नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार के मामले में महिला को दोषी माना जाए या नहीं इस पर अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 (अडल्टरी) को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. 9 अगस्त को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर ने आईपीसी के सेक्शन 497 को अपराध के दायरे से बाहर करने का आदेश दिया है. चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने अपने फैसले में कहा कि अडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है लेकिन यह अपराध नहीं होगा.
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क्या है व्यभिचार कानून
कानून के मुताबिक, दूसरे व्यक्ति की पत्नी के साथ विवाहेतर यौन संबंध बनाने पर सिर्फ पुरुष के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन महिलाओं को ऐसे अपराध में दंड से मुक्त रखा गया है. इस धारा में यह भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में लिप्त पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है. उसके अलावा अगर कोई परिवार का अन्य सदस्य शिकायत करता है जो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में कहा कि धारा 497 में विवाह संस्था का समर्थन करते हुए उसे सुरक्षा प्रदान किया गया है.
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क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ना शुरू किया. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि संविधान सभी के लिए है और समानता समय की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है. पति महिला का मालिक नहीं है बल्कि महिला की गरिमा सबसे ऊपर है. आईपीसी 497 महिला के सम्मान के खिलाफ. महिला और पुरूष को समान अधिकार प्राप्त हैं. कोर्ट ने महिला से असम्मान का व्यवहार को असंवैधानिक करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी के बाद संबंध अपराध नहीं हैं. धारा 497 मनमानी का अधिकार देती है.