उमर अब्दुल्ला के एक फोन कॉल से बदली कश्मीर की सियासत

जम्मू कश्मीर में पीडीपी के कद्दारव नेता मुज्जफर हुसैन बेग के बगावती तेवर के बाद महबूबा मुफ्ती का सरकार बनाने का ऐलान करना महज एक इत्तेफाक नहीं था.

इसके पीछे एक रणनीति थी जिसके चाणक्य थे उमर अब्दुल्ला. उमर अब्दुल्ला ने इसके जरिए महबूबा मुफ्ती की पार्टी को दो धड़ो में टूटने से ही नहीं बचाया बल्कि कश्मीर में बीजेपी की सरकार बनाने के सपने को भी चकनाचूर कर दिया.

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बीजेपी के राम माधव ने कुर्सी वाली सियासत

जम्मू कश्मीर के बीजेपी प्रभारी राम माधव ने राज्य में सत्ता पाने का जो रास्ता अपनाया था उसमें पीडीपी का टूटना तय था. राम माधव ने जो योजना बनाई थी उसमें सज्जाद लोन को बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री पद पर आसीन होना था. बीजेपी के पास इतना संख्या बल नहीं था कि जिससे सरकार सदन में अपना बहुमत साबित कर सके. इसके लिए पीडीप के संस्थापक सदस्यों में से एक मुज्जफर हुसैन बेग के राजनीतिक कद का इस्तेमाल करके पीडीपी के एमएलए को अपने पाले में लाना था. और सरकार का गठन करना था.

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महबूबा को अब्दुल्ला का फोन

महबूबा मुफ्ती को अपनी पार्टी के टूटने की खबर थी या नहीं इसके बारे में अभी तक तो उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी लेकिन एनसी के नेता और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रीउमर अब्दुल्ला को बीजेपी के इस कदम की भनक लग चुकी थी. एनसी पार्टी से जुड़े लोगों की माने तो उमर अब्दुल्ला ने रात को महबूबा मुफ्ती को फोन कर बताया कि अगर वो अब भी चुप रही तो उनकी पार्टी टूट जाएगी.

इसके बाद पीडीपी, कांग्रेस और एनसी का एक साथ आना तय हुआ. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से इसके लिए हरी झण्डी ली. और उसके बाद महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनाने का दावा पेश किया.

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सत्यपाल मलिक ने अब्दुल्ला की शोच पर फेरा पानी

कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक बीत दिनों दिल्ली में थे. कयासों के बाजार में इस बार पर चर्चा है कि वो दिल्ली कश्मीर में बीजेपी सरकार के गठन की बात करने को लेकर ही आए थे. इससे एक बात तो साफतौर पर समझा जा सकता है कि बीजेपी कश्मीर में जिस फार्मूले के तहत सरकार बनाने की कवायद कर रही थी वो बीजेपी – पीडीपी गठबंधन के टूटने के बाद से ही चालू गयी थी. और उनकी इस योजना पर उमर अब्दुल्ला के एक फोन काल ने पानी फेर दिया.

सज्जाद लोन का सरकार बनाने का दावा पेश करना और पीडीपी का भी सरकार बनाने का दावा पेश करना, राज्यपाल सत्यपाल मलिक के लिए विधानसभा को भंग करने का फैसले लेने के लिए यह कारण काफी था.

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