केंद्र हो या राज्य बीजेपी के लिए गठबंधन की सहयोगियों को साधना मुश्किल हो रहा है। यूपी में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष मोर्चा खोले हुए हैं। जबकि बिहार में पुराने सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा (upendra kushwaha) के अलग होने के बाद लोजपा (ljp)के भी सुर बदल गए हैं। इस सबके बीच यूपी में भी सहयोगी अपना दल की नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (anupriya patel) के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।
वो है कोटा के अंदर कोटा, जिससे उनका वोट बैंक बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। अब अनुप्रिया पटेल को तय करना है, कि वो बीजेपी के साथ आगे की राह तय करेंगी। या कुछ अलग फैसला करेंगी।
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पिछड़ों के कोटे के होंगे टुकड़े
दर असल यूपी में योगी सरकार ने पिछड़ों के आरक्षण को बांटने का निर्णय लिया है। जिसकी रिपोर्ट कुछ दिन पहले आ गई है। समिति ने पिछड़ों के आरक्षण को तीन भागों में बांटने का सुझाव दिया है। जिसमें पिछड़ों में संपन्न जातियों को 7 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई है। संपन्न जातियों में यादव (अहीर), कुर्मी (पटेल), चौरसिया जाट, कुर्मी, सोनार को रखा गया है। वहीं अन्य जातियों को अति पिछड़ी जातियो को 9 प्रतिशत, और महा पिछड़ी जातियों को 11 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही है।
पटेल वोट बैंक के नाराज होने का खतरा
जस्टिस राघवेंद्र की समिति की रिपोर्ट के आधार पर पिछड़े वर्ग का बंटवारे का प्रस्ताव 2019 से पहले करने की योजना है। जिसका प्रस्ताव मौजूदा विधानसभा में ही रखा जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो कुर्मियों की राजनीति करने वाले ‘अपना दल’ के सामने अपने वोट बैंक के हितों की रक्षा करने का सवाल खड़ा हो गया है। क्योंकि जब वो अपनी बिरादरी के सामने जाएंगे तो उनके सामने आरक्षण का मामला जरूर उठेगा। जिसका जवाब अनुप्रिया पटेल को देना मुश्किल होगा। क्योंकि आरक्षण में कटौती होने से उनकी जाति का सबसे बड़ा हिस्सा अन्य पिछड़ों के खाते में जा रहा है।
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अनुप्रिया के पास बचे सिर्फ दो रास्ते
ऐसे में बीजेपी के साथ रहते हुए अनुप्रिया के पास दो रास्ते हैं। एक वो जिसमें वो अपनी जाति और वोट बैंक के लिए लड़ें उनके आरक्षण को बचाएं। दूसरा रास्ता ये कि वो बीजेपी के भरोसे उनके साथ जाएं और अपने वोट बैंक को बचाकर राजनीति को आगे ले जाएं। अब देखना है अनुप्रिया किस राह पर चलती है।