नई दिल्ली: केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की पीठ ने एक अगस्त, 2018 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस फैसले को जहां देश भर में महिलाओं के सामान अधिकार और उनके सम्मान से जोड़कर देखा जा रहा है वहीं फैसला सुनाने वाली पीठ में शामिल एकमात्र महिला जज इंदू मल्होत्रा महिलाओं को लेकर मंदिर की परंपरा में अदालती दखल के पक्ष में नहीं रहीं.
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कानूनी मामले रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार इस फैसले की दिलचस्प बात यह रही कि पांच जजों की पीठ में शामिल इकलौती महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा का मत अलग था. जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने बहुमत से असहमति रखते हुए अपने फैसले में लिखा कि धार्मिक मान्यताओं को समानता के अधिकार के आधार पर नहीं परखा जाना चाहिए. उनके मुताबिक आस्था के मामलों में तर्क की जगह नहीं होती और यह पूजा करने वालों पर निर्भर करता है कि उसकी प्रक्रिया क्या होगी न कि कोर्ट पर. जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने यह भी कहा कि मौजूदा फैसला सिर्फ सबरीमाला तक ही सीमित नहीं रहेगा और इसका असर आगे जाएगा. उनके मुताबिक धार्मिक भावनाओं से जुड़े मामलों को इतने सामान्य तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए.
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फैसला सुनाते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ‘धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है. उम्र के आधार पर (महिलाओं को) मंदिर में जाने से रोकना धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है.’ बता दें कि सबरीमाला मंदिर में 10 से लेकर 50 साल की उम्र तक की महिलाओं को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी. यह परंपरा आठ सदियों से चली आ रही थी.