नई दिल्ली: आयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद को लेकर समाधान मध्यस्थता के जरिए होगा या नहीं इसपर आज सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा. बुधवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों को सुना था. पीठ ने कहा था कि विवाद को मध्यस्थता के लिये सौंपा जाए या नहीं इस बारे में बाद में आदेश दिया जाएगा.
पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मध्यस्थों के नाम सुझाने को कहा था. इस प्रकरण में मुस्लिम पक्षों और निर्मोही अखाड़े ने अलग-अलग नाम सौंप दिए हैं. हालांकि अन्य हिंदू पक्षों ने मध्यस्थता का विरोध किया है और इस कारण उन्होंने कोई नाम भी नहीं सौंपे हैं. गौरतलब है कि पहले भी चार बार मध्यस्थता के प्रयास किए गए लेकिन असफल रहे.
दरअसल, कोर्ट चाहता है कि 70 साल से भी अधिक समय से जारी अयोध्या विवाद का मध्यस्थता के जरिए सर्वमान्य समाधान निकाला जाए. बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह केवल जमीन का नहीं बल्कि लोगों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला है.
शीर्ष अदालत ने विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
निर्मोही अखाड़ा जैसे हिंदू संगठनों ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति ए के पटनायक और न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी के नाम मध्यस्थ के तौर पर सुझाए जबकि स्वामी चक्रपाणी धड़े के हिंदू महासभा ने पूर्व प्रधान न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए के पटनायक का नाम प्रस्तावित किया.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिये भेजा जाए या नहीं इस पर आदेश देगा. साथ ही इस बात को रेखांकित किया कि मुगल शासक बाबर ने जो किया उसपर उसका कोई नियंत्रण नहीं और उसका सरोकार सिर्फ मौजूदा स्थिति को सुलझाने से है.