देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में एक बार फिर से महफिलें सजने वाली हैं. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र द्वारा डांस बार पर बनाए गए कानून पर आज फैसला सुनाया है. जिसमें कुछ शर्तों के साथ डांस बार पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया है.
बुलबुल तो नाचेंगी लेकिन पैसा नहीं मिलेगा
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कुछ शर्तों को लागू करते हुए 11 साल से बंद डांस बारों को खोलने की अनुमति दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के कानूनों में कुछ बदलाव के साथ फैसले पर मुहर लगा दी है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि बार बालाएं नाच तो सकती हैं लेकिन उनपर न तो पैसे उड़ाए जाएंगे और न कोई एक्स्ट्रा टिप दी जाएगी.
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इसके अलावा कोर्ट ने सीसीटीवी कैमरा को हटाने का भी आदेश दिया है, कोर्ट का कहना है कि डांस बार में सीसीटीवी की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि ये व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. आर्थिक राजधानी मुंबई में रात 11:30 बजे तक ही बार को खोलने का नियम बनाया गया है. कोर्ट ने कहा कि डांस बार में अश्लीलता नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा बार में जहां लड़कियां नाचेंगी वहां मदिरा नहीं परोसी जाएगी.
कोर्ट ने फैसले में कहा कि जीविका का अधिकार हर किसी को है, कोई डांस के जरिए पैसे कमाता है इसमें कुछ गलत नहीं है. उनसे उनका अधिकार नहीं छीना जा सकता.
गौरतलब है कि साल 2005 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा नया एक्ट बनाया गया था जिसमें डांस बारों पर लाइंसेंस और अन्य नियमों कड़ा कानून बनाकर प्रतिबंध लगाया गया था.इंडियन होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ने सरकार के इस एक्ट को कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
इस मामले में महाराष्ट्र सरकार का कहना था कि नया कानून संवैधानिक दायरे में आता है और यह गैर कानूनी गतिविधियों और महिलाओं का शोषण भी रोकता है.
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बार मालिकों की दलील थी कि सरकार के नए एक्ट के कारण उनको दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा हैं. साथ ही उन्होंने किसी धार्मिक या शैक्षणिक संस्थान के एक किलोमीटर बार न खोलने के नियम पर भी आपत्ति जताई थी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अगस्त में दोनों पक्षों की सुनवाई करते हुए फैसले को सुरक्षित रख लिया था.
बदलते समाज में अश्लीलता की परिभाषा बदल गई
हालांकि इसी मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट की ओर से कहा गया कि मुंबई में ऐसा लग रहा है कि मोरल पुलिसिंग हो रही है. सरकार के कड़े नियमों के कारण मुंबई में कोई भी बार काम नहीं कर पा रहा है. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि बदलते समाज में अश्लीलता की परिभाषा भी अब बदल चुकी है.
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फिल्मों में लव मेकिंग सीन्स का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि पहले किसिंग सीन्स में दो फूलों का टकराना या पक्षियों का चहचाहना दिखाया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. समाज में लिव-इन रिलेशनशिप को भी कुछ हद तक स्वीकार किया जा चुका है.