बिहार सरकार को पटना हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट मंगलवार को जातीय जनगणना को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है। इस फैसले के बाद बिहार में एक बार फिर से जातीय जनगणना शुरू हो सकेगी। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जाति आधारित गणना पर रोक की मांग को लेकर कुल छह याचिका दायर की गई थी, कोर्ट ने आज सभी को खारिज कर दिया।
पटना हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कहा कि अब हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। उनका कहना है कि बिहार सरकार को जाति गणना कराने का अधिकार नहीं है। नीतीश सरकार के जातिगत जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में 6 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। मंगलवार को सुनवाई के दौरान पटना हाईकोर्ट ने सभी याचिका खारिज कर दी।
बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट में नगर निकायों एवं पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को कोई आरक्षण नहीं देने का हवाला दिया। उन्होंने कहका कि ओबीसी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 फीसदी और एसटी को एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है। सरकार ने यह जातीय गणना इसलिए जरूरी है कि सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है।
याचिकाकर्ता ने अपनी दलील में कहा कि बिहार सरकार के पास इस सर्वे को कराने का अधिकार नहीं है। नीतीश सरकार ऐसा कर संविधान का उल्लंघन कर रही है। याचिका में कहा गया कि जातीय गणना में लोगों की जाति के साथ-साथ उनके कामकाज और उनकी योग्यता का भी ब्योरा लिया जा रहा है यह गोपनीयता के अधिकार का हनन है। जातीय गणना पर 500 करोड़ रुपए की बर्बादी होगी।
आपको बता दें कि यह सर्वे 2 चरणों में होना था। इसका पहला चरण जनवरी में हुआ। वहीं दूसरा चरण 15 अप्रैल से चल रहा है। यह पूरी प्रक्रिया इस साल मई महीने तक पूरी होनी थी। लेकिन 4 जुलाई को हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। एक अगस्त को एक बार फिर नीतीश सरकार के पक्ष में फैसला आया है।