सभी जानते हैं कि हमारे हिन्दू धर्म में हर दिन किसी ना किसी भगवान की पूजा की जाती है और व्रत रखें जाते हैं। हर माह में एकादशी और पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। जिनका अपना-अपना बहुत महत्व होता है। इसी तरह हर माह में प्रदोष व्रत को भी रखा जाता है। इस माह 17 फरवरी यानि कि आज के दिन प्रदोष व्रत को रखा जाता है। जो बच्चों से लेकर बूढ़े तक कर सकते हैं। वैसे तो आप प्रदोष व्रत का महत्व और उपाय जानते होंगे। कहते हैं कि इस व्रत को करने से आपके सारे कष्टों का नाश होगा। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत से जुड़ी कथा-
प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा-
स्कंद पुराण में बताया गया है कि प्राचीन काल में एक बार एक विधवा थी जो ब्राह्मण थी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा के लिए जाती थी और शाम को लौट आती थी। एक बार की बात है जब वह विधवा भिक्षा लेकर वापिस आ रही थी तो नदी के किनारे उसे एक छोटा और सुंदर बालक मिला, जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था, जिसे शत्रुओं ने उसके राज्य से बाहर कर दिया था। युद्ध में राजकुमार के पिता की मृत्यु हो चुकी थी और उसका राज्य हड़प लिया था। इस अनाथ राजकुमार देख विधवा का मन पिघल गया और वह उसे अपने साथ ले आई और पालन पोषण करने लगी। वह उसे अपने पुत्र की तरह की प्रेम करती थी। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई।
मंदिर में विधवा की मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि बालक विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे। राजा तो युद्ध में मारे गए लेकिन बाद में उनकी रानी यानी कि उस बालक की माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ये दुखभरी कहानी सुनकर ब्राह्मणी का दिल भर आया। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
जिसके बाद से सभी ऋषि शाण्डिल्य की आज्ञा के अनुसार विधि-विधान से प्रदोष व्रत करने लगे। व्रत करते हुए एक दिन दोनो बालक जंगल में घूम रहे थे कि उन्हे अचानक गंधर्व कन्याएं नजर आईं। ब्राहम्ण बालक के घर लौटने के बाद राजकुमार धर्मगुप्त वहीं रह गए। बता दें कि अंशुमती” नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर राजकुमार आकर्षित हो गए थे। गंधर्व कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया।
जिसे देखकर गंधर्व कन्या के पिता जान गए कि ये विदर्भ देश का राजकुमार है। राजा ने दोनो का विवाह करवा दिया। जिसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त अपने राज्य को पाने के लिए युद्ध किया और विजय हुए। विजय होने के पश्चात उन्हे समझ आया कि ये ऐसे ही नहीं उन्हे मिल गया प्रदोष व्रत का ही फल उन्हे मिला है।