नई दिल्ली। राजस्थान में बाड़मेर के पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित के खिलाफ दर्ज शिकायत अदालत के बाहर तो फर्जी साबित हुई है। अनुसूचित जाति के जिस व्यक्ति की तरफ से परिवाद दर्ज करवाया गया है, उसने स्थानीय मीडिया में कहा है कि वह कभी बाड़मेर गया ही नहीं. ना ही वह दुर्ग सिंह राजपुरोहित अथवा दुर्गेश सिंह नाम के किसी बाड़मेर निवासी को जानता है.
दरअसल पटना की अदालत में एससी-एसटी एक्ट के तहत दुर्गेश सिंह नामक व्यक्ति के खिलाफ परिवाद दायर हुआ था. इसी पर बाड़मेर पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार दुर्ग सिंह को किसी आतंकवादी की तरह पकड़ कर रातों-रात पटना पहुंचा दिया. कथित शिकायतकर्ता तो फर्जी साबित हो ही रहा है, घटना जिस दिन की बताई गयी है उस दिन दुर्ग सिंह बाड़मेर में ही एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मौजूद थे.
वरिष्ठ पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित बाड़मेर में रहते हैं. रविवार को उन्हें बाड़मेर के एसपी ने अपने पास बुलाकर गिरफ्तार करवाया था. बताया गया कि उनके खिलाफ बिहार एससी- एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज है. इसपर वहां की अदालत ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर रखा है. बाड़मेर पुलिस के तीन सिपाही टैक्सी से राजपुरोहित को लेकर आनन्-फानन में पटना रवाना हो गए. वो सोमवार को रात भर पटना पुलिस की कस्टडी में रहे और आज, अदालत में पेश किया गया.
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इस बीच परिवाद की जो प्रति सामने आयी है उसमें वादी का नाम राकेश पासवान है. ख़ास बात यह है कि शिकायत दुर्ग सिंह राजपुरोहित के नाम नहीं बल्कि दुर्गेश सिंह के खिलाफ है. बहरहाल, आरोप लगाया गया है कि दुर्गेश का बाड़मेर में पत्थरों समेत कई तरह का कारोबार है. आरोप के मुताबिक पासवान बाड़मेर में आरोपी के यहां पत्थर तोड़ने की मजदूरी करता था. पिता की बीमारी के चलते छह महीने काम करके बिना मजदूरी लिए वो बिहार वापस लौट गया. दुर्गेश 15 अप्रैल को पासवान को लेने पटना उसके घर गए. वादी ने माता पिता की बीमारी का हवाला देकर बिहार से बाड़मेर जाने से मना कर दिया.
आरोप के मुताबिक़ इसके बाद दुर्गेश बीती 7 मई को 3-4 अज्ञात लोगों को लेकर एक बार फिर राकेश पासवान के घर बिहार पहुंचे. बाड़मेर जबरन ले जाने के लिए धमकाया. घर से घसीटकर पासवान को बाहर ले कर आए. नीच जाति का बोलकर उसके साथ मारपीट की. आस पास के लोग इकट्ठा हुए तो अपने साथियों के साथ एक बोलेरो गाडी में बैठकर भाग गए। अर्जी में कहा गया है कि 75 हजार बकाया मज़दूरी भी नहीं दी है.
सोमवार को पूरा दिन इस प्रकरण को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आयीं. सबसे पहले तो बाड़मेर के पत्रकारों ने ही वो तमाम सुबूत फेसबुक पर पोस्ट किए जिसके मुताबिक़ दुर्ग सिंह 7 मई को एक बुक लांच कार्यक्रम में मौजूद थ. दुर्ग सिंह ने उस दिन अपनी फेसबुक वॉल पर कार्यक्रम के फोटो पोस्ट किए थे. फेसबुक लाइव भी किया था. आज पटना के दैनिक भास्कर संस्करण में जो कुछ छपा उसने साफ़ कर दिया कि यह मामला प्रभावशाली लोगों के दबाव का नतीजा भर है.
दुर्ग सिंह तो लगातार कह ही रहे हैं कि ज़िन्दगी में कभी पटना नहीं गए, लिहाजा वहां जाकर किसी उत्पीड़न का सवाल ही नहीं उठता. वहीँ, दैनिक भास्कर के रिपोर्टर की खोज में कथित शिकायतकर्ता ने चुकाने वाला खुलासा किया. मुताबिक़ कभी राजस्थान बाड़मेर गया ही नहीं. पटना में किन्हीं संजय सिंह की जेसीबी मशीन पर काम जरूर करता था. इसी संजय सिंह ने उसे एससी -एसटी एक्ट के तहत एक मुकदमा लिखवाने के लिए कहा था. लेकिन उसने फर्जी मुकदमा लिखवाने से मना कर दिया। उसके बाद क्या हुआ नहीं जानता.
इधर, पटना में मौजूद दुर्ग सिंह के भाई भवानी सिंह ने ‘राजसत्ता एक्सप्रेस’ को बताया कि संजय सिंह ने परिवाद में खुद को घटना का गवाह दिखाया है संजय भाजपा का नेता है और सभासद रह चुका है. संजय सिंह ने किसे खुश करने के लिए फर्जी परिवाद की साजिश रची इसकी जांच होनी चाहिए. भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक़ जब संजय सिंह का फोन मिलाया गया तो बंद मिला. इस पूरे मामले में बाड़मेर के एसपी की भूमिका भी जांच का विषय है. दुर्गेश सिंह के नाम पर दायर परिवाद,यह मान भी लिया जाए कि फरियादी को नाम में ग़लतफ़हमी हो गयी थी, पर दुर्ग सिंह को गिरफ्तार करने में इतनी तत्परता किसके कहने पर दिखाई. जबकि पटना की अदालत का कथित वारंट उन्हें कथित तौर पर पटना पुलिस द्वारा व्हाट्स एप पर भेजा गया था. काबिले जिक्र यह भी है कि बाड़मेर एसपी साहब ने दुर्ग सिंह को अपने सिपाहियों के साथ टैक्सी से ही तत्काल रवाना कर दिया. जबकि बाड़मेर से पटना की दूरी 18 सौ किलोमीटर है.