पटना। भारत में हो रहे लोकसभा चुनाव में वोट पाकिस्तान के लोग भी डालें तो इसमें हैरान होने वाली कोई बात नहीं । एक पाकिस्तान ऐसा भी है जो भारत में बसता है । वह भी कहीं दूर नहीं, आपके अपने बिहार में ही ।भारत के साथ बिहार ने भी तरक्की की है किन्तु इस ‘पाकिस्तान’ में विकास की रौशनी नहीं गई है । यहां अस्पताल , सड़क, स्कूल, कुछ भी नहीं है | यहां हलचल केवल चुनाव में ही होती है वह भी पत्रकारों की । यहां कोई नहीं आता, सरकारी बाबू हों या मुखिया, कोई कभी नहीं आता । कभी कभार मीडिया वाले आते हैं| फ़ोटो खींचते हैं और फिर बस वही सन्नाटा ।
अपने छोटे से किराने की दुकान में अपना दर्द बायान कर रही थी नेहा, जो कम उम्र में ही मां भी बन गई थी| नेहा ने अपनी दुकान में अमिताभ बच्चन की तस्वीर लगा रखा थी वह भी “लाल ज़ुबान चूरन” का प्रचार करती हुई । अब इस चूर्ण का प्रचार अमिताभ बच्चन ने किया या नहीं यह तो कहना मुश्किल है । नेहा की दुकान में “दुल्हन छाप” नशे वाला स्थानीय गुल से लेकर कुछ दूसरी छोटी -मोटी चीजें भी थीं ।पाकिस्तान में रहने वाली नेहा अपनी दुकान से थोड़ा- बहुत कमा लेती है ।
भारत का यह ‘पाकिस्तान’ बिहार के उत्तर पूर्व में स्थित पूर्णिया जिले का सुदूर इलाका है । जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर श्रीनगर प्रखंड की सिंघिया पंचायत में बसता है यह पाकिस्तान ।सरकारी दस्तावेजों में इस टोले का नाम पाकिस्तान ही है और यहां 1200 की आबादी में 350 मतदाता हैं । पाकिस्तान के मुखिया गंगा राम मुर्मू ने पाकिस्तान टोले को सबसे पिछड़ा बताते हुए कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी यह पाकिस्तान टोला मूलभूत सुविधाओं से वंचित है । गंगा राम मुर्मू ने बताया कि पाकिस्तान वार्ड नंबर 4 में है । पाकिस्तान टोला में कभी भी मतदान कराने के लिए एक भी बूथ नहीं बना और आज भी यहां एक भी बूथ नहीं है ।
उन्होंने बताया कि 2 किलोमीटर दूर भांग बाड़ी में पाकिस्तान के लोगों को वोट गिराने जाना पड़ता है । पाकिस्तान नाम रखे जाने के सन्दर्भ में जानकारी इकठ्ठा करने के दौरान स्थानीय बुज़ुर्ग यद्दु टुडु कहते हैं कि सम्भवतः यहां पहले पाकिस्तानी रहते हों इसलिए इसका नाम पाकिस्तान हो गया जिसे पूर्वजों ने नहीं बदला ।पकिस्तान के कुछ अन्य बुजुर्गों ने बताया कि 1947 में विभाजन के समय इस स्थान में रहनेवाले अधिकांश मुसलमानों ने बंटवारे के समय पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) जाना पसंद किया था। बंटवारे के तुरंत बाद ही सम्भवतः उनकी याद में इस स्थान का नाम पाकिस्तान रख दिया गया । इस पाकिस्तान में जो सबसे हैरान करने वाला था, वह था यहां एक भी मुसलमान का नहीं होना । इस पाकिस्तान में ना तो एक भी मस्जिद है और ना ही मुस्लिम समुदाय का एक भी घर। यहां सिर्फ हिन्दू रहते हैं ।
