क्या बदली हुई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे राहुल गांधी ?

2018 में हुए पांच राज्यों के चुनाव ने कांग्रेस में जान फूंक दी. लोकसभा चुनाव से पहले तीन राज्यों में मिली जीत ने कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया है. राजनीतिक पंडित जो भविष्यवाणीयां किया करते थे कि कांग्रेस को 2019 को तो भूल जाना चाहिए, लेकिन वो भी इस जीत के बाद समीक्षा करने बैठ गए. आइए जानते हैं कि राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद आखिर कांग्रेस को ऐसा कौन सा फॉर्मूला मिल गया, जिसने उसके आत्मविश्वास को बढ़ा दिया है जो हर मुद्दे पर भाजपा को घेरे हुए हैं.

जब सत्ता में की वापसी

सोनियां गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बने राहुल गांधी को एक साल से भी ज्यादा का समय हो रहा है, पर इतने वक्त में ही उन्होंने एक ऐसे नेता का दर्जा हासिल कर लिया है जिसने कामयाबी के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज करवा दी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 5 राज्यों के चुनावी परिणाम को फाइनल से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा था. इस सेमीफाइनल मुकाबले में कांग्रेस करो या मरो की स्थिति में थी. कांग्रेस ने ये लड़ाई पूरे दमखम के साथ लड़ा और ये दिखाया है कि वो बीजेपी को ना केवल उसके गढ़ में चुनौती दे सकती है, बल्कि उसे सत्ता से बाहर का रास्ता भी दिखा सकती है.

सबसे पहली बात यही है कि इन नतीजों ने राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के मुकाबले में खड़ा कर दिया है. राहुल ये साबित करने में कामयाब रहे हैं कि वे नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकते हैं, उनसे मुकाबला कर सकते हैं और उन्हें हरा भी सकते हैं. राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले राजनीतिक पंडितों की माने तो इन नतीजों से राहुल गांधी का कॉन्फिडेंस मजबूत हुआ है और 2019 में कहीं ज्यादा तैयारी से मैदान में जाएंगे. राहुल गांधी ने पिछले डेढ़ दशक में कांग्रेस के एक नौसिखिए नेता से प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरने तक का लंबा चुनौतीपूर्ण सफर तय किया है. अब वे ताकतवर भाजपा और नरेंद्र मोदी से टक्कर लेने को तैयार दिख रहे हैं.

सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा

2014 में कांग्रेस की हार के बाद से ही राहुल ने कांग्रेस के वजूद के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक के तौर पर आरएसएस को पहचान लिया था. अपने आक्रामक हिंदुत्व के एजेंडे क साथ और संघ परिवार के समर्थन से भाजपा ने कामयाबी के साथ एक अफसाना खड़ा कर लिया था, जिसमें कांग्रेस को मुसलमानों की तरफदार के तौर पर देखा और दिखाय जाता था. यह भी कि कांग्रेस की इस तरफदारी का खामियाजा बहुसंख्यक समुदाय को उठाना पड़ा है. कांग्रेस के अदंर कहा जाता है कि हिंदू धर्म पर भाजपा के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए पार्टी ने बहुत सोच-समझकर फैसला लिया गया था, जिसके चलते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जनेऊधारी ब्राह्मण से लेकर दत्तात्रेय गोत्र तक एक नए राहुल गांधी का उभार देखा गया.

भाजपा के कट्टर हिंदुत्व छवि से आगे निकलते हुए कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति के सहारे चुनाव मैदान में उतरी. राहुल गांधी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में मंदिर-मंदिर घुमते और पूजा अर्चना करते नजर आए जिसका पार्टी को भी फायदा मिला. यही वजह है कि राहुल के लगातार संघर्ष की बदौलत 2018 का साल उनके लिए इतनी उजली धूप लेकर आया कि निराशा और मायूसी के वे तमाम बादल छंट गए. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी लहर में भाजप ने जबरदस्त शिकस्त दी और कांग्रेस को 44 सॉटो पर समेट दिया. हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी कांग्रेस को इस हार से बाहर निकालने के लिए लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं और संगठन को मजबूत करने में जुटे रहे. इस दौरान 17 राज्यों के 50 दौरे किए. इन दौरों में वो आठ राज्य भी शामिल हैं जहां कांग्रेस ने वापसी की. कांग्रेस की इस जीत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15 सालों से चली आ रही बीजेपी की सरकार को हरा दिया राज्य में वापसी की. राहुल गांधी का मानना है कि उनकी असली लड़ाई बीजेपी से ही है.

जब खुलकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिंदू छवि पेश कि. “अप्रेल 2015 को राहुल केदारनाथ मंदिर की दुर्गम यात्रा परगए और 2013 में उत्तराखंड की बाढ़ में मारे गए लोगों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की. यह पार्टी की नरम हिंदुत्व की शुरुआत कही जा सकती है, जिसका हाल के विधानसभा चुनावों में अच्छा फायदा मिला.”

