नैनीताल। अधिकारी हटे तो संविधान के अनुरूप देश की शासन प्रणाली को चलाएं और एक संवेदनशील और मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए शासन चलाएं। लेकिन ऐसा वास्तव में होता नहीं है। अफसर अपने आप को भाग्यविधाता और आम जनता को गुलाम समझते हैं और कानून पालन के नाम पर कानून का फंदा आम आदमी के गले में लपेट देते हैं। लेकिन ऐसे अफसरों को भी सबक मिलता है और ये सबक सिखाती है न्यायपालिका।
तत्कालीन जिलाधिकारी हरवंश चुघ को सिखाया सबक
ऐसे ही एक अफसर को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सबक सिखाया है। ये सबक संभवता उक्त अफसर महोदय अफसर बनते वक्त सीखना भूल गए होंगे या सीखकर भी लाटसाहिबी में याद ही न रहा होगा। ये अफसर हैं हरवंश चुघ साहब। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सजायाफ्ता कैदी के संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन करने पर हरिद्वार के पूर्व जिलाधिकारी वर्तमान में सचिव हरवंश चुघ को कैदी को एक लाख का मुवावजा देने के आदेश दिए हैं। साथ ही राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वे कैदियों को पैरोल पर छोडऩे के लिए गाइडलाइन तैयार करें और कैदियों को आपात स्थिति में पैरोल में देना सुनिश्चित करें। हाईकोर्ट ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि यदि कोई कैदी जेल अधीक्षक या अन्य माध्यम से पेरोल के लिए आवेदन करता है तो उस पर तत्काल निर्णय लिया जाए । ताकि याची की प्रार्थना का मकसद हल हो सके ।
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2008 से जेल में बंद था कैदी
ये महत्वपूर्ण निर्देश वरिष्ठ न्यायधीश न्यायमूर्ति वी के बिष्ट की एकलपीठ ने हरिद्वार के एक कैदी की याचिका की सुनवाई के बाद दिए हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार वह हत्या के आरोप में 2008 से हरिद्वार जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है । किंतु 26 सितम्बर 2016 को उसके पिता की मौत हो गई ।चूंकि वह अपने पिता का सबसे बड़ा पुत्र था और हिन्दू मान्यता के अनुसार बड़े पुत्र को अपने मां बाप के अंतिम संस्कार में शामिल होना जरूरी होता है । अपने इसी फर्ज का पालन करने के लिए उसने जिलाधिकारी हरिद्वार के समक्ष पेरोल के लिए आवेदन किया। किन्तु जिलाधिकारी ने यह आवेदन खारिज कर दिया । तीन अक्टूबर को उसने पुन: अपने पिता की तेरहवीं व पगड़ी में मात्र 6 घन्टे शामिल होने की अनुमति मांगी । लेकिन उसे यह अनुमति भी नहीं दी गई।
एक लाख रुपए के भुगतान का आदेश
जिलाधिकारी हरिद्वार के इस कृत्य को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए उक्त कैदी ने जिलाधिकारी हरिद्वार के खिलाफ कार्यवाही किये जाने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की । हाईकोर्ट ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए तत्कालीन जिलाधिकारी हरिद्वार को निर्देश दिए हैं कि वे कैदी को हुई मानसिक व्यथा के मुआवजे के रूप में एक लाख रुपये का भुगतान करें ।