एक तरफ राजनेता चुनावी रैलियां निकालने में लगे हुए हैं तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों से उनके चुनावी बॉंड का हिसाब मांगा है। 30 मई तक बताना होगा कि कितना पैसा मिला है। हालांकि, सर्वोच्चा न्यायालय ने राजनीतिक दलों को चंदे देने के लिए बने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने से शुक्रवार को इनकार कर दिया है। लेकिन सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे 30 मई तक चुनाव आयोग को सीलबंद लिफाफे में बताएं कि उन्हें बॉन्ड के जरिए 15 मई तक कितना पैसा मिला है। साथ ही यह भी बताएं कि किसने कितना चंदा दिया और किस खाते में जमा कराया गया। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में अपना अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनाव आयोग भी अगले आदेश तक बॉन्ड से एकत्रित धनराशि का ब्योरा सीलबंद लिफाफे में ही रखे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म और कॉमन कॉज नामक संस्थाओं ने इस मामले में जनहित याचिकाएं दायर की थीं।
लेकिन, आम लोग अब भी नहीं जान पाएंगे कि किसने, किस पार्टी को कितना पैसा दिया है। क्योंकि पार्टियां जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को देंगी। आयोग भी कोर्ट के अगले आदेश तक ब्योरा सीलबंद लिफाफे में रखेगा।
चुनावी बॉन्ड बारे में वह सब कुछ जो वोटर के नाते आपके लिए जानना जरूरी है…
चुनावी बॉन्ड क्या है : सरकार 2016 में पॉलिटिकल फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड का कॉन्सेप्ट लाई। इनमें तीन पक्ष होते हैं। पहला- दान देने वाला। यह व्यक्ति, कंपनी या संस्था हो सकती है। दूसरा- राजनीतिक दल, जिसे यह दिया जाता है। तीसरा- बैंक, जहां से बॉन्ड जारी होता है। बॉन्ड 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रु. का है।
यह कैसे काम में आता है? : चंदा देने वाला सिर्फ चेक या डिजिटल पेमेंट से ही बॉन्ड खरीद सकता है। उसके बाद वह इसे राजनीतिक दल को दे देता है। फिर वह राजनीतिक दल बैंक से इसे कैश करा लेता है। बॉन्ड सिर्फ 15 दिन के लिए मान्य होता है।
खरीदने के नियम क्या हैं?
बॉन्ड खरीदने के लिए चंदा देने वाले को केवाईसी देनी होती है। बैंक ब्याज नहीं देता।
बैंक बॉन्ड खरीदने वाले की जानकारी नहीं दे सकता। बॉन्ड एसबीआई की ब्रांच में मिलते हैं।
बॉन्ड खरीदने का जिक्र बैलेंस शीट में करना होता है। इससे टैक्स रिबेट मिलता है। बॉन्ड उसी पार्टी को दिया जा सकता है, जिसने चुनाव में कुल वोट का 1% वोट हासिल किया हो।
इस पर विवाद क्या है? : चुनावी बॉन्ड बेयरर चेक की तरह होता है, इसमें चंदा देने वालों का नाम गुप्त रखा जाता है। इसी पर विवाद है, क्योंकि आरोप है कि पार्टियां ही कालेधन को सफेद करने के लिए संस्थाओं के जरिए अवैध पैसे से बॉन्ड खरीदवाती हैं।
2018 में बॉन्ड से 1,057 करोड़ मिले थे, 2019 में 3 महीने में ही 1,716 करोड़ रु. मिल गए : एक आकलन के मुताबिक 2017 में 221 करोड़ के बॉन्ड बिके थे, इनमें से 210 करोड़ भाजपा को मिले थे। 2018 से अब तक सबसे ज्यादा मुंबई में 878 करोड़ रु. के बॉन्ड खरीदे गए।
सबसे ज्यादा 95.54% राशि दिल्ली में निकाली गई, कोलकाता में 4.13% : एक भी बॉन्ड मुंबई में कैश नहीं हुआ, जबकि सबसे ज्यादा 878 करोड़ रुपए के बॉन्ड मुंबई में ही खरीदे गए थे।