दीन दयाल उपाध्याय मर्डर मिस्ट्री: मधोक ने अटल बिहारी पर लगाया था हत्या का आरोप

सुब्रहमण्यम स्वामी ने तब गृहमंत्री रहे चरण सिंह से दीनदयाल उपाध्याय की मौत की फिर से जांच की मांग की थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने जांच नहीं होने दी. वहीं, जिन नानाजी देशमुख पर मधोक ने हत्या की साजिश का आरोप लगाया, वही नानाजी देशमुख कह रहे थे कि दीनदयाल उपाध्याय के पास कुछ गोपनीय दस्तावेज थे और उन्हें हासिल करने के लिए ही किसी ने हत्या करा दी.

फोटो साभार: deendayalupadhyay.org

विश्वजीत भट्टाचार्यः भारतीय जनसंघ के सहसंस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत की मिस्ट्री की गूंज 50 साल बाद एक बार फिर से सुनाई दी है. सन् 1968 के इस मामले की सरकार सीबीआई जांच करा सकती है. दरअसल, 10/11 फरवरी की दरम्यानी रात ही दीनदयाल उपाध्याय की लाश मुगलसराय रेलवे यार्ड में संदिग्ध हालात में पाई गई थी. उनकी मौत ट्रेन से गिरकर हुई थी या किसी ने हत्या के इरादे से उनको चलती ट्रेन से फेंका था ? इस सवाल का जवाब अब तक नहीं मिल पाया है. लेकिन हाल में खबर है कि केंद्र सरकार इस मामले के खुलासे के लिए फिर से सीबीआई जांच करा सकती है, आइए जानते हैं कि 50 साल पहले 10 फरवरी 1968 की देर रात दीनदयाल उपाध्याय किस हालत में मिले थे और जनसंघ के किस नेता ने अपनी पार्टी के किन बड़े नेताओं पर दीनदयाल उपाध्याय की हत्या कराने का आरोप लगाया था.

देर रात मिली थी लाश

दीन दयाल उपाध्याय की लाश 10 फरवरी 1968 की रात करीब साढ़े तीन बजे मुगलसराय रेलवे यार्ड में पटरी से करीब 150 गज दूरी पर बिजली के खंभा नंबर 1267 के पास से गुजर रहे रेलवे के कर्मचारी ईश्वर दयाल को मिली थी. ईश्वर दयाल ने देखा कि एक व्यक्ति खंभे के पास औंधे मुंह पड़ा है, जिसने शरीर पर सिर्फ बंडी और धोती पहनी थी, उस शख्स को देखकर ईश्वर दयाल ने असिस्टेंट स्टेशन मास्टर को जानकारी दी. जिसके बाद असिस्टेंट स्टेशन मास्टर खुद मौके पर पहुंचे और उनके पीछे-पीछे जीआरपी के दारोगा फतेहबहादुर सिंह अपने साथ सिपाही राम प्रसाद और अब्दुल गफूर को लेकर पहुंचे.

दिल्ली की जगह पटना क्यों जा रहे थे ?

पुलिस को दीनदयाल उपाध्याय की लाश के हाथ भींचे हुए मिले थे. एक हाथ में पांच रुपए का नोट दबा था. इसके अलावा लाश के पास से फर्स्ट क्लास का टिकट, रिजर्वेशन की रसीद, नाना देशमुख लिखी कलाई घड़ी और 26 रुपए बरामद हुए. जांच में पता चला कि 11 फरवरी 1968 को दिल्ली जनसंघ की संसदीय दल की बैठक थी. वहां दीनदयाल उपाध्याय को जाना था. वो उस वक्त लखनऊ में थे. तो फिर दीनदयाल उपाध्याय बिहार क्यों जा रहे थे ? हरीश शर्मा की दीनदयाल उपाध्याय पर लिखी किताब ये खुलासा करती है. किताब में लिखा गया है कि 10 फरवरी को बिहार में जनसंघ के संगठन मंत्री अश्विनी कुमार ने फोन किया और पटना में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने का आग्रह किया. इसके बाद दीनदयाल उपाध्याय ने दिल्ली में सुंदर सिंह भंडारी को बताया कि वो दिल्ली नहीं आ रहे और पटना जा रहे हैं.

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फोटो साभारः Google

इस ट्रेन में था रिजर्वेशन

दीनदयाल उपाध्याय पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस में फर्स्ट क्लास के ‘ए’ कूपे में थे. इसी कूपे में उनके साथ जियोग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एमपी सिंह भी थे. लखनऊ से इसी कूपे में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के कांग्रेस सदस्य गौरीशंकर राय भी सवार हुए थे. जिस गाड़ी में दीनदयाल उपाध्याय थे, वो पटना नहीं जाती थी. ऐसे में फर्स्ट क्लास कोच को काटकर दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस में जोड़ा जाना था. इसमें आधे घंटे का समय लगा. सुबह 6 बजे दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस पटना पहुंची, लेकिन दीनदयाल उपाध्याय इसमें नहीं थे. उनकी लाश मुगलसराय यार्ड में बरामद हो चुकी थी और जनसंघ के किसी भी नेता को इसकी जानकारी तक नहीं थी. लाश की शिनाख्त मुगलसराय स्टेशन पर काम करने वाले बनमाली भट्टाचार्य नाम के व्यक्ति ने की थी. वो दीनदयाल उपाध्याय को पहचानते थे. बनमाली ने ही जनसंघ के स्थानीय नेताओं को इसकी जानकारी दी और फिर टिकट के नंबर से पहचान हुई कि मृतक दीनदयाल उपाध्याय ही थे.

