Coronavirus: कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग क्या बला है…कोरोना में कितनी मददगार है ये तकनीक

राजसत्ता एक्सप्रेस। कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण को रोकने के लिए तमाम उपाय किये जा रहे हैं। लॉकडाउन का फैसला लिया गया, ताकि आप घर में रहें और कोरोना आपको छू भी न सकें। सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दिया गया, ताकि संक्रमण एक से दूसरे में न फैले। इस तरह कोरोना को काबू करने के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। अब अगर आपके दिमाग में भी ये प्रश्न आया है कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कोरोना को कोबू करने में कैसे काम आती है और ये कितनी कारगर है, तो ये जानने के लिए आपको ये पूरा आर्टिकल पढ़ना होगा। ये आपको सारे कंफ्यूजन को दूर कर देगा।

बात ब्रिटेन की करते हैं, जहां कोरोना वायरस के संक्रमण को काबू करने के लिए लाखों लोगों की गतिविधियां ट्रैक की जा रही हैं। लोगों को ये निर्देश दिए जा रहे हैं कि वे कहां जा रहे हैं, किससे मिल रहे हैं। इस पर वो खुद नजर बनाए रखें। संक्रमण से पीड़ित लोगों के संपर्क में आए लोगों की जानकारी जुटाने के लिए  सरकार कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कर रही है और इसके लिए 18 हज़ार लोगों को तैनात करने का फैसला लिया गया है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए कहा जा रहा है।

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भारत में भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जा रही है और इसके लिए तकनीक की मदद ली जा रही है। इसके लिए भारत सरकार लेकर आई है आरोग्य सेतु ऐप, जिसे 2 अप्रैल को लॉन्च किया गया। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए इस ऐप को काफी महत्वपूर्ण कहा जा रहा है। ये ऐप 11 भाषाओं में उपलब्ध है। इसके माध्यम से आप घर बैठे अपने आसपास कोरोना संक्रमित मरीजों से जुड़ी जानकारी हासिल कर सकते हैं। हालांकि, इसमें हमारा डेटा कितना सुरक्षित है। अगर ये सवाल आपके मन में हैं, तो बता दें कि इसको लेकर बकायदा सरकार की ओर से नोटिफिकेशन जारी किया गया था। जिसमें कहा गया है कि ये ऐप यूजर्स की निजता का पूरा ध्यान रखकर ही बनाया गया है। सरकार के इस नोटिफिकेशन के बाद भी विपक्षी दल को आरोग्य सेतु ऐप खटक रहा है, वजह निजता।

इसके अलावा कई राज्यों ने भी अपने स्तर पर मोबाइल ऐप शुरू किए हैं। जिसमें पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा की सरकारों शामिल हैं, जिन्होंने मोबाइल ऐप की शुरुआत की है, ताकि लोगों तक कोविड 19 से संबंधित जानकारियां पहुंच सकें। ये भी कहा जा रहा है कि इन ऐप्स के माध्यम से कोरोना संक्रमित मरीजों और होम क्वारंटाइन पर रखे लोगों की निगरानी की जा रही है। ये तो हो गई ऐप और उससे इस्तेमाल से जुड़ी बात। अब जान लेते हैं आखिर ये कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग है क्या? कैसे ये काम करता है? क्या इस प्रक्रिया में आपको शामिल होना जरूरी है। अगर आप इसका हिस्सा बनते हैं तो आपका डाटा कितना सुरक्षित हैं?

कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग क्या है ?
1- संक्रामक बीमारियों को फैलने की गति को कम करने के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का इस्तेमाल किया जाता है।
2- कहते हैं कि अमूमन इसका इस्तेमाल सेक्शुअल हेल्थ क्लीनिकों में किया जाता है।
3- अब कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के इस्तेमाल का मकसद उन लोगों का पता लगाता है, जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में लंबे वक्त तक रहे हैं, ताकि उन लोगों को सेल्फ आइसोलेट होने के लिए कहा जा सके।
4- इस प्रक्रिया को संक्रमित लोगों के दोस्तों और परिवार के लोगों को फ़ोन करके पूरा किया जाता है।
5- ऑटोमेटेड लोकेशन ट्रैकिंग मोबाइल ऐप का भी सहारा लेकर ये काम किया जाता है।

