कोरोना की वैक्सीन बनाने की क्यों मची है होड़, आखिर क्या है इसके पीछे का असली गेम?

राजसत्ता एक्सप्रेस। आखिरकार कोविड-19 की वैक्सीन बनाने की क्यों मची है होड़,  क्या है वैक्सीन का असली खेल, जिसका इंतजार 195 मुल्कों की सरकारें कर रही है, क्या वो वैक्सीन एक गेम है। आज दुनियाभर के लोग घरों में बैठकर सिर्फ दो चीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, एक लॉकडाउन खुलने का और दूसरा कोरोना वायरस की वैक्सीन का। लोग ये टकटकी लगाए देख रहे हैं कि दुनिया के किसी भी कोने से ये खुशखबरी उनके कानों तक पहुंचे, तो सारे काम बन जाएंगे, लेकिन कोरोना महामारी से पीछा छुड़ाने के लिए बनाई जा रही कोविड-19 वैक्सीन के पीछे छिपे कई ऐसे राज हैं, जो दुनिया नहीं जानती।

वैसे अगर कोरोना की वैक्सीन बनाने की खबर आती है, तो मानसिक तौर पर दबाव में काम कर रहीं दुनियाभर की सरकारें राहत की सांसे लेंगी। हो सकता है, उसके बाद दुनिया अपने-अपने आगे के प्लान बदलने लगे, लॉकडाउन खुलने लगे, मन में इस उम्मीद के साथ कि कोरोना का कोई तो इलाज आ गया है। लोग बाहर अपने काम पर जाने लगे। इस वैक्सीन का ये एक पहलू हो सकता है और इसका दूसरा पहलू बहुत ही डरावना है और वो है वैक्सीन का खेल। जिसे इस समय दुनियाभर की सरकारे और दवाइयां बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां खेलना चाहती हैं। ये लोग इस काम में भी लगे हुए हैं, जिसमें अगर किसी का नुकसान होना है, तो वो सिर्फ और सिर्फ मानवजाति का होगा। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं आज राजसत्ता एक्सप्रेस की टीम आपको इसके पीछे का काला खेल बताने जा रही है।

वैक्सीन क्या है?

वैक्सीन क्या है पहले हम इसे समझते हैं। अंग्रेजी के इस वैक्सीन शब्द में बड़ा झोल है, हिन्दी में इसे टीका कहते हैं, हो सकता है आप लोगों में से कई लोगों ने बचपन में इस शब्द को सुना होगा और टीके भी लगवाए होंगे, तो सीधे शब्दों में समझे तो वैक्सीन एक टीका है, जो किसी भी बीमारी को फैलने से रोकने के लिए लगाया जाता है। ये दावा किया जाता है कि जिस बीमारी की वैक्सीन यानी की टीका लोगों को लगाया जाता है, इस वैक्सीनेशन के बाद उसे वो बीमारी नहीं होती है। मेडिकल रिसर्च कहती है कि वैक्सीन एक ऐसा प्रोसेस है, जो उस बीमारी के खिलाफ लड़ने वाली रोगप्रतिरोधक शक्ति यानी की इम्यूनिटी को आपके शरीर में बढ़ा देती है और शरीर में बीमारी के विषाणु आते ही उसे नष्ट कर देती है, इसे वैक्सीन यानी की टीका कहते हैं।

क्या है वैक्सीन का खेल?

अब हम आपको बताते हैं कि इस वैक्सीन के पीछे का काला खेल क्या है?  इस समय दुनिया कोरोना महामारी के वैक्सीन तलाशने में दिन रात लगी है, जो पहले वैक्सीन बनाएगा या पहले जिसका ट्रायल अच्छे परिणामों के साथ पूरा होगा, उसे पहले मान्यता मिलेगी और उसके नाम पर दवाई का पेटेंट लिख दिया जाएगा। मतलब कि आने वाले कई सालों तक उसी की वैक्सीन चलेगी, जिसने टीका यानी कि वैक्सीन सबसे पहले बनाई है। वहीं, दुनिया पर राज करेगा।

