कुंभ जाने से पहले जाने कुंभ की क्या है खासियत ?
15 जनवरी मकर संक्रांति से प्रयागराज में कुंभ शुरू हो रहा है जो 4 मार्च महा शिवरात्रि के अंतिम शाही स्नान के साथ संपंन होगा. इस बार कुंभ मेला बेहद खास है. संगम नगरी इलाहाबाद का नाम बदले जाने के बाद से प्रयागराज कुंभ का नाम लोगों के जुबान पर चढ़ने लगा है. बहुत कम लोग हैं जो कुंभ से जुड़ी बातें जानते हैं.
प्रत्येक 3 वर्ष पर कुंभ
सबसे बड़ा मेला कुंभ का आयोजन 12 वर्षों पर होता है. 6 वर्षो के अंतर में अर्ध कुंभ के नाम से मेले का आयोजन होता है. 14 जनवरी 2019 में आयोजित होने वाले प्रयाग में अर्ध कुंभ मेले का आयोजन होने वाला है. इसके बाद साल 2022 में हरिद्वार में कुंभ मेला होगा और साल 2025 में फिर से इलाहाबाद में कुंभ का आयोजन होगा और साल 2027 में नासिक में कुंभ मेला लगेगा. कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है. हरिद्वार के बाद प्रयाग, नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है. प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जानें वाले कुंभ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है.
4 तीर्थ स्थानों पर कुंभ
शास्त्रों के अनुसार चार विशेष स्थान है, जिन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है. नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर, हरिद्वार और प्रयाग में गंगा नदी के तट पर आयोजित किया जाता है.
प्रयाग कुंभ की खासियत
प्रयाग मेल बाकि कुंभ मेलाओं की तुलना में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसके पीछे कुछ आध्यात्मिक कारण हैं. माना जाता है कि यह कुंभ प्रकाश की ओर ले जाता है. ये एक ऐसा स्थान है जहां बुद्धिमत्ता का प्रतीक यानि सूर्य का उदय होता है. मान्यता है कि यहां जिस स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन होता है उसे ब्रह्माण्ड का उद्गम और पृथ्वी का केंद्र माना जाता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि ब्रह्माण्ड की रचना से पहले ब्रह्मा जी ने यहीं अश्वमेघ यज्ञ किया था. मान्यता ये भी है कि इस यज्ञ के प्रतीक स्वरुप के तौर पर दश्वमेघ घाट और ब्रम्हेश्वर मंदिर अभी भी यहां मौजूद हैं. ये भी एक कारण है जिसके चलते प्रयाग का कुंभ इतना प्रसिद्ध है.
पौराणिक मान्यता
कुंभ को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें प्रमुख समुद्र मंथन के दौरान निकलनेवाले अमृत कलश से जुड़ा है. महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया. तब भगवान विष्णु ने उन्हें दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी. क्षीरसागर मंथन के बाद अमृत कुंभ के निकलते ही इंद्र के पुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गए.
उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा कर उसे पकड़ लिया. अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक लगातार युद्ध होता रहा. इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में कलश से अमृत बूंदें गिरी थीं. शांति के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत बांटकर देव-दानव युद्ध का अंत किया. तब से जिस-जिस स्थान पर अमृत की बूंदें गिरीं थीं, वहां कुंभ मेले का आयोजन होता है.
कुंभ में स्नान का पुण्य
शास्त्रों में कहा गया है कि कुंभ में स्नान करने से इंसान के पापों का प्रयाश्चित हो जाता है. प्रयाग में दो कुंभ मेलों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है. कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन शुरु होता है. इस दिन जो योग बनता है उसे कुंभ स्नान-योग कहते हैं. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पुराने पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इन आठ तिथियों को होंगे शाही स्नान
14-15 जनवरी 2019: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)
21 जनवरी 2019: पौष पूर्णिमा
31 जनवरी 2019: पौष एकादशी स्नान
04 फरवरी 2019: मौनी अमावस्या (मुख्य शाही स्नान, दूसरा शाही स्नान)
10 फरवरी 2019: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
16 फरवरी 2019: माघी एकादशी
19 फरवरी 2019: माघी पूर्णिमा
04 मार्च 2019: महा शिवरात्रि