देश भर में आज धूमधाम से जन्माष्टमी मनाई जा रही है। भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, जन्माष्टमी, मथुरा और वृन्दावन, दोनों शहरों में बड़ी भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह दोनों शहर कृष्ण के जीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं। आपको बता दें कि जहां मथुरा में जन्माष्टमी पुरे देश के साथ मनाई जाती है वहीं वृन्दावन (Janmashtami in Vrindavan) में यह एक दिन देरी से मनाई जाती है। यही कारण है कि इस वर्ष वृन्दावन में जन्माष्ठमी 27 अगस्त को मनाई जाएगी।
मथुरा की तुलना में वृन्दावन (Janmashtami in Vrindavan) में एक दिन देर से मनाई जाने वाली जन्माष्टमी का कारण पारंपरिक प्रथाओं और कृष्ण के जीवन की घटनाओं का क्रम है, जैसा कि इन क्षेत्रों में माना जाता है।
मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मस्थली है। परंपरा के अनुसार, कृष्ण का जन्म हिंदू माह भाद्रपद के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन को आधी रात को हुआ था। इसलिए, उनके जन्म के सटीक क्षण को चिह्नित करते हुए, ठीक उसी रात मथुरा में जन्माष्टमी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है।
वहीं वृन्दावन वह स्थान है जहां कृष्ण ने अपना बचपन बिताया और अपनी कई दिव्य लीलाएं कीं। ऐसा माना जाता है कि मथुरा में कृष्ण के जन्म के अगले दिन उनके पिता वासुदेव द्वारा अत्याचारी राजा कंस से बचाने के लिए गोकुल (वृंदावन के पास) ले गए थे। वृन्दावन में, जन्माष्टमी उत्सव अक्सर कृष्ण के प्रारंभिक जीवन और बचपन पर केंद्रित होता है, जिसके कारण पारंपरिक रूप से अगले दिन त्योहार मनाया जाता है, जो उनके आगमन और क्षेत्र में शुरुआती दिनों का सम्मान करता है।
कैसे मनाया जाता है वृन्दावन में कृष्ण जन्माष्टमी?
वहीं कान्हा की लीलास्थली कहे जाने वाले वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में 27 अगस्त 2024 को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। यहां बिहारी जी की भव्य मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यहां हमेशा भक्तों की भीड़ लग रहती है। लेकिन जन्माष्टमी में तो यहां तिल रखने की भी जगह नहीं होती है। जन्माष्टमी के दिन बांके बिहारी मंदिर की भव्य सजावट की जाती है। बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी पर शाम की आरती के बाद रात में भगवान का अभिषेक होता है। इसके बाद प्रभु बांके बिहारी की मंगला आरती की जाती है। यह मंगला आरती साल में केवल एक बार जन्माष्टमी के अवसर पर ही होती है।
अन्य मंदिरों के विपरीत, जहां आधी रात को कृष्ण की मूर्ति को स्नान कराया जाता है और सजाया जाता है, बांके बिहारी मंदिर की एक अनूठी परंपरा है। यहां, उत्सव अगले दिन से शुरू होता है, जो मथुरा में अपने जन्म के बाद कृष्ण के वृन्दावन आगमन की खुशी का प्रतीक है। मंदिर को फूलों, रोशनी और सजावट से सजाया जाता है, जिससे एक दिव्य वातावरण बन जाता है।