्वारा की गई मदद की पेशकश पर मोदी सरकार दुविधा में है यदि वो मदद के लिए हां कर देती है तो वो केरल की स्थिति संभालने में कमजोर साबित हो जाएगी. वहीं यदि वो युएई की मदद को ठुकरा देती है तो केरल में जगह बनाने वाली भाजपा की राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ सकता है.