संथाल आदिवासियों के इस पाकिस्तान में कहीं -कहीं मिट्टी से लिपा-पुता हुआ छोटा -छोटा चबूतरा है जिन पर छोटे-छोटे शिवलिंग बने दिखेंगे जिससे लगता है यहां के लोग हिन्दू धर्म मानते हैं । शहरी आबादी से कटे हुए इस इलाके में रहनेवाले संथाली लोगों की मुख्य आजीविका खेती और मज़दूरी है । पाकिस्तान टोला बाहरी आबादी से सिर्फ़ एक पुल से जुड़ा है ।यह पुल एक ऐसी नदी पर है जो पूरी तरह सूख चुकी है ।ओमैली के गज़ट के अनुसार 16वीं सदी में मूल कोसी नदी यहीं से बहती थी जिससे यह उस समय व्यापार का मुख्य स्थान था | सूख चुकी यह नदी आज कारी कोसी कहलाती है । जैसे -जैसे नदी सूखती गई उस पर खेती होती चली गई ।
फिलहाल यहां शिक्षा स्वास्थ्य से लेकर किसी भी तरह की कोई योजना सरज़मीन पर नहीं दिखती । पांचवीं तक पढ़े अनूप लाल टुडु ने कहा कि सम्भवतः पाकिस्तान नाम होने की वजह से आंगनबाड़ी, स्कूल कुछ भी नहीं है । इसी टोले की 16 वर्षीय मनीषा यहाँ स्कूल नहीं होने की वजह से पढ़ाई नहीं कर सकी जिसकी खीज उसके चेहरे पर साफ़ झलकी ।पकिस्तान से 2 किलोमीटर रोज़ पैदल जाकर सातवीं तक पढ़ाई करने वाली मनीषा ने कहा कि उसके बाद स्कूल पास में नहीं होने से पढ़ाई छूट गई । पाकिस्तान की लड़कियां इसी तरह पढ़ाई छोड़ देती हैं ।अस्पताल -रोड नहीं होने की वजह से यहाँ कोई बीमार पड़े तो रास्ते में ही दम तोड़ दे । यहां के लोगों का सवाल जायज़ है कि उनका जन्म हुआ तो पूर्णिया ज़िले में है लेकिन टोले का नाम पाकिस्तान होने से शायद उन्हें विकास की रौशनी से महरूम रहना पड़ रहा है ।
यहां के लोग जानना चाहते हैं कि टोले का नाम यदि पाकिस्तान है तो इसमें उनकी क्या गलती है ? पाकिस्तान टोला से 12 किलोमीटर श्रीनगर प्रखंड में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है और बीच में उप-स्वास्थ्य केन्द्र में सुविधाएं नहीं हैं । सड़क बनाने के लिए राशि स्वीकृत होने के बावजूद यहां एक ईंट भी नहीं रखी गई है और पाकिस्तान में सड़क भी नहीं है । क़ानून की पढ़ाई कर चुके सिंघिया पंचायत के पूर्व मुखिया प्रेम प्रकाश मंडल ने बताया कि पाकिस्तान में टीवी, अखबार नहीं है, इसलिए यहां लोगों में मेल है । पाकिस्तान में बूथ नहीं होने से चुनाव को लेकर पहले की ही तरह कोई उत्साह नहीं है । यहां के तालेश्वर बेसरा कहते हैं कि नेता कुर्सी पर बैठ कर छोटे आदमी को भूल जाता है फिर भी पाकिस्तान के अधिकांश लोग चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें। दो किलोमीटर दूर जा कर भी हीरा हेंब्रम जैसे इस गांव के लोग नरेंद्र मोदी के नाम पर मतदान करने के लिए तैयार हैं, ताकि उनका सपना पूरा हो जाए।
बुनियादी सुविधाओं से महरूम गरीबी में जीवन गुजार रहे लोगों का यह गांव मोदी का समर्थक है। पाकिस्तान के एक अन्य निवासी हाल्दू मुर्मू ने कहा कि पाकिस्तान के लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखने के लिए भाजपा को वोट देंगे। पूर्णिया में दूसरे चरण में 18 अप्रैल को चुनाव होना है । दरअसल 1770 में बने पूर्णिया ज़िले में अज़ब-ग़ज़ब नामों की भरमार है । यहां पाकिस्तान ही नहीं लंका टोला, यूरोपियन कालोनी, श्रीनगर, शरणार्थी टोला, पटना रहिका और डकैता भी है तो पास के किशनगंज में ईरानी बस्ती और अररिया ज़िले में भाग मोहब्बत है ।