केंद्र सरकार ने अयोध्या विवाद मामले में विवादित जमीन छोड़कर बाकी जमीन को लौटाने और इस पर जारी यथास्थिति हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. जिसके बाद AIMIM के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी को आड़े हाथों लिया और कहा कि केंद्र सरकार न्यायिक प्रक्रिया को धमकाने का काम कर रही है.
कोर्ट को धमका रही है सरकार
असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया और लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में माना है कि जब तक अयोध्या विवाद का समाधान नहीं हो जाता है तब ये अधिग्रहण की गई अतिरिक्त जमीन पर यथास्थिति बनाए रखनी होगी. इस बात को सरकार भी जानती है. औवेसी ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया को इस तरह से धमकाना बीजेपी की तेजी से घटती राजनीतिक लोकप्रियता को बचाने का एक विफल प्रयास है.
गौरतलब है कि सरकार के इस कदम का जहां एक ओर हिंदूवादी संगठन स्वागत कर रहे हैं वहीं मुस्लिम पक्षकार इस पर आपत्ति जता रहे हैं.
1993 में सरकार ने अधिकृत की थी जमीन
बता दें कि 1993 में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने आयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था और पहले से जमीन विवाद को लेकर दाखिल तमाम याचिकाओं को खत्म कर दिया था. सरकार के इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
तब सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाली अर्जी को बहाल कर दिया था और जमीन केंद्र सरकार के पास ही रखने को कहा था. साथ ही ये निर्देश दिया था कि जिसके पक्ष में अदालत का फैसला आता है, जमीन उसे दी जाएगी.
लेकिन अब मोदी सरकार ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट से गैर- विवादित जमीन 67 एकड़ जमीन को उसके मालिकों को लौटाने के लिए याचिका दायर की है. केंद्र सरकार का कहना है कि विवाद महज 0.313 एकड़ पर ही है इसीलिए गैर-विवादित जमीन को उसके मालिकों को सुपुर्द कर दिया जाए.
किसकी है गैर-विवादित जमीन?
बता दें कि जिस गैर-विवादित जमीन को अधिकृत किया गया है उसमें से 40 एकड़ जमीन रामजन्मभूमि न्यास की है.