नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती करके आम नागरिक को बड़ी राहत दी है. गुरुवार को रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती की है. इससे मकान और वाहन खरीदने पर लोन सस्ता हो जाएगा. लेकिन ब्याज दर कम होने से क्या चुनाव पर इसका असर पड़ता होगा? अगर पिछले चुनाव को देखा जाए तो ब्याज दरों में कटौती करने पर सत्ता में मौजूद पार्टी को काफी फायदा मिला है.
लोकसभा चुनाव से पहले यह वित्त वर्ष 2019-20 की पहली बैठक की गई. इसमें रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की. चुनाव होने तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. ऐसे में बैंक का लिया गया यह फैसला मोदी सरकार के लिए बड़ी राहत का है. दरअसल, रिजर्व बैंक के निर्णय चुनाव आचार संहिता के दायरे से बाहर हैं. ऐसे में बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा कमिटी (MPC) इस बारे में आराम से फैसला ले सकती है.
बता दें, रिजर्व बैंक एक वित्त वर्ष में छह बार अप्रैल, जून, अगस्त, अक्टूबर, दिसंबर और फरवरी में अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा करता है. हालांकि अप्रैल की समीक्षा का सबको इंतजार रहता है, क्योंकि इससे ही पूरे वित्त वर्ष का एक तरह का रुख तय हो जाता है. हालांकि मामूली कटौती का आम जनता को ज्यादा फायदा नहीं मिलता लेकिन तीन लोकसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो इसका अलग ट्रेंड है.
जानिए तीन लोकसभा चुनावों का इतिहास
आपको बता दें कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव 7 अप्रैल से 12 मई के बीच आयोजित कराए गए थे. वहीं चुनाव के नतीजे 16 मई को आए थे. इसी साल रिजर्व बैंक की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा 1 अप्रैल को की गई थी. उस समय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने रेपो रेट को 8 फीसदी रखा था. इसके अलावा उन्होंने उन्होंने कैश रिजर्व रेश्यो यानी सीआरआर में भी कोई बदलाव नहीं किया. उसी साल कांग्रेस की हार हुई थी जबकि पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी थी.
वहीं बात करें 2009 के लोकसभा चुनाव की तो इन्हें 16 अप्रैल से 13 मई के बीच कराया गया था. उस समय रिजर्व बैंक की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा 21 अप्रैल को हुई थी. रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर डी. सुब्बाराव ने रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती करते हुए उसे 5 फीसदी से 4.75 फीसदी कर दिया था. साथ ही रिवर्स रेपो रेट में भी चौथाई फीसदी की कटौती करते हुए उसे 3.25 फीसदी कर दिया गया था. उस समय सत्ता में कांग्रेस सरकार की फिर से जीत हुई थी.
इसके अलावा 2004 के लोकसभा चुनाव 20 अप्रैल से 10 मई के बीच कराए गए थे. उस दौरान रिजर्व बैंक द्वारा पहली मौद्रिक नीति समीक्षा 10 मई को आई थी. तत्कालीन गवर्नर वाईवी रेड्डी ने रेपो रेट में तब कोई बदलाव न करते हुए उसे 4.5 फीसदी पर बरकरार रखा था. बैंक रेट को भी 6 फीसदी पर स्थिर रखा गया था. उस समय कांग्रेस सबसे बड़ी राजनीतिक दल बनी और उसके नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी थी.