फिरोजाबाद। उत्तर प्रदेश के प्रथम परिवार के रूप में देखे जाने वाले सैफई परिवार के शिवपाल यादव की साख सुहाग नगरी फिरोजाबाद में दांव पर लगी हुई है। परिवार की गुटबंदी और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सपा संस्थापक के भाई शिवपाल यादव व उन्हीं के पारिवारिक भ्राता प्रो. रामगोपाल यादव एक दूसरे के आमने-सामने आकर खड़े हो गए हैं। रामगोपाल के पुत्र अक्षय यादव पुन: सपा एवं गठबंधन प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं। वहीं दूसरी ओर शिवपाल यादव भी इसी सुहाग नगरी से अपनी नवगठित पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) (प्रसपा) के प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं। अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि इनमें से कौन अपनी साख बचा पाता है और किसका राजनीतिक सफर भंवर में डुबकी लगाता है।
2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में उत्तर प्रदेश की 73 लोकसभा सीटों पर राजग ने कब्जा कर कीर्तिमान स्थापित किया था, लेकिन उस समय भी सपा प्रत्याशी अक्षय यादव को भाजपा प्रत्याशी प्रो एसपी सिंह बघेल मात देने में असफल रहे थे। यह सैफई परिवार का असर तो था ही, इस परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रहे विधायक रामवीर सिंह यादव व विधायक हरिओउम यादव के परिश्रम का भी फल था। साथ ही फिरोजाबाद का जातिवादी समीकरण भी उनके पक्ष में स्पष्ट दिखाई दे रहा था। वहीं दूसरी ओर फिरोजाबाद के पूर्व विधायक व मुस्लिम नेता अजीम भाई इनके कट्टर समर्थकों में थे। समय बदला।
लोकसभा चुनाव: तीसरे चरण में होगा यादव परिवार की किस्मत का फैसला
अनेक वार सैफई परिवार की उथल- पुथल भरे बयानों के रूप में पारिवारिक कलह वाहर आने लगी और 2017 के विधानसभा चुनावों में यह दरार के रूप में स्पष्ट दिखाई देने लगी। उसके बाद तो यह और ज्यादा दिखाई देने लगी, जव प्रो रामगोपाल यादव व शिवपाल यादव अक्सर एक दूसरे के विरूद्व मंचों पर बयानवाजी करते भी नजर आने लगे। परिणामस्वरूप अखिलेश यादव के सपा अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल ने अपनी अलग राह चुन ली। शिवपाल के अनुसार उन्होंने इस बीच अनेक वार अपमान का सामना किया। उनका यह भी मानना था कि उनके इस अपमान में सदैव प्रो रामगोपाल यादव की ही मुख्य भूमिका होती रही। परन्तु इन लोगों ने अपनी प्रतिद्वन्द्विता व अपमान, सम्मान के प्रदर्शन के लिए फिरोजाबाद को ही केन्द्र बिन्दु बना लिया और अंत में जव शिवपाल यादव द्वारा प्रसपा का गठन किया गया, तो उन्होंने भी सुहाग नगरी के मैदान-ए-जंग को अपनी कर्म स्थली बनाने की ठान ली। अब सपा और गठबंधन प्रत्याशी के रूप में सांसद अक्षय यादव चुनाव मैदान में हैं, तो दूसरी तरफ प्रसपा के मुखिया शिवपाल यादव भी यहीं से चुनाव लड़ रहे है।
वर्तमान परिस्थतियों में अगर अक्षय यादव के साथ गठबंधन में शामिल बसपा का परम्परागत वोट जुड़ चुका है, तो इनके पुराने साथी रामवीर सिंह ने भाजपा की राह पकड़ ली है और हरिओउम यादव सपा के विधायक होने के बाद भी खुलकर शिवपाल के साथ खड़े हैं। वहीं मुस्लिम नेता अजीम भाई भी प्रसपा के जिलाध्यक्ष के रूप में शिवपाल यादव के चुनाव की कमान संभाले हुए हैं। इस बात को भुलाया नहीं जा सकता कि नगर निगम के चुनाव में अजीम भाई ने खुलकर सपा प्रत्याशी का विरोध किया था। इसी कारण मुस्लिम वोटों के एक बड़े भाग का धुवीकरण अन्य प्रत्याशी की ओर हो गया था। इससे भाजपा प्रत्याशी को जीतने का आधार प्राप्त हुआ था। आज वह शिवपाल को जिताने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर कुल छह उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। मुख्य मुकाबले में गठबंधन से अक्षय यादव चुनाव मैदान में हैं, तो वहीं दूसरी ओर प्रसपा मुखिया शिवपाल यादव स्वयं चुनाव मैदान में हैं।
छत्तीसगढ़ में दांव पर भाजपा की प्रतिष्ठा
भाजपा ने आरएसएस कार्यकर्ता डॉ चन्द्रसेन जादौन को चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि आगरा के पूर्व विधायक चौधरी वशीर भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान हैं। ये चुनावी लड़ाई से वाहर रहते हुए भी कुछ मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में कर सकते हैं। इससे सपा को नुकसान पहुंचने के आसार हैं। कांग्रेस ने सैफई परिवार के सामने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है। मुख्य संघर्ष में चाचा-भतीजे के साथ भाजपा प्रत्याशी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। त्रिकोणीय संघर्ष में कौन किसके वोटों में सेंध लगा सकता है, अंतिम समय में इस बात के प्रयास जारी हैं। यादव बाहुल्य इस सीट पर बैसे तो कुल 17,40,563 मतदाता हैं, जिनमें चार लाख वोट यादव व सवा लाख वोट मुस्लिम हैं, जो सपा का परम्परागत वोट माना जाता है।
लेकिन इस बार गठबंधन होने से 1.5 लाख अनुसूचित जाति का वोट भी सपा प्रत्याशी अपने खाते में मान रहे हैं, हालांकि प्रसपा के शिवपाल यादव द्वारा सपा के परम्परागत वोटों में सेंध लगाने का काम किया जा रहा है। प्रसपा के प्रत्याशी भाजपा के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं। भाजपा प्रत्याशी डॉ चन्द्रसेन जादौन अपने परम्परागत वोटों के साथ ही नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रवाद के नाम पर चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहे हैं।