साल भर पहले जब कांग्रेस की कमान राहुल गांधी को सौंपी गई थी। उस दिन ये लग रहा था कि कांग्रेस में अब राजनीतिक पीढ़ी बदल रही है। इसका संकेत तब और पुख्ता हुआ जब वरिष्ठ नेताओं की जगह केंद्र में और राज्यों में युवाओं को कमान सौंपी गई। राहुल के अध्यक्ष बनने से पहले सचिन पायलट राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। वहीं अशोक गहलोत को जनार्दन द्विवेदी की जहग पार्टी का महासचिव बनाया गया था।
जिसके बाद ये लग रहा था कि अब गहलोत केंद्र की राजनीति करेंगे, लेकिन अब बदली परिस्थितियों में पायलट की जगह उनको सीएम पद की जिम्मेदारी देने की तैयारी पूरी कर ली गई है। ऐसा तब है जब केंद्र में जाकर गहलोत ने गुजरात विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया था। जिन्होंने बीजेपी को भले ही हराने में कामयाबी न पाई हो। लेकिन झटका देते हुए सम्मानजनक सीटें हासिल करने में सफलता जरूर पाई थी।
वहीं अब 2019 की चिंता में राहुल गांधी खुद ही अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर है। इसीलिए लोकसभा के लिए जातिगत आंकड़ों में फिट बैठने वाले अशोक गहलोत को सीएम की कुर्सी सौंपी जा रही है। क्योंकि राहुल लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजस्थान में गुर्जर को सीएम बनाकर बड़ा रिस्क लेने के मूड में नहीं है।
गुर्जर होने की वजह से नहीं मिली कुर्सी
अशोक गहलोत के लिए उनकी जाति भी कुर्सी तक पहुंचाने में काम आई। गहलोत जादूगार परिवार के हैं और माली जाति से आते हैं। जिनको सभी जातियों को स्वीकार करना आसान है। वहीं जाति की लड़ाई राजस्थान में कोई नई बात नहीं है। यहां राजपूतों और जाटों के बीच दुश्मनी परंपरागत है। जबकि राज्य में मालियों की संख्या कम है। जिस वजह से उनके वर्चस्व की कोई समस्या नहीं है। जबकि सचिन के सीएम बनने से जनता में गुर्जरों की मजबूती का सीधा संदेश जाता है। ऐसे में गहलोत के सीएम बनने से प्रभावशाली जातियों राजपूत, जाट, ब्राहृमण, गुर्जर जातियों के सामाजिक और राजनीतिक वर्चस्व की राह में वे चुनौती नहीं हैं।
माली जाति की वजह से गहलोत बने सीएम
इससे पहले जब गहलोत राज्य के मुख्यमंत्री बने थे तब प्रदेश में ताक़तवर जाट और प्रभावशाली ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला था. लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस गठबंधन की राह पर भी अब ज्यादा मजबूती के साथ आगे बढ़ना चाहती है। कांग्रेस मायावती की बसपा के साथ ही दूसरे छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर लोकसभा में लड़ाई में उतरना चाहती है। जिसके लिए गहलोत का सीएम बनना जरूरी है। ताकि वो अपने अनुभव और राजनीतिक कुशलता के चलते दूसरे दलों के कांग्रेस के साथ मिला सकें। जबकि युवा चेहरे सचिन पायलेट को गुर्जर जाति के होने के चलते प्रदेश के छोटे दल साथ आना तो दूर आसपास फटकने से भी कतराने का डर है।
पायलट समर्थक नाराज
हालंकि कि इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने सीएम पद के लिए अशोक गहलोत के नाम को हरी झंडी दे दी है। लेकिन उसकी सबसे बड़ी मुश्किल इसी के साथ शुरु हो गई है। क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट इस पूरी कवायद से नाराज बताए जा रहे हैं।