नई दिल्ली, राजसत्ता एक्सप्रेस। कोरोना वायरस कई लोगों के लिए काल बनकर आया है। इस महामारी ने किसी की जिंदगी छीनी तो किसी का रोजगार। कोरोना की सबसे ज्यादा मार मजदूर वर्ग पर पड़ी है। दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे मजदूर… मजबूर भी हैं और बेबस भी। तभी तो सैकड़ों-हजारों मजदूर अपने घर जाने के लिए भूखे-प्यासे पैदल ही निकले पड़े हैं… बस एक ही उम्मीद में कि किसी तरह घर पहुंच जाए।
महाराष्ट्र के पीपरी गांव में कुछ ऐसा हुआ है जो पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। नासिक से करीब 30 किलोमीटर पैदल चली आ रही एक मजदूर की गर्भवती पत्नी ने यहां बच्चे को जन्म दिया। गर्भवती शकुंतला की राहों की तरह उसकी डिलीवरी भी आसान ना थी। चिलचिलाती धूप में बीच सड़क पर ना कोई अस्पताल ना कोई डॉक्टर। सड़क किनारे ही साथ चल रही महिलाओं ने साड़ी की आड़ कर शकुंतला का प्रसव कराया। प्रसव के 2 घंटे बाद ही शकुंतला अपने पति राकेश और अन्य लोगों के साथ सतना के लिए पैदल ही चल दिए। करीब 300 किमी की दूरी तय करने के बाद ये लोग रविवार को मध्य प्रदेश के सेंधवा पहुंचे। सभी मजदूर सतना के उपचारया गांव के रहने वाले हैं।
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प्रशासन ने कराई बस की व्यवस्था
सेंधवा पहुंचने के बाद मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र के बॉर्डर पर ग्रामीण थाना प्रभारी की नजर उन पर पड़ी। मजदूरों की व्यथा सुनकर उनका दिल भी पसीज गया और उन्हें क्वारंटीन सेंटर लाया गया। वहीं, शकुंतला की अस्पताल में जांच कराई गई।
पत्नी और बच्चों को साथ में लिए शकुंतला के पति राकेश ने बताया कि हम नासिक से 30 किलोमीटर दूर रहते थे और अपने गृह जिले सतना जा रहे हैं। राकेश ने बताया कि पीपरी गांव में कुछ महिलाओं की मदद से उसकी पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया। 2 घंटा रुकने के बाद हम लोग फिर पैदल चल दिए।
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सेंधवा ग्रामीण के थाना प्रभारी विश्वदीप परिहार ने बताया कि एसडीएम धनगर साहब से बात कर मजदूरों के लिए बस की व्यवस्था करवाई गई है।