सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश: घरेलू काम करने वालों के शोषण पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को कानून बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू काम करने वालों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर केंद्र सरकार को एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को एक अंतर-मंत्रालयी समिति बनानी चाहिए, जिसका काम घरेलू कामगारों के शोषण को रोकने के लिए ठोस कानून तैयार करना होगा। यह समिति छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपेगी, जिसके आधार पर सरकार कानून की रूपरेखा तैयार करेगी। इस फैसले के बाद घरेलू काम करने वालों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में बड़ा कदम उठाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: घरेलू कामगारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयन शामिल थे, ने इस आदेश को पारित किया। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि घरेलू कामगारों के शोषण को रोकने, उनकी सुरक्षा और कल्याण के लिए एक कड़ा कानून बनाना जरूरी है। इस मामले की शुरुआत छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी महिला से हुई थी, जो दिल्ली में घरेलू काम करती थी और कई सालों तक शोषण का शिकार हुई। महिला के मामले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को घरेलू काम करने वालों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा कि घरेलू कामकाजी महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और शोषण की बड़ी वजह उनके लिए कानून का अभाव है। इन महिलाओं को अक्सर कम वेतन, असुरक्षित कामकाजी माहौल और अत्यधिक काम के घंटों के साथ काम करना पड़ता है। अदालत का मानना था कि इस स्थिति में बदलाव लाने के लिए एक ठोस कानूनी ढांचे की जरूरत है।

अंतर-मंत्रालयी समिति बनेगी, 6 महीने में रिपोर्ट

कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार एक अंतर-मंत्रालयी समिति बनाए, जिसमें श्रम मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय के विशेषज्ञ शामिल हों। यह समिति घरेलू कामकाजी महिलाओं के अधिकारों, उनकी सुरक्षा और उनके कामकाजी माहौल को सुधारने के लिए जरूरी कानूनी प्रावधानों की सिफारिश करेगी। यह समिति छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी, जिसके आधार पर केंद्र सरकार भविष्य में एक मजबूत कानूनी ढांचा तैयार करेगी।

इस समिति की सिफारिशों का उद्देश्य घरेलू कामकाजी लोगों के शोषण को रोकना और उनके कामकाजी परिस्थितियों को बेहतर बनाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि घरेलू कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा और उनके फायदे सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस नीति की जरूरत है।

तीन राज्यों का जिक्र: तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल

सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश में तीन राज्यों का खास उल्लेख किया। इन राज्यों ने केंद्र सरकार के कानून का इंतजार किए बिना अपने-अपने स्तर पर घरेलू कामकाजी लोगों के लिए सुरक्षा कानून बनाए हैं। ये राज्य हैं तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल। इन राज्यों ने घरेलू कामकाजी महिलाओं के लिए न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य सुरक्षा और अन्य सामाजिक फायदे सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों के प्रयासों की सराहना की और नई समिति को इन पहलुओं पर ध्यान देने को कहा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन राज्यों की नीतियों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की जरूरत हो सकती है, ताकि सभी घरेलू कामकाजी लोगों के अधिकारों का संरक्षण किया जा सके।

घरेलू कामकाजी महिलाओं के लिए एक मजबूत कानूनी सुरक्षा का वादा

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश घरेलू कामकाजी महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत हो सकता है। क्योंकि लंबे समय से यह वर्ग शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार हो रहा है। उनके काम करने के घंटों की कोई सीमा नहीं होती, और उन्हें बहुत कम वेतन दिया जाता है। इसके अलावा, उनके पास नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं होती और अक्सर उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि अब सरकार को एक मजबूत कानूनी ढांचा तैयार करना होगा जो इस वर्ग के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।

क्या इससे बदलाव आएगा?

सुप्रीम कोर्ट का आदेश साफ तौर पर केंद्र सरकार से मांग करता है कि वह घरेलू कामकाजी लोगों के लिए एक ठोस कानून बनाए, जो उनके अधिकारों की रक्षा करे। अब देखना यह है कि सरकार इस दिशा में कितनी जल्दी और प्रभावी कदम उठाती है। क्या सरकार यह सुनिश्चित कर पाएगी कि घरेलू कामकाजी लोगों को एक सुरक्षित और सम्मानजनक कामकाजी माहौल मिले? क्या यह कानून वास्तव में उन्हें उनके अधिकार दिलवाने में सफल होगा?

घरेलू कामकाजी महिलाओं के लिए आगे की राह

यह आदेश सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिससे वह घरेलू कामकाजी लोगों की स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम उठा सकती है। अगर सरकार इस दिशा में प्रभावी काम करती है, तो यह न केवल घरेलू कामकाजी लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में मदद करेगा, बल्कि यह देशभर में कामकाजी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में भी एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।

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