इस समय जिस देश की जो भी दवाई कंपनी या रिसर्च इंस्टीट्यूट कोरोना की वैक्सीन तैयार कर लेती है, तो उसके नाम पर इस वैक्सीन का पेटेंट लिख लिया जाएगा। जिसके बाद वैक्सीन और उसके अंदर के कंटेंट सिर्फ उसी के नाम पर बिकेंगे, ऐसे में अब यहां से शुरू होता है, अरबों-खरबों का व्यापार। उदाहरण के तौर पर समझें तो, मान लीजिए कोरोना की एक वैक्सीन की कीमत 1000 रुपये होती है, तो अंदाजा लगाइए इस दुनिया से वो देश और दवाई बनाने वाली कंपनी कितना मुनाफा कमाएगी।

यही इस वैक्सीन के पीछे का सबसे बड़ा काला खेल है। अभी लगभग 20 देशों से खबर आ रही है कि वो कोरोना की वैक्सीन तैयार कर रहे हैं। कई देशों ने तो परीक्षण भी शुरू कर दिया है। साथ ही, इन देशों ने वैक्सीन का पेटेंट अपने नाम करने के लिए दस्तावेज भी पहले से फाइल कर दिए हैं। खबर ये भी थी कि जब चीन को कोरोना महामारी के फैलने की बात पता चली थी, तभी चीन ने इसके वैक्सीन के पेटेंट के लिए दस्तावेज भी फाइल कर दिए थे। अब ऐसे में अंदाजा लगाइए कि इसके पीछे का खेल कितना बड़ा और बुरा हो सकता है। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इसके पीछे का खेल भयावह और बुरा हो सकता है आपको ये भी विस्तार से बताते हैं।

कैसे भयावह हो सकता है वैक्सीन को जल्दी उतारने का दांव?

कुछ उदाहरण हम आपको बताते हैं, साल 1916 से 1918 के बीच में दुनियाभर में एबीएन फ्लू ने कोरोना की तरह ही अपना आतंक मचाया था, तब अमेरिका की एक कंपनी ने एबीएन फ्लू की वैक्सीन तैयार की थी और ये दावा किया जाता है कि इस वैक्सीन से उस दौरान पूरी दुनिया में लगभग 60 लाख से अधिक लोगों के मौत हो गई थी। हालांकि, दवाई कपंनी ने इस आरोप को सिरे से नकारते हुए कहा था कि ये मौतें वायरस से हुई हैं।

इस विषय में जब राजसत्ता एक्सप्रेस ने एक्सपर्ट की राय जानी, तो उन्होंने बताया कि एबीएन फ्लू से उस दौर में तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोग प्रभावित हुए थे और उनमें से मरने वालों का आंकड़ा 60 हजार के पार था। तब उसी दौर में अमेरिका की इस वैक्सीन से दुनियाभर में 60 लाख से ज्यादा लोग मर गए थे और न जाने कितनों लाखों लोग अपंग हो गए थे, कितनों का शरीर खराब हो गया था। ऐसा ही कुछ स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और सार्स जैसे जानलेवा वायरसों के दौरान वैक्सीनेशन में हुआ था, जिसका कहीं जिक्र नहीं होता बस मुनाफे के खेल में सब कुछ मिटा दिया जाता है।

एक्सपर्ट बताते हैं कि अब ऐसे में अगर कोरोना वायरस की वैक्सीन जल्दबाजी में आती है, तो न जाने वैक्सीन से कितनी जानें जाएंगी और डॉक्टर भी ये अंदाजा नहीं लगा पाएंगे कि ये मौतें वाकई वैक्सीन से हो रही हैं या फिर कोरोना वायरस से। ये दवाई कंपनियों के मुनाफे का काला खेल है, जिसमें मौतों का आंकड़ा पहले से ही लगा लिया जाता है। प्रॉफिट के इस खेल में बड़े-बड़े हॉस्पिटलों के साथ सरकारें भी खामोश रहती हैं और इस खेल को यूं ही चलने दिया जाता है, जो दवाई कंपनियों का बहुत बड़ा जाल है।

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