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भारत के अलावा कोरोना वायरस से प्रभावित हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर और जर्मनी समेत कई देश कॉन्टैक्ट ट्रैकिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। मई के मध्य में ब्रिटेन भी कॉन्टैक्ट ट्रैकिंग ऐप और फ़ोन टीम के इस्तेमाल का प्लान बना रहा है। ब्रिटेन इस की उम्मीद किए बैठा है कि कई हफ्तों की सोशल डिस्टेंसिंग के बाद अब संक्रमण के नए मामलों को ट्रैक करना आसान होगा।

क्या होगा ब्रिटेन में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का स्वरूप?
कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए ब्रिटेन में 18 हजार लोगों की टीम बनाई जाएगी, जिसमें 3 हज़ार सिविल सर्वेंट और हेल्थ वर्कर होंगे। जबकि 15 हजार लोग कॉल हैंडलर होंगे। ये वो लोग होंगे, जो कोरोना संक्रमित मरीजों की हाल की गतिविधियों और उनके संपर्कों से जुड़ी जानकारी हासिल करेंगे। इसके बाद उनके संपर्क में आए लोगों को
कॉन्टैक्ट किया जाएगा। इस प्रक्रिया के लिए टेलीफ़ोन सिस्टम और ट्रैसिंग ऐप दोनों का इस्तेमाल किया जाएगा। कहा जा रहा है कि इसे अगले कुछ हफ्तों में स्मार्टफ़ोन में डाउनलोड करने की भी फैसेलिटी दे दी जाएगी।

बताया जा रहा है कि इस फ़्री ऐप के यूजर जैसे ही आपस में संपर्क करते हैं, वैसे ही ब्लूटूथ का इस्तेमाल कर इसे ट्रैक किया जा सकता है। एक बार ट्रैकिंग शुरू होते ही, इसका ऑटोमेटिक कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग प्रोसेस काम करना शुरू कर देता है। ट्रैक किए जाने वाले यूजर के संपर्क में आए लोगों को क्वारंटाइन के लिए कहा जा सकता है या फिर उन्हें कोरोना की जांच कराने की सलाह दी जा सकती है। कहा जा रहा कि जिन लोगों के पास स्मार्टफोन होगा, उनकी कलाई पर ब्लूटूथ वाली पट्टी बांधी जा सकती है।

क्या कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग से लॉकडाउन खत्म हो जाएगा?
ये भी एक अहम सवाल है। ऐसा 100 फीसदी तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन कई देशों में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग लॉकडाउन ख़त्म करने या इसमें छूट देने में काफी मददगार साबित हुई है। इसका उदाहरण दक्षिण कोरिया है, जहां कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन नहीं लागू किया गया था। वहां शुरू से ही
बड़े पैमाने पर ट्रेसिंग की जा रही थी। साथ ही, लोगों की टेस्टिंग भी बड़े तादाद में की जा रही थी। माना जा रहा है कि अगर ब्रिटेन में भी इस तकनीक का इस्तेमला होता है, तो लॉकडाउन में थोड़ी ढील मिलने में मदद मिल सकती है। हालांकि इसका संदेह भी जताया जा रहा है कि ब्रिटेन के लोग खुद को ट्रैक करने की इजाजत देंगे या नहीं।

हमारे डेटा का सरकार क्या करेगी?
सरकार की कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की योजना से हर कोई खुश नहीं है, क्योंकि उनका डेटा किसी थर्ड पार्टी को पहुंच रहा है। मानवाधिकार संगठन लिबर्टी का भी कहना है कि डेटा प्राइवेसी के जोखिम के सवाल को सरकार को गंभीरता से लेना होगा। लोगों को सरकार कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए बाध्य नहीं कर सकती है।  हालांकि हेल्थ सर्विस के डिज़िटल डेवलपमेंट विभाग एनएचएसएक्स ( NHSX) का कहना है कि इससे लाखों लोग ऐप पर भरोसा जताएंगे और इसपर दी जाने वाली सलाह का पालन करेंगे। सिर्फ़ स्वास्थ्य और रिसर्च उद्देश्यों के लिए ही इस ऐप के ज़रिए इकट्ठा जानकारी इस्तेमाल होंगी। अगर जब चाहें, ऐप को डिलीट भी कर सकते हैं। बार-बार ये भी कहा जा रहा है कि इन ऐप्स का वर्जन हैकरों को डेटा हैक नहीं करने देगा। बावजूद इसके कई लोग कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर भरोसा नहीं जात पा रहे हैं।

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