नई दिल्ली: ये कहना कुछ गलत नही होगा की रोहिंग्याओं का कोई देश नही है और वो सीमा पर रहने वाले लोग बन चुके हैं. यूं तो रोहिंग्याओं की समस्या सालों पुरानी है लेकिन पिछले साल इस मामले को लेकर हुई म्यांमार की आलोचना के बाद लगा था कि म्यांमार इन लोगों को अपना लेगा. लेकिन इन लोगों की मजबूरी और पीड़ा के आगे संयुक्त राष्ट्रसंघ और म्यांमार के दावे सब धरे रह गए, ये अब भी अपने दिन सीमा पर गुजारते हैं.
कम से कम 90 प्रतिशत रोहिंग्या मुस्लमान म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश की सीमा पर जा बसे हैं. संयुक्त राष्ट्रसंघ के मुताबिक बांग्लादेश ने 9,60,000 से भी ज्यादा रोहिंग्या शर्णीथियों को पनाह दे रखी है. बांग्लादेश में छप्पर और लकड़ी से बने घरों में रह रहे इन रोहिंग्या शर्णाथियों का तो पता नही लेकिन बांग्लादेश सरकार को ये उम्मीद जरूर है कि एक दिन ये लोग अपने देश लौट जाएंगे.
वो दिन जब रोहिंग्या ये कह सकेंगे की हम इस देश के निवासी हैं आएगा या नही इसका तो पता नही है. लेकिन तस्वीरों के जरिए ये जान लेते हैं कि बांग्लादेश के कैम्पों में इनकी जिंदगी कैसी गुजर रही है.
रोहिंग्या मुस्लमानों ने सीमा पर बने कैंपों के साथ-साथ अपनी छोटी सी अर्थव्यवस्था तैयार कर ली है. कई शरणार्थियों ने दुकाने खोल ली है तो कोई सब्जियां बेचकर इस शरणार्थी अर्थव्यवस्था को चला रहा है.
ओक्सफैम ग्रुप द्वारा किए जा रहे एक सर्वेक्षण के मुताबिक 9 लाख लोगों में से 2 लाख रोहिंग्याओं के घर बाढ़ औऱ भुस्खलन की चपेट में आ सकते हैं और यदि ऐसा होता है तो उससे बचने का कोई उपाय नही है.
संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक बांग्लादेश के कैम्पों में रह रहे लोगों में 55 प्रतिशत बच्चे हैं. इन बच्चों की शिक्षा के लिए कोई जरूरी इंतजामात नही है यानि इनके भविष्य पर भी अंधेरा ही मंडरा रहा है.
वहीं एक चौंका देने वाला आंकड़ा ये भी है कि लगभग 5,500 रोहिंग्या शरणार्थी परिवारों के कर्ता-धर्ताओं की उम्र 18 साल से कम है.
फोटो साभार- अलजजीरा