“धान के कटोरे” में दुर्दशाग्रस्त किसानों की सोचने वाला कोई नहीं !

बलौदाबाजार। “धान का कटोरा” के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के मतदान का एक दौर निबट चुका है। यहां बीते तीन बार यानी 15 साल से बीजेपी का शासन है और रमन सिंह सीएम हैं, लेकिन किसानों की दुर्दशा के बारे में सोचने वाला कोई नहीं है। हजारों किसान बीते 15 साल में जान दे चुके हैं, लेकिन हालात नहीं बदले। छत्तीसगढ़ में किसानों और खेती का हाल क्या है, इसका अंदाजा इसी से लगता है कि 30 अक्टूबर 2017 तक ढाई साल में छत्तीसगढ़ में 1344 किसानों ने खुदकुशी कर ली थी। यानी हर साल औसतन 519 किसानों या एक दिन में एक किसान ने खेती की जगह खुद की जान देना मुनासिब समझा। किसानों की खुदकुशी में राज्य में दूसरे स्थान पर बलौदाबाजार रहा। जहां 210 किसानों ने खुदकुशी की।

लोकसभा में साल 2016 में केंद्र सरकार ने बताया था कि उस साल भारत में कुल 6351 किसानों ने खुदकुशी की थी, जिसमें से 9 फीसदी किसान छ्त्तीसगढ़ के थे। इस तरह किसानों की खुदकुशी के मामलों में छत्तीसगढ़ का स्थान पांचवां था। बता दें कि छत्तीसगढ़ में करीब 43 लाख किसान हैं। राज्य का 77 फीसदी हिस्सा ग्रामीण है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 17 फीसदी कृषि से आता है।

छत्तीसगढ़ में किसान किस कदर बेहाल है, ये इसी से पता चलता है कि यहां हर किसान के परिवार का औसत मासिक खर्च 1375 रुपए है। चुनावी साल को देखते हुए जुलाई 2018 में रमन सिंह सरकार ने धान खरीद के लिए समर्थन मूल्य में 13 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए प्रति क्विंटल धान 1750 रुपए और पहले दर्जे का धान 11 फीसदी ज्यादा रेट यानी 1770 रुपए प्रति क्विटंल पर खरीदने का एलान किया था। जबकि, 2013 में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि वो केंद्र सरकार से आग्रह करेगी कि वो धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2100 रुपए प्रति क्विंटल कर दे और साथ ही बोनस मिलाकर किसान को 2400 रुपए प्रति क्विंटल का भाव मिले।

ये वादा महज घोषणापत्र में ही सिमटकर रह गया। रमन सिंह सरकार ने तीसरी बार भी जब सत्ता संभाली, तो किसानों के हित में तमाम कदम उठाने का वादा किया, लेकिन “चाऊर बाबा” के नाम से प्रसिद्ध रमन सिंह ने किसानों के बारे में केंद्र में अपनी ही सरकार से कितनी बार मदद की गुजारिश की, इसका कोई अता-पता नहीं है।

कुल मिलाकर “धान का कटोरा” कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान उगाने वाले किसानों का ही कोई पुरसाहाल नहीं है। ऐसा शायद ही कोई गांव हो, जहां किसी किसान ने खुदकुशी न की हो, लेकिन बीजेपी को बीते 15 साल के अपने शासन में किसानों की दुर्दशा देखने की शायद फुर्सत नहीं मिली है।

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