राहुल की सफाई से कार्यकर्ता मायूस

नई दिल्ली: कोर्ट में चौकीदार चोर वाले बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सफाई से पार्टी का कार्यकर्ता निराश है। स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मीबाई की झांसी में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार तो नहीं उतारा है लेकिन चौकीदार वाले बयान पर पीछे हटने से पार्टी का कार्यकर्ता सहयोगी दल का भी प्रचार करने में संकोच कर रहा है। दरअसल कांग्रेस के कार्यकर्ता को राहुल का दिया ‘‘चौकीदार चोर’ वाला नारा भाजपा को चिढ़ाने में काफी मददगार था। कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी के खेद जताने के बाद चौकीदार चोर है, वाला नारा जारी रखना है, अथवा नहीं।

कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने ताजा घटनाक्रम के बाद कहा है कि एक ही चौकीदार चोर है। हालांकि इसे कार्यकर्ता कितना समझेंगे और यह चौकीदार चोर वाले नारे की तरह लोकप्रिय हो पाएगा अभी कहा नहीं जा सकता। पार्टी के एक सामान्य कार्यकर्ता मूलचंद ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष की सफाई से भाजपा को एक मुद्दा मिल गया है। उन्होंने कहा कि असल चिंता यह है कि भाजपा यह प्रचार करेगी कि नरेंद्र मोदी को चोर बोलने पर राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने माफी मंगवाई है। कांग्रेस ने जन अधिकार पार्टी के नेता शिव शरण कुशवाह के लिए झांसी की सीट छोड़ी है।

पार्टी ने उन्हें अपना चुनाव चिन्ह भी दिया है। पूर्व मंत्री और कांग्रेस के नेता प्रदीप जैन समन्वय की जिम्ममेदारी अवश्य उठा रहे हैं पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इस सीट पर विशेष दिलचस्पी नहीं है। जन अधिकार पार्टी के प्रमुख बाबू सिंह कुशवाह पुराने बसपाई हैं और वह इस कोशिश में जुटे हैं बसपा का कुछ हिस्सा तो उनके काम आ जाए।सपा-बसपा गठबंधन ने प्रबल दावेदार चंद्रपाल यादव के स्थान पर श्याम सुंदर यादव को उम्मीदवार बनाया है। इसलिए वहां भी सपा का एक वर्ग प्रचार में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। भाजपा ने अनुराग शर्मा को उम्मीदवार बनाया है,जबकि यहां से सांसद व मंत्री उमा भारती ने गंगाचरण राजपूत का नाम सुझाया था।

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शायद यही वजह है कि भाजपा में भी एक धड़ा कुछ उदासीन है। यानी सभी उम्मीदवारों के लिए कार्यकर्ताओं को मनाना किसी चुनौती से कम नहीं है। झांसी जिस बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है, वह पूरा इलाका पिछड़ा है। कई क्षेत्र पानी की समस्या से भी जूझ रहे हैं। क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए यूपीए सरकार में दिए गए बुंदेलखंड पैकेज का असर यहां जमीन पर दिखाई नहीं देता। समय-समय पर यहां अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग भी उठती रही है, जिसमें झांसी को राजधानी बनाने की बात भी होती रहती है। अब इसका भी असर नहीं है।

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