“नवंबर 2017 में गुजरात विधानसभा के महज किछ दिन पहले कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ऐलान किया कि राहुल जनेऊधारी हिंदू हैं. इस बयान के फौरन बाद विवाद छिड़ गया, क्योंकि कांग्रेस मीडिया समन्वयक मनोज त्यागी ने सोमनाथ मंदिर की यात्रा के वक्त खास रजिस्टर में राहुल और पार्टी के नेता अहमद पटेल का नाम गैर-हिंदुओं के तौर पर दर्ज किए थे.”

“अप्रेल 2018 के कार्नाटक विधानसभा चुनावों में प्रचार अभियान के लिए जाते वक्त जब उनका विमान तकनीकि खराबी की वजह से ऊंचाई से नीचे आ गया, तब राहुल ने ऐलान किया कि वे कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाएंगे. राहुल ने यह मानसरोवर यात्रा सिंतबंर में पूरी की और सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें डालीं.”

“नवंबर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में जब महज दो हफ्ते पहले राहुल ने पुष्कर के मंदिर में दर्शन के समय यह राज उजागर किया कि उनका गोत्र दत्तात्रेय है और वे कश्मीरी ब्राह्मण हैं.”

2019 में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे अपना चुनावी अभियान शुरू करने जा रही है, और इसकी शुरुआत राहुल गांधी यूपी कुंभ स्नान करने के साथ करेंगे. “कभी राष्ट्रीय झंडे को अपना मजहब बताने वाले राहुल गांधी ने खुद के शिव भक्त और जनेऊधारी ब्राह्मण होने का ऐलान किया.”  और इसी ऐलान के साथ कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर बढ़ गई. जो अब पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा भी है.

सवाल-जवाब में अक्रामकता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को उन्हीं के हथियार से मात देने की कला में राहुल गांधी माहिर खिलाड़ी बनकर उभर रहे हैं. किसी भी मौके पर कांग्रेस अक्रामक अंदाज में भाजपा से सवाल पूछती हैं जिस अंदाज में बीजेपी पूछती थी. “राफेल विमान” सौदे के कथित घोटाले को लेकर पीएम मोदी पर राहुल गांधी निशाना साधते रहे हैं कभी, रैलियों में जनता के सामने सवलिया लहजे में तो, सोशल मीडिया पर, प्रेस वार्ता और संसद में, राहुल गांधी ने भाजपा के खिलाफ जंग छेड़ दी और इसके लिए एक नई कहावत का भी ईजाद किया, ‘चौकिदार चोर है…’ जो राजनीतिक गलियारों के साथ लोगों की जुबान पर चस्पा हो गया है.

एक अन्य घटनाक्रम में लोकसभा की कार्रवाई के बीच अपना भाषण खत्म करने के बाद प्रधानमंत्री को गले लगाकर मंच और सुर्खियां हथिया लीं और दिखा दिया कि वे अपने विरोधियों को दुश्मन मानकर बर्ताव नहीं करते. कांग्रेस खासकर राहुल गांधी ऐसे नेता के तौर पर उभरे हैं जिन्हे तमाम पार्टियों में स्वीकार किया जाने लगा है. द्रमुक के स्टालिन ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री के तौर पर देखते हैं. सपा-बसपा गठबंधन के बाद राहुल गांधी को उम्मीद हैं कि यूपीए गंठबंधन 2019 में जबरदस्त वापसी करेगी.

पार्टी के वरिष्ठ व युवा नेता साथ

कांग्रेस की बागडोर संभालने के साथ राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ युवाओं को साथ लेकर चलना था. कांग्रेस जानती थी दोनों को साथ लिए बिना भाजपा का सामना नहीं किया जा सकता. राहुल गांधी के लिए 2014 की हार  के बाद कांग्रेस पार्टी को फिर से मजबूत कर आगे बढ़ना था. राहुल ने इस चुनौती को स्वीकार किया और कांग्रेस संगठन की थाह लेनी शुरू कर दी. बुजुर्गों और युवाओं के बीच एक गहरी खाई को पाटनी थी. राहुल ने दोनों को साथ रखा और हर राज्य में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं और युवा नेताओं की मिली जुली एक प्रतिभासंपन्न टोली तैयार की. मध्य प्रदेश में कमलनाथ के हाथ पार्टी की कमान दी गई और ज्यातिरादित्य सिंधिया समेत दूसरे युवा नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई.

राजस्थान में उन्होंने सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाया लेकिन दो बार के पूर्व सीएम अशोक गहलोत को दरकिनार करने की गलती नहीं की. जब मुख्यमंत्री तय करने की बारी आयी तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सधे हुए नेताओं की तरह निर्णय लेकर सोशल मीडिया पर मुस्कुराती हुई तस्वीर पोस्ट की. संदेश एकदम साफ था कि वे हर किसी को साथ लेकर, सहमति तैयार करने में यकीन रखते हैं. अपना फैसला किसी पर थोपते नहीं. कांग्रेस की इस बदली हुई रणनीति ने पार्टी की छवि मजबूत संगठन और कार्यकर्ताओं के सहारे 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और पीएम मोदी से टक्कर लेने को तैयार नजर आ रही हैं.

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