असम में बाल विवाह के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से कड़ी कार्रवाई लगातार तेज हो गई है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 22 दिसंबर 2024 को बताया कि बाल विवाह के खिलाफ चल रही कार्रवाई के तीसरे चरण में अब तक 416 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। सरकार ने इस साल जनवरी से लेकर अब तक हजारों लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है, जिससे यह साबित हो रहा है कि राज्य सरकार बाल विवाह की प्रथा को खत्म करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
असम में बाल विवाह की समस्या
असम में बाल विवाह की समस्या एक पुरानी और जटिल सामाजिक बुराई रही है। कई दशकों से सरकार और विभिन्न संगठनों ने इसे रोकने की कोशिश की है, लेकिन यह समस्या पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाई। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रथा काफी सामान्य है, जहां कम उम्र में बच्चों की शादी कर दी जाती है। असम में बाल विवाह के मामलों की बढ़ती संख्या पर लगाम लगाने के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की सरकार ने 2023 में बाल विवाह के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था, और अब यह अभियान और भी तेज कर दिया गया है।
तीसरे चरण में हुई गिरफ्तारी
इस बार की कार्रवाई 21-22 दिसंबर की रात को शुरू की गई थी, जब पुलिस ने बाल विवाह के खिलाफ 335 मामले दर्ज किए। मुख्यमंत्री सरमा ने खुद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (Twitter) पर जानकारी साझा की और बताया कि गिरफ्तार किए गए लोगों को रविवार को कोर्ट में पेश किया जाएगा। इस अभियान के पहले दो चरणों में भी सरकार ने बड़े पैमाने पर कार्रवाई की थी। फरवरी में पहले चरण में 4,515 मामले दर्ज किए गए थे और 3,483 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जबकि अक्टूबर में दूसरे चरण में 710 मामले दर्ज कर 915 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
असम सरकार की कड़ी रणनीति और असर
असम में बाल विवाह के खिलाफ सरकार की सख्त नीति ने सकारात्मक असर दिखाया है। 17 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि असम सरकार की कानूनी रणनीति के कारण 2021-22 और 2023-24 के बीच राज्य के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 फीसदी की कमी आई है। यह रिपोर्ट देशभर के लिए एक उदाहरण बनी है, क्योंकि पहले लोगों को बिना किसी डर के अपनी बच्चियों की शादी कर देने की आदत थी। अब असम सरकार ने इसे रोकने के लिए कठोर कानूनों का सहारा लिया है, जिससे लोगों में डर और जागरूकता दोनों बढ़ी है।
सरकार ने उठाए साहसिक कदम
असम सरकार की इस कार्रवाई को और प्रभावी बनाने के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस साल एक महत्वपूर्ण कदम उठाया था, जब सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को निरस्त कर दिया था। इस फैसले का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय में बाल विवाह की प्रथा को पूरी तरह से खत्म करना था। मुख्यमंत्री ने कहा था कि जब तक वह जीवित हैं, तब तक असम में बाल विवाह को हरगिज नहीं होने दिया जाएगा।
समाज में जागरूकता और बदलाव
बाल विवाह के खिलाफ असम सरकार का यह अभियान अब सिर्फ एक कानूनी पहल नहीं रहा, बल्कि यह समाज में बदलाव लाने का एक आंदोलन बन गया है। सरकार ने ग्रामीण इलाकों में विशेष रूप से जागरूकता अभियानों की शुरुआत की है, ताकि लोगों को बाल विवाह के खिलाफ कानूनी और सामाजिक खतरों के बारे में जानकारी मिल सके। इसके साथ ही सरकार ने बाल विवाह की शिकार लड़कियों के लिए कई राहत योजनाओं की शुरुआत भी की है, जिससे वे शिक्षा और रोजगार के अवसरों का लाभ उठा सकें।
बाल विवाह के खिलाफ सरकार के कदमों की सराहना
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के इस अभियान की देशभर में तारीफ हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, असम सरकार के इस कदम को दूसरे राज्यों के लिए भी एक रोल मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। खासकर ऐसे राज्यों के लिए जहां बाल विवाह की समस्या अभी भी गंभीर रूप से मौजूद है। सरकार की इस मुहिम ने एक नई उम्मीद जगाई है, और उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में असम इस बुराई से पूरी तरह मुक्त हो सकता है।
असम सरकार की बाल विवाह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई राज्य के समाज में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दे रही है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की दृढ़ नीतियों और सरकार की सख्त कार्रवाइयों ने साबित कर दिया है कि यदि सरकार इस तरह के कड़े कदम उठाए तो बड़े सामाजिक बदलाव लाए जा सकते हैं। बाल विवाह के खिलाफ इस अभियान की सफलता न सिर्फ असम के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बन सकती है।