दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस बार सियासत का मुकाबला कुछ ज्यादा ही दिलचस्प होता जा रहा है। खासकर दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर जहां आम आदमी पार्टी (AAP), कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। दिल्ली में मुसलमानों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है, जो कई सीटों की जीत-हार का फैसला करती है। इस बार के चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं को लेकर अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। तो सवाल ये है कि केजरीवाल और AAP मुस्लिम वोटबैंक को अपनी ओर कैसे खींचने की कोशिश कर रहे हैं, और क्या इस बार उनका प्रदर्शन 2015 और 2020 की तरह एकतरफा रहेगा?
कांग्रेस और ओवैसी के सामने AAP का चुनौतीपूर्ण मुकाबला
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने पिछले दो चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं के बीच मजबूत पैठ बनाई थी, लेकिन इस बार के चुनाव में स्थिति थोड़ी बदलती हुई नजर आ रही है। पहले जहां कांग्रेस मुस्लिम वोटबैंक का परंपरागत ठिकाना थी, अब वह भी मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी दिल्ली में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है, खासकर उन सीटों पर, जो मुस्लिम बहुल हैं। AIMIM ने दो मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिनमें मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन और ओखला से शिफाउर रहमान शामिल हैं, जो दोनों दिल्ली दंगे के आरोपी हैं और फिलहाल जेल में हैं।
इसके अलावा, कांग्रेस ने भी दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जिनसे आम आदमी पार्टी का मुकाबला हो सकता है। दिल्ली में अबतक जिन 5 मुस्लिम बहुल सीटों पर AAP ने कांग्रेस से मुकाबला किया, उन सीटों पर आमने-सामने की चुनावी जंग देखने को मिल रही है। इन सीटों पर मुस्लिम वोटों का बिखराव केजरीवाल के लिए एक नई चिंता बन सकता है।
मुस्लिम वोटर्स की बदलती राजनीति
दिल्ली में मुस्लिम मतदाता अब चुनावों में केवल पार्टी के कार्यक्रम और उम्मीदवारों की तरफ देख रहे हैं, ना कि किसी एकतरफा वोटिंग परंपरा के अनुसार। आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब कोरोना के दौरान तब्लीगी जमात और दिल्ली दंगे जैसे मुद्दों को लेकर पार्टी की स्थिति में बदलाव आया। मुस्लिम मतदाताओं के मन में अब सवाल है कि क्या AAP ने उनके हितों का सही तरीके से ध्यान रखा। इस वजह से इस बार कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी के पक्ष में भी सहानुभूति का माहौल दिख रहा है।
केजरीवाल के लिए यह चुनौती और भी बड़ी है क्योंकि दिल्ली के मुस्लिम मतदाता, जो पहले एकमुश्त AAP को वोट करते थे, अब अपने विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, यह भी देखा जा रहा है कि Owaisi की पार्टी AIMIM और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच कोई एकता नहीं है, जिससे वोटों का बिखराव होने का खतरा है। ऐसे में बीजेपी को फायदा होने की संभावना भी जताई जा रही है।
केजरीवाल की सियासी रणनीति
आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए अपनी सियासी रणनीति में कुछ बदलाव किए हैं। इस बार अरविंद केजरीवाल खुद मुस्लिम बहुल इलाकों में प्रचार करने नहीं उतर रहे, लेकिन उन्होंने पार्टी के दो प्रमुख नेताओं को इन इलाकों में सक्रिय कर दिया है। इनमें से एक नाम है संजय सिंह का, जिन्हें मुस्लिम वोटों के बीच मजबूत पकड़ मानी जाती है। वे AAP के सेकुलर चेहरे माने जाते हैं और मुस्लिम इलाकों में लगातार रैलियां कर रहे हैं। इसके साथ-साथ जम्मू-कश्मीर से AAP विधायक मेहराज मलिक भी मुस्लिम बहुल इलाकों में जनसभाओं में हिस्सा ले रहे हैं।
केजरीवाल ने मुस्लिम वोटों को एकजुट करने के लिए इंडिया गठबंधन के नेताओं को भी प्रचार में उतारा है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने AAP के पक्ष में रैलियां की हैं, और सपा के मुस्लिम नेता भी दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में प्रचार कर रहे हैं। इन रैलियों का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम मतदाताओं को यह बताना है कि AAP उनके लिए सबसे बेहतर विकल्प है।
बीजेपी से डर और वोटों का बिखराव
आम आदमी पार्टी अपने मुस्लिम उम्मीदवारों के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि अगर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस और AIMIM के साथ मिलकर वोट करेंगे, तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा। ओखला से AAP के उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान और बल्लीमारान से इमरान हुसैन यह बातें हर रैली में कहते नजर आ रहे हैं। वे मुस्लिम मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका वोट बिखरने से बीजेपी को फायदा होगा, और इस बार बीजेपी की जीत को रोकने के लिए उन्हें एकजुट होकर AAP को वोट देना होगा।
केजरीवाल ने AIMIM के प्रमुख ओवैसी पर बीजेपी के एजेंट होने का आरोप भी लगाया है, और यह कहकर मुस्लिम मतदाताओं को AAP के पक्ष में करने की कोशिश की है कि अगर Owaisi को वोट दिया गया, तो इसका परिणाम बीजेपी के पक्ष में जाएगा। इसके साथ-साथ उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस इस बार एक भी सीट नहीं जीतने जा रही है, और पार्टी केवल AAP को हराने और बीजेपी को जीत दिलाने के लिए चुनाव में उतरी है।
क्या AAP मुस्लिम वोटों को एकजुट कर पाएगी?
इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक पर आम आदमी पार्टी की सियासी कवायद को लेकर सवाल उठ रहे हैं। 2015 और 2020 में AAP ने मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट किया था, लेकिन इस बार कई वजहों से यह मुश्किल लग रहा है। दिल्ली दंगे, तब्लीगी जमात मुद्दा और कांग्रेस-Owaisi की एंट्री ने मुस्लिम मतदाताओं के बीच एक नई राजनीतिक समझ पैदा की है। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या AAP फिर से 2015 और 2020 की तरह मुस्लिम वोटों का एकतरफा समर्थन जुटा पाएगी, या फिर वोटों का बिखराव बीजेपी के पक्ष में जाएगा।