नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार रोकथाम अधिनियम में संशोधन करने वाले विधेयक को बुधवार को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी और इसे संसद के जारी सत्र में विचार एवं स्वीकृति के लिए पेश किया जाएगा.
राजनाथ ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान कहा, “मुझे नहीं पता कि अब क्यों सदस्य यह मुद्दा उठा रहे हैं. मुझे लगता है कि वे जागरूक हैं और उन्हें पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति (एससी/एसटी) अत्याचार रोकथाम संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है.”
SC ने अपने आदेश से एससी/एसटी अधिनियम को हल्का कर दिया था- राजनाथ
उन्होंने कहा कि पूरा देश जानता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश से एससी/एसटी अधिनियम को हल्का कर दिया था. अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि अधिनियम के दायरे में आने वाले लोगों के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए एससी/एसटी अधिनियम के तहत भी किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उसके खिलाफ प्रारंभिक जांच की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर अधिनियम को किसी तरह से हल्का किया जाता है तो हम विधेयक लाएंगे. इसमें किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं है, उन्होंने (मोदी) यह वादा किया था.” राजनाथ ने कहा, “हम संसद के इसी सत्र में विधेयक को पेश करेंगे ताकि कानून बनाया जा सके.”
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गृह मंत्री की यह टिप्पणी एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधान को बहाल करने के फैसले के एक दिन बाद आई है. इस फैसले से आरोपी व्यक्ति को बिना प्रारंभिक जांच या प्रारंभिक मंजूरी के गिरफ्तार किया जा सकेगा.
सर्वोच्च न्यायालय ने इसी प्रावधान पर जताई थी आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम,1989 के तहत स्वत: गिरफ्तारी और आपराधिक मामला दर्ज किये जाने पर हाल में रोक लगा दी थी. यह कानून भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ हाशिये पर रहने वाले समुदायों की रक्षा करता है.
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है. हालांकि उन्होंने ये बात बिना किसी आंकड़े के कही है. बिना कोई आंकड़ा पेश किए ही इस कानून के दुरुपयोग की बात कही गई.
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क्या हैं इस कानून के प्रावधान
एससी-एसटी एक्ट 1989 में ये व्यवस्था की गई कि अत्याचार से पीड़ित लोगों को पर्याप्त सुविधाएं और कानूनी मदद दी जाए, जिससे उन्हें न्याय मिले. इसके साथ ही अत्याचार के पीड़ितों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था की जाए.
इस एक्ट के तहत मामलों में जांच और सुनवाई के दौरान पीड़ितों और गवाहों की यात्रा और जरूरतों का खर्च सरकार की तरफ से उठाया जाए. प्रोसिक्यूशन की प्रक्रिया शुरू करने और उसकी निगरानी करने के लिए अधिकारी नियुक्त किए जाएं और इन उपायों के अमल के लिए राज्य सरकार जैसा उचित समझेगी, उस स्तर पर समितियां बनाई जाएं. उन क्षेत्रों का पता लगाना जहां एससी और एसटी पर अत्याचार हो सकते हैं और उसे रोकने के उपाय करने के प्रावधान किए गए.