 कौन ले जा रहा था दीनदयाल का बिस्तर

पुलिस की पूछताछ में दीनदयाल उपाध्याय के सहयात्री रहे एमपी सिंह ने बताया कि मुगलसराय ट्रेन पहुंची, तो वो टॉयलेट की तरफ गए. उसका दरवाजा बंद था. इस दौरान एक युवक दीनदयाल उपाध्याय का बिस्तर लेकर जा रहा था. उस युवक ने पूछने पर बताया कि उसके पिता उतर गए हैं और वो बिस्तर लेकर जा रहा है। एमपी सिंह को पता ही नहीं था कि दीनदयाल उपाध्याय कुंवारे थे. इस वजह से उनका शक इस ओर नहीं गया। बाद में लालता नाम के इस युवक को पुलिस ने गिरफ्तार किया और पूछताछ में उसने पुलिस को बताया कि रामअवध नाम के व्यक्ति ने दीनदयाल उपाध्याय की बर्थ का नंबर देकर कहा था कि वहां लावारिस बिस्तर पड़ा है, जिसे उठा लाए. लालता ने पुलिस को बताया कि उसने ये बिस्तर 40 रुपए में किसी को बेच दिया. दीनदयाल का जैकेट और कुरता भरत नाम के सफाई कर्मचारी से पुलिस ने बरामद किया.

सीबीआई जांच के बाद भी खुलासा नहीं

दीनदयाल उपाध्याय की मौत की मिस्ट्री के खुलासे के लिए सीबीआई को जांच सौंपी गई. सीबीआई को पटना स्टेशन के जमादार भोला ने बताया कि उसे एक आदमी ने फर्स्ट क्लास की बोगी साफ करने के लिए कहा. वहीं, मुगलसराय स्टेशन पर एक कुली ने पुलिस को बताया कि 10 सितंबर 1968 की रात किसी आदमी ने बोगी को यार्ड में आधे घंटे खड़ा रखने के एवज में 400 रुपए देने की पेशकश की थी. सीबीआई ने इस मामले में रामअवध और भरतलाल को आरोपी बनाया. ये केस बनारस में चला और 9 जून 1969 को सेशन जज मुरलीधर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सीबीआई जांच में कई बातें साफ नहीं हैं. जज ने रामअवध और भरतलाल को हत्या के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन चोरी के आरोप में भरत को 4 साल की सजा सुना दी.

बलराज मधोक

मधोक ने लगाए अटल बिहारी पर आरोप

दीनदयाल उपाध्याय की मौत के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष बने. चार साल बाद उन्होंने ये पद लालकृष्ण आडवाणी को सौंपा. 1973 में कानपुर में जनसंघ के अधिवेशन में पार्टी के संस्थापकों में से एक और पार्टी का संविधान लिखने वाले बलराज मधोक ने एक नोट में जनसंघ के आर्थिक नजरिए का विरोध किया.

आरएसएस के हस्तक्षेप का भी मधोक ने विरोध किया. इसके बाद आडवाणी ने अनुशासन तोड़ने के आरोप में मधोक को जनसंघ से निकाल दिया. पार्टी से निकाले जाते ही मधोक ने आरोप लगाया कि दीनदयाल उपाध्याय की हत्या कराई गई थी और ये साजिश अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख ने रची थी. मधोक ने अपनी आत्मकथा ‘जिंदगी का सफर’ में लिख भी है कि दीनदयाल उपाध्याय ने वाजपेयी और नानाजी को पार्टी के अहम पद नहीं दिए थे. इस वजह से भाड़े के हत्यारों से दीनदयाल की हत्या करा दी गई.

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मधोक ने ये आरोप भी लगाया कि 1977 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने पर सुब्रहमण्यम स्वामी ने तब गृहमंत्री रहे चरण सिंह से दीनदयाल उपाध्याय की मौत की फिर से जांच की मांग की थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने जांच नहीं होने दी. वहीं, जिन नानाजी देशमुख पर मधोक ने हत्या की साजिश का आरोप लगाया, वही नानाजी देशमुख कह रहे थे कि दीनदयाल उपाध्याय के पास कुछ गोपनीय दस्तावेज थे और उन्हें हासिल करने के लिए ही किसी ने हत्या करा दी.

आरोप-प्रत्यारोप में दब गया मामला

ऐसे ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा और दीनदयाल उपाध्याय की मौत की मिस्ट्री भी अपनी जगह बनी रह गई. अब 50 साल बाद अगर केंद्र सरकार इसकी तहकीकात कराती भी है, तो उस समय जो गवाह या पुलिसकर्मी थे, उनमें से कितने अब जिंदा होंगे ये कहना मुश्किल है. कुल मिलाकर आसार इसी के हैं कि दीनदयाल की मौत की इस मिस्ट्री का शायद अब कभी खुलासा नहीं हो सकेगा.

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