नेहरू संग्रहालय पर क्यों होती है सियासत!

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर नेहरू संग्रहालय से छेड़छाड़ न करने की गुजारिश की है. प्रधानमंत्री मोदी को लिखे गए एक पत्र में उन्होने कहा कि नेहरू संग्रहालय की प्रकृति और सरंचना में बदलाव नही किए जाने चाहिए. हालांकि नेहरू संग्रहालय में भाजपा सरकार में होने वाले बदला वों को लेकर कांग्रेस अब तक कई बार आपत्ति जता चुकी है लेकिन इस बार मनमोहन सिंह द्वारा पत्र लिखे जाने से साफ हो गया है कि कांग्रेस किसी भी कीमत पर नेहरू को समर्पित तीन मूर्ती भवन पर भाजपा का हस्तक्षेप नही चाहती है.

वहीं मोदी सरकार तीन मूर्ति पर नेहरू के दबदबे को हटाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है. जिसके लिए नए प्रस्ताव के मुताबिक तीन मूर्ती भवन में अब भारत के सभी प्रधानमंत्रियों को जगह देने की बात कही गई है.

लेकिन क्या वजह हैं कि भाजपा तीन मूर्ति में बदलावों को लेकर इतनी आतुर है.

इसका जवाब कांग्रेस और भाजपा के बीच विरासत को लेकर होने वाली राजनीति है. दोनों पार्टियां इतिहास के नजरिए से खुद को महत्वपूर्ण साबित करने की होड़ में रहती है और इसी कड़ी में वो अपने-अपने आदर्शों और उनकी विरासत को ज्यादा से ज्यादा जनता के सामने रखने की कोशिश करती है. मोदी सरकार भारतीय लोकतंत्र और इतिहास पर से नेहरु के एकाधिकार को कम करने की कोशिश कर रही है. यही वजह है कि आईआईटी बॉम्बे हो या गुजरात का सरदार सरोवर बांध जिसका उद्घाटन नेहरु द्वारा किया गया था, प्रधानमंत्री मोदी ने इनकी स्थापना के बारे में बोलते हुए नेहरु के नाम का जिक्र करना भी मुनासिब नही समझा.

मोदी सरकार कई बार कांग्रेस पर कई नेताओं को साइड लाइन करने का आरोप लगा चुकी है जिनमें सरदार पटेल भी शामिल हैं. हालांकि सरदार पटेल कांग्रेसी थे और भाजपा या संघ से उनका किसी तरह का रिश्ता नही था. फिर भी कांग्रेस पर उन्हें साइडलाइन करने का आरोप लगाकर भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पर ये आरोप लगाने की कोशिश करती है कि उन्होने केवल एक निर्धारित परिवार के लोगोंं को ही आदर्श माना है और उन्हें ही सम्मान दिया है.

अपनी चुनावी कैंपेन के दौरान भी नरेंद्र मोदी ने जोर-शोर से सरदार पटेल का गुणगाण किया था.

वहीं 2014 में सरकार बनाने के बाद से जितनी भी योजनाएं शुरू की गई हैं उनके नाम भाजपा और संघ के नेताओं के नाम पर रखे गए हैं. सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से भी सम्मानित किया.

कई योजनाओं के नाम भाजपा के आदर्श और जनसंघ के नेता दीनदयाल उपाध्याय पर रखे गए हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के निधन के बाद कई भाजपा शासित राज्यों ने राज्य के कई महत्वपूर्ण जगहों का नाम बदलकर उनके नाम पर रख दिया है. न सिर्फ भाजपा बल्कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो योजनाओं के नाम राजीव और इंदिरा के नाम पर ही पड़ते थे.

इस तरह अपने आदर्शों पर प्रतीकों की राजनीति कर कांग्रेस और भाजपा वोट बैंक बनाने का काम करती है. फिलहाल नेहरु संग्राहलय को लेकर भी इसी बात की जद्दोजहद है कि किस तरह वहां भाजपा अपनी छाप छोड़ दे.

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