शिक्षा नीति के निर्माताओं को स्थानीय भाषाओं में शिक्षण पर फोकस करना चाहिए: उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने कहा कि अब समय आ गया है कि विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों, नैतिकता एवं आचार-विचार विकसित करने और स्वयं को ज्ञान एवं नवाचार के एक केन्द्र (हब) के रूप में विकसित करने के लिए भारत अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली को नई दिशा प्रदान करे। उन्होंने उच्च शिक्षा प्रणाली में पूरी तरह से बदलाव लाने पर विशेष जोर दिया, ताकि यह २१वीं सदी की अत्यंत तेजी से बदलती जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो सके। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम एवं अध्यापन व्यवस्था में अपेक्षित बदलाव लाने के अलावा व्यावहारिक शिक्षण पर विशेष बल देने की जरूरत है। उपराष्ट्रपति ने आज नई दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के ३२वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए विद्यार्थियों से कहा कि अपने सपनों को साकार करने के लिए उन्हें पूरी तन्मयता एवं ईमानदारी के साथ अपना कार्य करना चाहिए।

उन्होंने इग्नू के मुख्य परिसर या कैम्पस और इसके विभिन्न क्षेत्रीय केन्द्रों से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले दो लाख से भी अधिक विद्यार्थियों को डिग्रियां एवं डिप्लोमा प्रदान किए। उन्होंने विद्यार्थियों से स्वयं को प्राप्त सर्टिफिकेट, डिप्लोमा एवं डिग्रियों के योग्य साबित करने का अनुरोध किया। प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे ‘नये भारत’ का निर्माण करने के लिए अथक प्रयास करने चाहिए, जो गरीबी, अशिक्षा, भय, भ्रष्टाचार, भूख और भेदभाव से मुक्त हो। उच्च शिक्षा से जुड़े क्षेत्र को बेहतर करने के लिए गुणवत्तापूर्ण दृढ़ विश्वास अत्यंत आवश्यक है। साथ ही उन्होंने निजी एवं सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्थानों में क्रमशः अत्यधिक वाणिज्यीकरण और कमजोर गवर्नेंस की समाप्ति के लिए कठोर उपाय करने पर विशेष बल दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो निश्चित तौर पर किसी भी व्यक्ति को और ज्यादा उत्पादक बनाने के अलावा उन्हें सामाजिक, आचार-विचार एवं नैतिक मूल्यों से युक्त जवाबदेह व्यक्ति के रूप में परिणत कर दे।

नायडू ने कहा कि अपनी युवा आबादी की बदौलत भारत को कई मायनों में बढ़त हासिल है। साथ ही उपराष्ट्रपति ने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि कौशल विकास सुनिश्चित करना और युवाओं को विभिन्न पेशों से जुड़ा आधुनिक प्रशिक्षण देना अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे एक कुशल श्रमबल के रूप में विकसित हो सकें। भारत के पारम्परिक ज्ञान आधार को संरक्षित करना और इसे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ एकीकृत करना अत्यंत जरूरी है, क्योंकि हम एक ज्ञान आधारित समाज के निर्माण की दिशा में बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने देश की शिक्षा प्रणाली के निर्माताओं से एनसीसी, एनएसएस इत्यादि के जरिए विद्यार्थियों में स्वयंसेवा की भावना विकसित करने के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं में शिक्षण पर फोकस करने को भी कहा है।

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