अयोध्या में अविवादित 67 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास को देने की अर्जी लगाकर केंद्र की मोदी सरकार ने एक पत्थर से दो शिकार किए हैं. उसने मुस्लिम पक्ष के साथ सुप्रीम कोर्ट के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है.
कोर्ट को इस तरह फंसाया
अगर सुप्रीम कोर्ट 67 एकड़ जमीन न्यास को देने से स्टे नहीं हटाता है, तो हिंदू समुदाय में वह सवालों के और घेरे में कसेगा. सुनवाई टालकर वह पहले ही हिंदूवादियों के निशाने पर है. फिर यह बात प्रचारित की जाएगी कि कोर्ट ही मुद्दे को लटका रहा है.
कोर्ट हां कहे तो मुस्लिमों को मुश्किल
अगर सुप्रीम कोर्ट जमीन देने के मामले में स्टे हटा देता है और राम जन्मभूमि न्यास इस 67 एकड़ जमीन पर मंदिर का ढांचा खड़ा कर देता है, तो मुस्लिम पक्ष के लिए मुश्किल होगी.
वजह यह है कि जमीन पर राम मंदिर का जो ढांचा खड़ा होगा, उससे 0.313 एकड़ विवादित जमीन घिर जाएगी. ऐसे में अगर कोर्ट यह फैसला सुना दे कि विवादित जमीन पर मस्जिद बने, तो उस जमीन तक पहुंचना भी मुश्किल होगा. ऐसे में कोर्ट के फैसले के बावजूद मुस्लिम पक्ष न तो मस्जिद की तामीर करा सकेगा और न ही 0.313 एकड़ जमीन पर पहुंचकर कोई नमाज अदा कर सकेगा.
कल्याण सिंह के समय अधिग्रहित हुई थी जमीन
यह 67 एकड़ जमीन 1991 में यूपी की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने अधिग्रहित की थी. 1992 में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने इसे अपने कब्जे में ले लिया था. 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे विवाद के निपटारे तक किसी को भी देने पर रोक लगा दी थी.